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डेयरी क्षेत्र तथा आत्मनिर्भर भारत: चुनौतियाँ

(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक और सामाजिक विकास- सतत् विकास, गरीबी, समावेशन, जनसांख्यिकी, सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3: पशुपालन सम्बंधी अर्थशास्त्र)

चर्चा में क्यों?

  • आत्म निर्भर भारत अभियान का उद्देश्य भारत को कोविड-19 महामारी संकट के पश्चात आर्थिक पुनर्निर्माण के ज़रिये आत्मनिर्भर बनाना है, जिसमें डेयरी क्षेत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। साथ ही, यह क्षेत्र वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने में भी अभूतपूर्व भूमिका निभा सकता है।
  • आत्म निर्भर भारत के लक्ष्य को दो विषयों पर ज़ोर देकर हासिल किया जा सकता है: एक ‘वोकल फॉर लोकल’ और दूसरा ‘स्थानीय से वैश्विक’

दुग्ध क्षेत्र का महत्त्व

  • भारत पिछले 22 वर्षों से दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। वर्ष 2018-19 के दौरान भारत का दुग्ध उत्पादन लगभग 188 मिलियन मीट्रिक टन है, जोकि विश्व के दुग्ध उत्पादन का लगभग 21% है।
  • यह क्षेत्र लगभग 100 मिलियन ग्रामीण परिवारों के लिये आय का प्राथमिक स्रोत है, विशेष रूप से भूमिहीन, छोटे या सीमांत किसानों के लिये।
  • भारत में दुग्ध उत्पादन पिछले 20 वर्षों में 4.5% की दर से बढ़ा है, जबकि दुनिया में इसकी औसत वृद्धि दर 2% से भी कम है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के कुल मूल्य में लगभग 28% का योगदान डेयरी क्षेत्र द्वारा किया जाता है।
  • इस क्षेत्र की उच्च वृद्धि दर ने भारत को, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ती जनसँख्या को, आत्मनिर्भर बनाने में अत्यधिक सहायता प्रदान की है।
  • भारत ने दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भरता दशकों पहले ही हासिल कर ली थी। 1970 के दशक की शुरुआत में भारत का दुग्ध उत्पादन अमेरिका के दूध उत्पादन की तुलना में केवल एक-तिहाई और यूरोपीय संघ का केवल 20% था। वर्तमान में भारत का दुग्ध उत्पादन अमेरिका से दोगुना और यूरोप से 25% अधिक है।
  • 1970 के दशक के दौरान अधिकतर डेयरी किसानों को दलालों की एक लम्बी श्रृंखला तथा एक संगठित बाज़ार के अभाव में उचित पारिश्रमिक नहीं प्राप्त हो पाता था, किंतु अमूल द्वारा ऑपरेशन फ्लड के दौरान त्रिस्तरीय सहकारी मॉडल अपनाए जाने से दुग्ध किसानों तथा कामगारों को उचित पारिश्रमिक दिये जाने की प्रवृत्ति में बदलाव आया है।
  • इस सहकारी मॉडल के कारण ही भारत विश्व में न केवल दूध का सबसे बड़ा उत्पादक बना, बल्कि सबसे बड़ा उपभोक्ता देश भी बन गया है। भारत में प्रतिदिन दूध की उपलब्धता लगभग 400 ग्राम प्रति व्यक्ति है, जबकि वैश्विक स्तर पर यह औसत 300 ग्राम प्रति व्यक्ति है।
  • उल्लेखनीय है कि भारत में डेयरी उत्पादों का सकल मूल्य पूरे देश में गेहूँ व चावल के संयुक्त मूल्य से अधिक है।

अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • सयुंक्त राष्ट्र की संस्था ‘खाद्य एवं कृषि संगठन’ (FAO) ने वर्ष 2001 से दूध की वैश्विक उपयोगिता के महत्त्व को समझते हुए प्रतिवर्ष 1 जून को वैश्विक स्तर पर दुग्ध दिवस मनाने का निर्णय लिया, जिससे दुग्ध एवं दुग्ध उत्पादकों की गुणवत्ता में वृद्धि हेतु प्रचार-प्रसार किया जा सके।
  • लॉकडाउन के दौरान केंद्र सरकार द्वारा डेयरी और मत्स्य उद्योग के विकास हेतु वित्तीय पैकेज जारी किये गए, जिससे इन क्षेत्रों में तीव्र विकास की सम्भावना है।

भारतीय डेयरी उद्योग की चुनौतियाँ

  • भारत में दूध तथा इसके उत्पादों के लागत मूल्यों पर नियंत्रण एक प्रमुख चुनौती है। साथ ही, भारतीय दुधारू पशुओं की कम उत्पादकता भी दूध की उत्पादन लागत में वृद्धि का एक प्रमुख कारण है।
  • भारत वैश्विक स्तर पर दूध का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है लेकिन व्यापक उपभोग के चलते भारत का दुग्ध निर्यात संतोषजनक नहीं है।
  • अगले एक दशक में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में, मूल डेयरी उत्पादों जैसे- स्किम्ड मिल्क पाउडर तथा बटर की कीमत लगभग स्थिर रहने की सम्भावना है, जबकि भारत में दुग्ध उत्पादन के लिये आगत कीमतों में वृद्धि एक चिंता का विषय है।
  • कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर लॉकडाउन की परिस्थितियों के चलते दूध की आपूर्ति में बाज़ार आधारित माँग की तुलना में अत्यधिक वृद्धि हो गई है, जिससे दुनियाभर में दूध की कीमतों में गिरावट आई है। यह दुग्ध उत्पादक किसानों और डेयरी सयंत्र आपूर्तिकर्ताओं दोनों के लिये ही गम्भीर चिंता का विषय है।

चुनौतियों से निपटने हेतु सुझाव

  • भारत का दुग्ध उत्पादन विश्व का सबसे बड़ा बाज़ार है। इस उद्योग को आर्थिक उदारीकरण और आयात से बचाते हुए घरेलू दुग्ध उत्पादकों को प्रतिस्पर्धी बनाना होगा।
  • भारतीय दुधारू पशुओं के कम उत्पादकता को प्रौद्योगिकी उपयुक्त प्रयोग तथा नवोन्मेष से हल करना होगा।
  • भारत का डेयरी उद्योग लगभग 10 करोड़ से भी अधिक डेयरी उत्पादकों की आजीविका से जुड़ा हुआ है। साथ ही यह उद्योग सामाजिक-राजनैतिक दृष्टि से भी अत्यधिक सम्वेदनशील है, जोकि आत्मनिर्भर भारत अभियान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • भारत की डेयरी सहकारिता निजी क्षेत्र के सहयोग से अगले एक दशक में प्रति दिन 4.3-4.8 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन कर सकती है।
  • भारत को दुग्ध क्षेत्र में आगतों को नियंत्रित करने हेतु आपूर्ति श्रृंखला की विसंगतियों को दूर कर उसे और अधिक दक्ष बनाना होगा।
  • भारत को दूध के उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ एक प्रभावी दुग्ध निर्यात नीति बनाने की आवश्यकता है, जिससे भारतीय दुग्ध किसानों की वैश्विक बाज़ार तक पहुँच सुनिश्चित हो सके।
  • लॉकडाउन की परिस्थितियों के कारण दुग्ध क्षेत्र में माँग और आपूर्ति के अंतर को केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा दुग्ध उत्पादकों, प्रसंस्करण सयंत्र आपूर्तिकर्ताओं एवं अन्य हितधारकों के सहयोग से संतुलन स्थापित किया जाना चाहिये, जिससे दुग्ध उत्पादन हेतु समग्र आर्थिक हितों का समायोजन किया जा सके एवं डेयरी उद्योग निरंतर आगे बढ़ सके।

निष्कर्ष

  • भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत में पहले से ही दुग्ध तथा इनके उत्पाद नैसर्गिक रूप से समाहित हैं।
  • वर्तमान में, भारत को दुग्ध क्षेत्र में गुणवत्ता में सुधार, पशुओं की नस्ल सुधार, निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन, एक समग्र दुग्ध निर्यात नीति, सुगम ऋण सुविधा और ग्रामीण दुग्ध उत्पादन को शहरी बाज़ार से जोड़ने जैसे महत्त्वपूर्ण सुधारों पर बल देना होगा, तभी भारत आत्मनिर्भरता और समावेशी विकास की ओर अग्रसर हो सकेगा।
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