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नए अमेरिकी समीकरण

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : वैश्विक घटनाक्रम)

संदर्भ

  • राष्ट्रपति बनने के बाद से ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की नीतियों और नीतिगत फैसलों पर सम्पूर्ण विश्व की नज़र है।
  • ट्रम्प प्रशासन में जहाँ अमेरिका ने बहुत से वैश्विक समझौतों से खुद को अलग कर लिया था वहीं पश्चिमी एशिया को लेकर भी वह आक्रामक ही था।
  • हालाँकि, डेमोक्रेटिक पार्टी के सत्तासीन होने के बाद विभिन्न नीतियों पर अमेरिका का रुख नरम पड़ने की संभावना है।

संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (Joint Comprehensive Plan of Action- JCPOA) पर फैसला

  • अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिये अपने चुनाव अभियान के दौरान जो बाइडन ने तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) से अमेरिका को बाहर निकाले जाने की आलोचना की थी।
  • अमेरिकी राष्ट्रपति ने तब आश्वासन दिया था कि यदि ईरान अपने दायित्वों का सही तरीके से अनुपालन करेगा तो अमेरिका समझौते से पुनः जुड़ सकता है।
  • राष्ट्रपति बनने के बाद बाइडन ने जे.सी.पी.ओ.ए. मामले पर जल्द सकारात्मक कदम उठाए जाने का आश्वासन भी दिया है। हालाँकि, इसके विपरीत इज़राइल ने कहा है कि यह परमाणु समझौता ग़लत आदर्शों पर निर्भर है और इसे आगे बढ़ाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
  • यद्यपि इज़राइल और अमेरिका के खाड़ी सहयोगी,सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरातने भी ज़ोर देकर कहा है कि वे ईरान के साथ समझौते के पुन: शुरू होने पर चर्चा में शामिल होंगे।

अमेरिका का नीतिगत दृष्टिकोण

  • सत्ता परिवर्तन के बाद अब अमेरिकी नीति में परिवर्तन की जगह निरंतरता के दिखने की अधिक संभावना है विशेषकर उन नीतियों में जहाँ अमेरिका के हित जुड़े हुए हैं, जैसे रूस, चीन और ईरान से जुड़ी नीतियाँ।
  • अपने पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रम्प के रूस के प्रति व्यक्तिगत समायोजन के दृष्टिकोण के उलटबाइडन द्वारा अमेरिका के रूस के प्रति पारंपरिक टकराव के दृष्टिकोण को अपनाने की संभावना है।
  • यद्यपि बाइडन की ईरान नीति, मूल मामलों परट्रम्प के कठोर दृष्टिकोण के सामान रहने की ही संभावना है।
  • अमेरिका का यह दृष्टिकोण ईरान के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों के उस विचार को भी बढ़ावा देता है, जो ईरान को कमज़ोर और अलग-थलग देखना चाहते हैं।
  • अतः यदि गहनता से देखा जाय तो परमाणु साधनों से जुड़े प्रश्न पर ईरान के प्रति अमेरिकी दृष्टिकोण में कोई नाटकीय परिवर्तन होने की संभावना नहीं है।

क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों की भूमिका

  • यदि विगत कुछ वर्षों की बात की जाय तो विभिन्न प्रतिबंधों के बावजूद ईरान का क्षेत्रीय प्रभाव अभी भी बना हुआ है।
  • इज़रायल तथा कुछ खाड़ी देशों ने क्षेत्र में आतंकवादियों को संभावित रूप से प्रश्रय देने के लिये ईरान की आलोचना करने के साथ ही ईरान को अपनी सुरक्षा और संप्रभुता के लिये खतरा माना है।
  • खाड़ी देश अपनी शिया आबादी पर ईरान के संभावित प्रभाव से भी चिंतित हैं।
  • ईरान की मिसाइल और ड्रोन क्षमताएँ भी क्षेत्रीय चिंता का विषय हैं।
  • इज़राइल, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, ईरान और उसके सहयोगियों (इराक, सीरिया और शिया लड़ाकों) के साथ विगत कुछ समय से विभिन्न मुद्दों पर आमने-सामने आए हैं।
  • यद्यपि क्षेत्र में तनाव को कम करने और क्षेत्रीय विश्वास को बढ़ावा देने के लिये कतर द्वारा (रूस और संभवतःचीन के साथ मिलकर) प्रयास भी किये गए।
  • सऊदी अरब और यू.ए.ई. को, जो पहले से ही बाइडन प्रशासन के रोष का सामना कर रहे हैं, कतर द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण की तरफ ध्यान देना चाहिये।
  • रूस का इस क्षेत्र में प्रभाव बढ़ा है और चीन ने भी ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के साथ अपनी क्षेत्रीय पहुँच को सुदृढ़ किया है।
  • ध्यातव्य है कि चीन-ईरान के बीच राजनीतिक, सुरक्षा, सैन्य, आर्थिक, ऊर्जा और रसद आदि क्षेत्रों में सहयोग के लिये आगामी 25 वर्षों के लिये समझौता हुआ है।

निष्कर्ष

  • पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के शासनकाल में अमेरिका ने वैश्विक स्तर पर जिस कटुता का सामना किया था, ऐसा अनुमान है कि अमेरिका का नया प्रशासन इसको संतुलित करने का प्रयास करेगा।
  • विशषज्ञों का यह भी कहना है कि यह नई सरकार रूस, चीन और ईरान के नेतृत्त्व वाली नई वैश्विक व्यवस्था की चुनौतियां की गवाह भी बनेगी।
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