New
UPSC GS Foundation (Prelims + Mains) Batch | Starting from : 20 May 2024, 11:30 AM | Call: 9555124124

महामारी और यूनिवर्सल बेसिक इनकम

(प्रारम्भिक परीक्षा : आर्थिक और सामाजिक विकास – सतत विकास, गरीबी, समावेशन आदि; मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3: विषय – भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से सम्बंधित विषय, समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय)

कोविड-19 महामारी द्वारा उत्पन्न हुई आर्थिक असमानता, बेरोज़गारी और गरीबी से निपटने के लिये अनेक विशेषज्ञ यूनिवर्सल बेसिक इनकम (Universal Basic Income-UBI) को इसके समाधान के तौर पर देख रहे हैं।

प्रमुख बिंदु :

  • कोविड-19 महामारी  से निपटने के लिये, दुनिया भर की सरकारों ने लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे उपाय लागू किये हैं।
  • हालाँकि, इन उपायों की वजह से अर्थव्यवस्था के लगभग हर क्षेत्र में अच्छी खासी क्षति हुई है, इतना ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने वर्तमान आर्थिक संकट को वर्ष 1929 के बाद की सबसे गम्भीर मंदी के रूप में घोषित किया है।
  • भारत में लगभग 90% कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है जहाँ न्यूनतम मज़दूरी या सामाजिक सुरक्षा आदि स्थितियाँ बदतर स्थिति में हैं।
  • महामारी से पहले भी, भारत लाखों लोगों को नौकरी के नए अवसर प्रदान करने के लिये संघर्ष कर रहा था।
  • कम से कम अर्थव्यवस्था के सामान्य होने तक, यूनिवर्सल बेसिक इनकम के माध्यम से अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों को नियमित भुगतान करके उनके निर्वहन को सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • दुनिया भर के देशों, जिनमें केन्या, ब्राज़ील, फिनलैंड और स्विट्ज़रलैंड शामिल हैं, ने भी यू.बी.आई. जैसे कार्यक्रमों की दिशा में काम किया है।
  • यू.बी.आई. कार्यक्रम के समर्थकों में अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता पीटर डायमंड और क्रिस्टोफ़र पिसराइड्स और तकनीकी क्षेत्र के बड़े नाम मार्क ज़ुकरबर्ग और इलोन मस्क आदि शामिल हैं।

यूनिवर्सल बेसिक इनकम की अवधारणा :

  • भारत के 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में यूनिवर्सल बेसिक इनकम की अवधारणा की वकालत की गई थी। इसमें यूनिवर्सल बेसिक इनकम विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं के द्वारा गरीबी को कम करने के प्रयास में एक सशक्त विकल्प के रूप में बताया गया था।
  • यूनिवर्सल बेसिक इनकम के पीछे का विचार यह है कि एक नागरिक होने के नाते अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये प्रत्येक व्यक्ति के पास मूल आय का भी अधिकार होना चाहिये।
  • यू.बी.आई. का उद्देश्य गरीबी को रोकना या कम करना है और नागरिकों में समानता कोबढ़ाना है।
  • यू.बी.आई. के मुख्य घटक निम्न हैं:
    • सार्वभौमिकता- यह प्रकृति में सार्वभौमिक है।
    • आवधिक- समय - नियमित अंतराल पर भुगतान (एकमुश्त अनुदान नहीं)।
    • नकद में भुगतान (खाद्य वाउचर या सेवा कूपन नहीं)।
    • बिना शर्त- लाभार्थी को नकद हस्तांतरण (कोई पूर्व शर्त नहीं)।

यूनिवर्सल बेसिक इनकम के लाभ :

  • यू.बी.आई. व्यक्तियों को सुरक्षित आय प्रदान करेगा।
  • यह योजना समाज में गरीबी और आय की असमानता को कम करेगी।
  • यह हर गरीब की क्रय शक्ति को बढ़ाएगा जो अर्थव्यवस्था में तदोपरांत समग्र माँग को बढ़ाएगा।
  • इसे लागू करना आसान है क्योंकि लाभार्थी की पहचान करने की कोई विशेष ज़रुरत नहीं है।
  • यह सरकारी धन के अपव्यय को कम करेगा क्योंकि इसका कार्यान्वयन बहुत सरल है।

यू.बी.आई. को लागू करने में समस्याएँ :

  • अत्यधिक लागत के कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव।
    • आर्थिक सर्वेक्षण (2016-17)के हिसाब से 75% लोगों को रु7,620 प्रतिवर्ष देने की राजकोषीय लागत जी.डी.पी.के लगभग 4.9% के बराबर थी।
    • प्रतिवर्ष देने के लिये रु7,620 कीयह वार्षिक आय वर्ष 2011-12 की सुरेश तेंदुलकर समिति द्वारा बताई गई गरीबी रेखा के आधार पर निर्धारित की गई थी।
  • इस आय के बँटवारे के परिणाम स्वरुप उत्पन्न घाटे को संतुलित करने के लिये मौजूदा सब्सिडी कोकम करना पड़ेगा जिसमें बहुत कठिनाई आएगी।
  • इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि दी गई नकदी उत्पादक गतिविधियों, स्वास्थ्य और शिक्षा आदि पर खर्च की जाएगी।यह नकदी तम्बाकू, शराब, ड्रग्स और अन्य लक्ज़री वस्तुओं आदि पर खर्च की जा सकती है।
  • लोगों को मुफ्त नकद देने से अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की दर में वृद्धि हो सकती है।
  • श्रमिक मज़दूर के रूप में काम करने से इनकार कर सकते हैं या उच्च मज़दूरी की मांग कर सकते हैं जिससे कृषि क्षेत्र की वस्तुओं के उत्पादन की लागत बढ़ सकती है।

आगे की राह :

  • 2017 के आर्थिक सर्वेक्षण मेंयू.बी.आई. योजना को "एक वैचारिक रूप से आकर्षक विचार" के रूप में चिह्नित किया गयाथा और गरीबी को कम करने के लिये लक्षित सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों का एक सम्भावित विकल्प बताया गया था।
  • यू.बी.आई. एक असम्बद्ध सामाजिक सुरक्षा जाल की परिकल्पना करता है जो सभी को गरिमापूर्ण जीवन का आश्वासन देता है, एक ऐसी अवधारणा जो वैश्वीकरण, तकनीकी परिवर्तन और स्वचालन के कारण अनिश्चितताओं से ग्रसित वैश्विक अर्थव्यवस्था को एक प्रकार की नई ऊर्जा प्रदान कर सकती है।
  • सार्वभौमिक बुनियादी आय की इस समय बहुत ज़्यादा ज़रुरत है। इसे कोविड -19 महामारी द्वारा उत्पन्न बेरोज़गारी, आय असमानता और गरीबी से निपटने के लिये लागू किया जा सकता है।

(स्रोत: द हिंदू)

Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR