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भारत 'करेंसी मैनिपुलेटर्स' लिस्ट में

(प्रारम्भिक परीक्षा : राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सामयिक घटनाएँ; मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव)

संदर्भ

  • हाल ही में, अमेरिका ने सख्त रुख अपनाते हुए भारत को चीन, ताइवान आदि देशों के साथ 'करेंसी मैनिपुलेटर्स' यानी मुद्रा में हेर-फेर करने वाले देशों की 'निगरानी सूची (Currency Monitoring watch list) ' में डाल दिया है। 
  • ध्यातव्य है कि अमेरिका ने भारत ​सहित जिन दस देशों को इस सूची में डाला है, वे सभी इसके बड़े व्यापारिक साझेदार हैं।

प्रमुख बिंदु :

  • यदि कोई देश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रतिस्पर्धा में अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिये अपने देश की मुद्रा और अमेरिकी डॉलर के बीच की विनिमय दर को प्रभावित (मुद्रा अवमूल्यन या अधिमूल्यन दोनों ही मामलों में) करने की कोशिश करता है, तो अमेरिकी ट्रेज़री विभाग द्वारा उसे करेंसी मैनिपुलेटर घोषित कर निगरानी सूची में डाल दिया जाता है।
  • इस निगरानी सूची में भारत, चीन, ताइवान के अलावा जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, इटली, सिंगापुर, थाइलैंड और मलेशिया शामिल हैं।
  • अमेरिका ने वियतनाम और स्विट्ज़रलैंड को पहले ही करेंसी मैनिपुलेटर्स की सूची में रखा हुआ है। 
  • अमेरिकी वित्त मंत्रालय ने कांग्रेस में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पिछली चार तिमाहियों (जून 2020 तक) में अमेरिका के चार प्रमुख व्यापारिक साझेदार देशों-भारत, वियतनाम, स्विट्ज़रलैंड और सिंगापुर ने लगातार अपने विदेशी मुद्रा विनिमिय बाज़ार में दखल दिया है। 
  • अमेरिका की तरफ से कहा गया है कि वियतनाम और स्विट्ज़रलैंड द्वारा सम्भावित रूप से अनुचित हेर-फेर की वजह से अमेरिका की प्रगति पर असर पड़ा है तथा अमेरिकी कामगारों और कंपनियों को नुकसान पहुँचा है। 
  • गौरतलब है कि भारतीय रिज़र्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 की दूसरी छमाही में भारत द्वारा विदेशी मुद्रा की खरीद में तेज़ी आई है। इसी तरह वर्ष 2020 की पहली छमाही में भी भारत के द्वारा विदेशी मुद्रा खरीद में तेज़ी देखी गई है। 

मुद्रा निगरानी सूची (Currency Monitoring Watch List)

  • अमेरिकी ट्रेज़री विभाग एक अर्ध-वार्षिक रिपोर्ट जारी करता है, जिसके द्वारा अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में हो रहे विकास और विदेशी विनिमय दरों का निरीक्षण किया जाता है।
  • चीन अपनी मुद्रा को लगातार कमज़ोर करने के कारण इस निगरानी सूची में लगातार बना हुआ है ।
  • सूची में शामिल होने पर अमेरिका की तरफ से किसी भी प्रकार की सज़ा या प्रतिबंध का प्रावधान नहीं है, लेकिन यह सूची में शामिल किये गए देश की वैश्विक वित्तीय छवि को खराब करता है।

निगरानी सूची के लिये निर्धारित मानदंड

अमेरिका के ट्रेड फैसिलिटेशन एंड ट्रेड इनफोर्समेंट एक्ट, 2015 के अनुसार यदि कोई देश निम्नलिखित तीन में से दो मानदंडों को पूरा करता है, तो उसे वॉच लिस्ट/ मॉनिटरिंग लिस्ट/ निगरानी सूची में रखा जाता है :

1. यदि लगातार 12 महीनों से कोई देश अमेरिका के साथ अत्यधिक व्यापार अधिशेष की स्थिति में है।

2. यदि वह देश 12 महीनों की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के कम से कम 2 प्रतिशत के बराबर चालू खाता अधिशेष की स्थिति में है।

3. यदि विगत 12 महीनों (या कम से कम 6 महीनों में) में किसी देश द्वारा उस देश की जी.डी.पी. के कम से कम 2% के बराबर की विदेशी मुद्रा खरीद लगातार की जा रही है।

भारत के लिये निहितार्थ

  • भारत ने हमेशा से अतिरिक्त मुद्रा अधिमूल्यन को रोकने और घरेलू वित्तीय स्थिरता के बीच संतुलन स्थापित करने की कोशिश की है।
  • भारत को निगरानी सूची में होने के कारण, रिज़र्व बैंक द्वारा वित्तीय स्थिरता की सुरक्षा के लिये किये जाने वाले, विदेशी मुद्रा परिचालन को अस्थाई रूप से रोकना पड़ सकता है।
  • इसके मुख्यतः दो परिणाम हो सकते हैं- (1) रुपए का अधिमूल्यन (2) रिज़र्व बैंक की ब्याज दर नीति पर अतिरिक्त तरलता का नकारात्मक प्रभाव।
  • भारत के निर्यात पर रुपए के अधिमूल्यन का प्रभाव पड़ने की भी सम्भावना है।
  • भारतीय नीति निर्माताओं को अमेरिका में नीति-निर्माण की अप्रत्याशित प्रकृति के प्रति संवेदनशील होना होगा, विशेषकर वैश्विक व्यापार से जुड़ी नीतियों के प्रति।
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