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फ्लाई ऐश: संसाधन के रूप में अधिकतम उपयोग

(सामान्य अध्ययन, मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र-3)

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में, मध्य प्रदेश के सिंगरौली ज़िले में बने रिलायंस पावर प्लांट का ‘फ्लाई ऐश डम्प यार्ड’ टूट गया। इससे निकले ज़हरीले मलबे से काफी जान-माल की क्षति हुई है। यह मलबा रेणुका नदी पर बने रिहंद बांध तक पहुँच गया है। उल्लेखनीय है कि सिंगरौली देश के सबसे प्रदूषित औद्योगिक क्षेत्र में से एक है।

फ्लाई ऐश डाइक को ऐश डैम या राख का बांध भी कहते हैं।

फ्लाई ऐश : स्मरणीय तथ्य

  • फ्लाई ऐश कोयला दहन से सूक्ष्मकण के रूप में प्राप्त एक उपोत्पाद है। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में इसे ‘फ्लू ऐश’ (Flue Ash) या ‘पल्वेरिस्ड फ्यूल ऐश’ (Pulverised Fuel Ash) भी कहा जाता है। ये कोयला आधारित बॉयलरों से फ्लू गैसों के साथ निकलने वाले सूक्ष्म कण हैं।
  • फ्लाई ऐश के अवयवों में प्रयुक्त कोयले के स्रोत व संघटन के कारण भिन्नता हो सकती है। सिलिकॉन डाइऑक्साइड (SiO2), एल्युमिनियम ऑक्साइड (Al2O3) और कैल्शियम ऑक्साइड (CaO) में पर्याप्त मात्रा में सभी प्रकार के फ्लाई ऐश पाए जाते हैं। ध्यातव्य है कि ये सभी कोयले की चट्टानों की परतों में पाए जाने वाले प्रमुख खनिज यौगिक हैं।
  • फ्लाई ऐश में आर्सेनिक, बेरिलियम, बोरॉन, कोबाल्ट, कैडमियम व क्रोमियम के साथ-साथ हेक्सावेलेंट क्रोमियम (Hexavalent Chromium), लेड, मैंगनीज़, पारा तथा मालिब्डेनम, सेलेनियम, स्ट्रांशियम, थैलियम व वैनेडियम जैसे अवयव सूक्ष्म मात्रा में पाए जाते हैं। साथ ही, डायोक्सिंस (Dioxins) तथा पी.ए.एच. (PAH) यौगिक की अत्यंत कम सांद्रता के साथ इसमें अपूर्ण दहन वाले कार्बन भी होते हैं।

पर्यावरण व स्वास्थ्य से जुड़े खतरे

  • ज़हरीली व भारी धातुओं की उपस्थिति फ्लाई ऐश को खतरनाक बना देती है। फ्लाई ऐश में पाई जाने वाले सभी भारी धातुएँ, जैसे- निकेल, कैडमियम, आर्सेनिक, क्रोमियम तथा लेड प्रकृति में विषाक्तता पैदा करती हैं।
  • इलेक्ट्रोस्टेटिक अवक्षेपक (Electrostatic Precipitator) या अन्य फिल्टर विधियों का प्रयोग करके फ्लाई ऐश को वायु में मिलने से रोका जा सकता है, ऐसा न करने की स्थिति में सूक्ष्म व ज़हरीले कण श्वसन तंत्र में जमा हो जाते हैं और धीरे-धीरे विषाक्तता का कारण बनते हैं।
  • फ्लाई ऐश के महीन कण पौधों की पत्तियों पर जमा होकर प्रकाश संश्लेषण में अवरोध उत्पन्न करते हैं। इस कारण पौधे की वृद्धि में रुकावट के साथ ऑक्सीजन की मात्रा में भी कमी आती है।
  • फ्लाई ऐश से निकलने वाले विकिरण से अनेक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। एक अमेरिकी शोध के अनुसार, परमाणु अपशिष्ट की तुलना में फ्लाई ऐश समान मात्रा में विद्युत उत्पादन में 100 गुना ज़्यादा विकिरण पैदा करता है।
  • ऐश डाइकों के टूटने तथा जल में मिश्रण होने से भी बड़ी संख्या में जल निकाय संदूषित होते हैं। पर्यावरणीय स्तर पर इससे मैंग्रोव वनस्पति का विनाश, कृषि उत्पादन में भारी कमी तथा कृषि क्षेत्र व मृदा का प्रदूषण होता है। फ्लाई ऐश के कीचड़ से भूजल दूषित होता है। ऐसी समस्याएँ कच्छ के रण में देखी जा सकती हैं।

फ्लाई ऐश के अनुप्रयोग

  • फ्लाई ऐश पोज़ोलेनिक (Pozzolanic) होती है, इसमें एलुमिनस व सिलीसियस पदार्थ होते हैं। फ्लाई ऐश में जब चूना व पानी मिलाया जाता है तो पोर्टलैंड सीमेंट के सामान एक यौगिक का निर्माण होता है। इसके अलावा, फ्लाई ऐश से सीमेंट उत्पादन में पोर्टलैंड की अपेक्षा कम पानी तथा ऊर्जा (Low Embodied Energy) की आवश्यकता होती है। अतः यह पोर्टलैंड सीमेंट का एक अच्छा विकल्प है।
  • मोज़ैक टाइल्स (Mosaic Tiles) व खोखले व हल्के ब्लॉक्स (Hollow Blocks) तथा कंक्रीट निर्माण में भी इसका प्रयोग किया जाता है। फ्लाई ऐश के कंकणों या गोलियों (Pellets) को कंक्रीट के मिश्रण में वैकल्पिक पदार्थ के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
  • तटबंधों के निर्माण व इंटरलॉकिंग ईंटो के निर्माण में भी यह प्रयुक्त होती है। फ्लाई ऐश का प्रयोग मुख्यतः सीमेंट व निर्माण उद्योग के साथ-साथ सड़क निर्माण, कंक्रीट व ईंट विनिर्माण तथा निचले इलाकों व खानों (Mines) के पुनर्भरण में होता है। भारत में ये सभी उद्योग मिलकर लगभग 60% फ्लाई ऐश का उपयोग करते हैं।
  • शीत गृह प्रतिरोधक में प्रयोग होने के साथ-साथ फ्लाई ऐश रिसाव, दरार व पारगम्यता को भी कम करता है।

फ्लाई ऐश के अधिकतम उपयोग में बाधा

  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अनुसार, 2018-19 में थर्मल पावर प्लांट से लगभग 217 मिलियन टन फ्लाई ऐश का उत्पादन हुआ।
  • अमेरिकन सोसाइटी फॉर टेस्टिंग एंड मैटेरियल्स (ASTMC) के अनुसार, फ्लाई ऐश 'क्लास C' और 'क्लास F' प्रकार की होती हैं। भारत में उत्पादित फ्लाई ऐश मुख्यतः 'क्लास C' प्रकार की होती है। इसमें कैल्शियम और चूना की अधिकता होती है।
  • भारत की अपेक्षा यूरोपीय देशों में 'क्लास F' प्रकार की फ्लाई ऐश पाई जाती है। 'क्लास F' में प्रायः 5% से कम कार्बन पाया जाता है।
  • फ्लाई ऐश के अनुप्रयोग में तकनीकी अभाव के कारण लागत अधिक आती है। तकनीकी व प्रौद्योगिकी सीमाएँ व बाज़ार विनियमन का आभाव भी इनके प्रयोग में समस्या पैदा करता है। भारत में हाइड्रोलिक प्रभाव को रोकने वाले अधिक से अधिक ऐश पाउंड बनाए जाने की आवश्यकता है।
  • फ्लाई ऐश के सुरक्षित भंडारण व निस्तारण हेतु पानी को कम बर्बाद करने वाली विधियों का प्रयोग करना तथा ऐश पौंड (Aish Pond) से पानी के निकास की उचित व्यवस्था करना भी आवश्यक है।
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