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सूडान के लिये समझौते का निहितार्थ

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : अंतर्राष्ट्रीय संबंध)

संदर्भ

हाल ही में, इज़रायल और सूडान ने अमेरिकी मध्यस्थता से आपसी सम्बंधों को सामान्य बनाने पर सहमति व्यक्त की है। अमेरिका द्वारा सूडान को आतंकवाद के राज्य प्रायोजकों की सूची से हटाने से इज़राइल के साथ समझौते का मार्ग प्रशस्त हुआ। यह निर्णय रिपब्लिकन पार्टी की विदेश नीति की उपलब्धि को चिन्हित करता है। हालाँकि, विश्लेषकों का मानना है कि इस समझौते के सूडान के लिये दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।

समझौते का प्रारंभ

  • इज़राइल तथा सूडान कृषि पर प्रारंभिक ध्यान देते हुए आर्थिक और व्यापार लिंक खोलने की योजना पर विचार कर रहे हैं। हालाँकि, राजनयिक सम्बंधों की औपचारिक स्थापना जैसे मुद्दों को बाद में हल किया जाएगा।
  • कुछ समय पूर्व ही संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ऐसे अरब राज्य बन गए हैं, जो इज़रायल के साथ औपचारिक सम्बंधों के लिये सहमत हुए हैं। इस समझौते को अब्राहम अकॉर्ड के नाम से जाना जाता है।

वर्तमान दुविधा

  • सूडान सरकार द्वारा इज़राइल को मान्यता देना उस देश के लोगों का एकमात्र विशेषाधिकार होना चाहिये न कि किसी महाशक्ति के दबाव में ऐसा करना चाहिये। सूडान का यह निर्णय स्पष्ट तौर पर सूडान को आतंकी सूची से बाहर किये जाने के बदले के रूप में देखा जा रहा है।
  • अमेरिका द्वारा सूडान को आतंकवाद के राज्य प्रायोजकों की सूची से हटाने कई निहितार्थ हो सकते हैं। किसी संप्रभु राष्ट्र से ऐसी आशा नहीं की जाती है कि कोई विदेशी देश इसकी नीति का निर्धारण करे। विदित है कि सूडान इस सूची में वर्ष 1993 से था।
  • संवेदनशील ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए प्रधानमंत्री अब्दुल्ला हमदोक ने स्वयं इस दुविधा को व्यक्त किया था कि इज़रायल को उनकी गैर-निर्वाचित सरकार को औपचारिक मान्यता देने के महत्त्वपूर्ण निर्णय की जिम्मेदारी लेनी चाहिये।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1967 के छह-दिवसीय युद्ध के मद्देनजर सूडान ने अरब लीग की मेजबानी की थी, जिसमें इज़रायल की मान्यता को अस्वीकार करने, उससे वार्ता न शुरू करने और इज़रायल के साथ शांति की मांग न करने के लिये कथित तौर एक संकल्प को अपनाया था।
  • अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सूडान की स्थिति का निर्धारण करने के लिये दोनों देशों के बीच गुप्त द्विपक्षीय संबंधों की दुहाई देना भी उचित नहीं होगा।
  • दूसरी ओर, सूडान को आतंकवाद प्रायोजक मानने वाले कारक अपेक्षाकृत स्पष्ट हैं। ये वर्ष 1996 तक ओसामा बिन लादेन को शरण देने के अलावा फिलिस्तीन मुक्ति संगठन, हमास और हिजबुल्लाह के लिये पूर्व सैन्य शासन से प्राप्त होने वाले समर्थन से संबंधित हैं।
  • सूडान को आतंकी सूची से हटाने की पृष्ठभूमि वर्ष 2017 में अमेरिका द्वारा आर्थिक प्रतिबंधो में ढील के साथ ही शुरू हो गई थी। इसके बाद वर्ष 2019 में 23 वर्षों के बाद दोनों देशों ने एक-दूसरे के यहाँ अपने राजदूत भेजे ।

वर्तमान स्थिति

  • सूडान ने 30 वर्षों के तानाशाही शासन को उखाड़ फेंका है और इस उत्तरी अफ्रीकी देश में अगस्त 2019 से चल रहे लोकतांत्रिक संक्रमण के चलते वर्ष 2022 में आम चुनाव होने की संभावना है।
  • पिछले वर्षों में बड़े पैमाने पर होने वाले विद्रोह का अंतिम उद्देश्य सैन्य शासन को सत्ता से बाहर करना था, जो अभी भी संक्रमणकालीन सरकार में साझेदार है।
  • सूडान का विशाल तेल भंडार वर्ष 2011 में अलग होने वाले दक्षिण सूडान में चला गया है। साथ ही, कोविड-19 और भयानक बाढ़ ने खाद्यान्न की कमी, अत्यधिक महंगाई और बेरोजगारी जैसी समस्याओं में वृद्धि कर दी है।

लाभ

  • अमेरिका के साथ हुआ सौदा सूडान को वैश्विक वित्तीय संस्थानों तक महत्त्वपूर्ण पहुँच प्रदान करेगा, डॉलर के लेन-देन को फिर से शुरू करेगा और लगभग तीन दशकों के बाद विदेशी निवेश को पुनर्जीवित करेगा।
  • सूडान का अपने राष्ट्रीय ऋण संबंधी समस्याओं को हल कर और निवेश के अवसरों को प्रदान कर वैश्विक समुदाय के साथ पुन: एकीकरण इस समग्र प्रयास का महत्त्वपूर्ण घटक होना चाहिये।

चिंताएँ

  • वैश्विक सुरक्षा वाले इस मामले में अमेरिका का लेन-देन वाला दृष्टिकोण घातक सिद्ध हो सकता है और सूडान को आतंकवाद के राज्य प्रायोजकों की सूची से बाहर करना इसी का परिणाम माना जा रहा है।
  • दुर्भाग्य से, सूडान की उभरती स्थिति के मूल्यांकन में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के अपने चुनावी लाभ और पश्चिम एशियाई शांति प्रक्रिया में उनके कई विवादास्पद हस्तक्षेप निर्णायक साबित हुए हैं।
  • इस समझौते से इस बात की चिंता व्यक्त की जा रही है कि हालिया घटनाओं से सूडान के पूर्व तानाशाह को नरसंहार और युद्ध अपराधों की जाँच के लिये अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायालय को सौंपने के लिये सेना पर दबाव कम हो सकता है।
  • सूडान की संक्रमणकालीन सरकार और सैन्य नेतृत्व इस मुद्दे पर विभाजित हैं कि इज़रायल के साथ संबंधों को कितनी तेज़ी से और किस सीमा तक स्थापित किया जाए। इससे दोनों में मतभेद उत्पन्न हो सकता है और लोकतांत्रिक संक्रमण को धक्का लग सकता है।
  • साथ ही, सूडान यह भी चाहता है कि उसको आतंकवाद के राज्य प्रायोजकों की सूची से हटाने के फैसले को स्पष्ट रूप से इज़रायल के साथ संबंधों से न जोड़ा जाए। यह प्रदर्शित करता है कि निर्णय दबाव में लिया गया है, जो राष्ट्रीय संप्रभुता का दावा करने वाले सूडान के लिये खतरनाक सिद्ध हो सकता है।

 

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