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समग्र विकास हेतु आवश्यक है नीतिगत सुधार

(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन, प्रशनपत्र- 3, विषय- आर्थिक विकास, समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय)

संदर्भ

कोविड-19 महामारी से बचाव के लिये टीका आ जाने से अब जन-जीवन पर इसका प्रभाव धीरे-धीरे कम हो रहा है। महामारी के दौरान देश को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिन्होंने अर्थव्यवस्था तथा समाज को व्यापक स्तर पर प्रभावित किया। अतः विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये नीति-निर्माताओं को अर्थव्यवस्था को अधिक लचीला तथा समृद्ध बनाने के लिये के नई आर्थिक नीतियों या मॉडल को अपनाने की आवश्यकता है।

भारत की स्थिति को दर्शाते वैश्विक संकेतक

  • भारत वर्ष 2024-25 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था तथा आर्थिक संवृद्धि दर के पूर्व स्तर को प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है। हालाँकि, नीति-निर्माताओं को यह भी ध्यान रखना होगा कि देश का आर्थिक विकास नागरिकों को बेहतर सेवाएँ उपलब्ध करवाने में विफल रहा है।
  • वैश्विक भुखमरी सूचकांक, 2020 में भारत को 107 देशों में 94वाँ स्थान प्राप्त हुआ है। इसी प्रकार, संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास समाधान नेटवर्क द्वारा मार्च 2021 में जारी विश्व प्रसन्नता रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय नागरिकों की प्रसन्नता का स्तर अत्यंत कम है, वस्तुतः इस रिपोर्ट में भारत 153 देशों में 144वें स्थान पर है।
  • एक वैश्विक आकलन के अनुसार, जल गुणवत्ता के मामले में भारत 122 देशों में 120वें स्थान पर और वायु गुणवत्ता के मामले में 180 देशों में 179वें स्थान पर है। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह अत्यंत दयनीय स्थिति है।

बढ़ती आसमानता की खाई

  • कोविड-19 महामारी ने विश्व में विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में विद्यमान संरचनात्मक कमज़ोरियों को उजागर किया है। विश्व बैंक द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, महामारी के दौरान भारत के शेयर बाज़ार में तीव्र वृद्धि दर्ज की गई, जिससे धनी और अधिक धनी हो गए, जबकि देश में निर्धनों की संख्या में 75 मिलियन की वृद्धि का अनुमान व्यक्त किया गया है। यह संख्या वैश्विक स्तर पर महामारी के कारण निर्धनता में हुई वृद्धि का लगभग 60% है।
  • ध्यातव्य है कि पूर्व की वैश्विक अर्थव्यवस्था विदेशी पूँजी निवेश के लिये अधिक अनुकूल थी। कई देशों ने अपनी पर्यावरण एवं श्रम संबंधी नीतियों के साथ समझौता करके विदेशी पूँजी निवेश तथा विदेशी व्यापार को आकर्षित करने के लिये इनके अनुकूल नियम बनाए।
  • महामारी ने यह सिद्ध कर दिया है कि प्रवासी श्रमिकों के लिये वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था उचित नहीं है। इसने ‘कारोबार की सुगमता’ तो प्रदान की, किंतु ‘श्रमिकों के जीवनयापन को कठिन’ बना दिया।

वर्तमान विकास नीतियों से संबंधित मुद्दे

  • महामारी के उपरांत सामान्य स्थिति में वापस आने के लिये नए उपायों एवं नीतियों की आवश्यकता है, किंतु यह चिंताजनक है कि अभी भी पुरानी नीतियों पर ही बल दिया जा रहा है। भारत पुनः 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये प्रयासरत है।
  • इसके अतिरिक्त, धन सृजनकर्ताओं (धनी व्यक्ति और बड़ी कंपनियाँ) को आर्थिक विकास संबंधी समस्याओं के समाधान के रूप में देखा जा रहा है तथा सत्ता का केंद्रीकरण हो रहा है।
  • अर्थव्यवस्था में 'व्यक्तिवाद' की विचारधारा भी समग्र विकास को प्रभावित करती है। इसके अंतर्गत, यह माना जाता है कि सफलता और विफलता के लिये व्यक्ति स्वयं उत्तरदायी होता है। साथ ही, इसमें इस तथ्य को नकारा जाता है कि निर्धनों के समक्ष जो कठिनाइयाँ विद्यमान हैं, उनके लिये सामाजिक परिस्थितियाँ भी जिम्मेदार हैं।
  • समृद्धि एवं प्रसन्नता को मापने के लिये सार्वभौमिक स्कोरकार्ड का प्रयोग किया जाता है, जिसमें मापक के रूप में वस्तुओं तथा सेवाओं को सभी देशों में समान भारांश दिया जाता है। यह माप वैज्ञानिक तथा वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण तो अपनाती है, किंतु इसमें यह विचार नहीं किया जाता कि प्रसन्नता या कल्याण सदैव 'व्यक्तिपरक' होते हैं।

क्या हो विकास की नीति?

  • भारत को तत्काल विकास की एक नई रणनीति अपनाने की आवश्यकता है। जी.डी.पी. में वृद्धि आर्थिक विकास की सूचक तो हो सकती है किंतु यह सामाजिक तथा पर्यावरणीय कारकों के लिये उत्तरदायी नहीं है, जो मानव कल्याण और सतत् विकास में योगदान देते हैं। अर्थशास्त्रियों द्वारा इन कारकों की अनदेखी की जाती है।
  • वर्तमान में यह आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था की संवृद्धि के साथ-साथ पर्यावरण के स्वास्थ्य और समाज की परिस्थितियों (सार्वजनिक सेवाओं एवं अवसरों तक समान पहुँच) पर भी समान रूप से बल दिया जाए।
  • स्थानीय स्तर पर लोगों को यह स्पष्ट जानकारी होती है कि कुल 17 सतत् विकास लक्ष्यों में से उनके लिये कौन सा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इसलिये, वैश्विक समाधान उनकी प्राथमिकता तथा स्थितियों को बेहतर बनाने में सक्षम नहीं हो सकते। इसके लिये आवश्यक है कि वैश्विक प्रयासों में स्थानीय लोगों की भागीदारी को भी शामिल किया जाए।
  • जिस प्रकार, अपर्याप्त रूप से परीक्षण किये गए टीके और दवाएँ समग्र स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकते हैं, उसी प्रकार जल्दबाजी में तथा कुछ विशेष लोगों द्वारा लिये गए निर्णय आर्थिक, सामाजिक तथा पर्यावरणीय समस्याओं को और जटिल बना सकते हैं। अतः इन समस्याओं का समाधान सामुदायिक सहयोग से किया जाना चाहिये।
  • वर्तमान में विकास की ऐसी नीतियों को अपनाया जाना चाहिये, जिसने अधिकाधिक लोगों को रोज़गार प्राप्त हो सके, क्योंकि बिना आय प्राप्ति के आर्थिक असमानता की खाई को कम नहीं किया जा सकता।

निष्कर्ष

  • जी.डी.पी. का आकार, अरबपतियों की संख्या तथा अंतरिक्ष तक व्यापक पहुँच जैसी उपलब्धियाँ नागरिकों के लिये बेहतर सेवाओं और पर्यावरण की निरंतर खराब होती स्थिति जैसे मुद्दे को हल नहीं कर सकतीं। जब तक विकास निम्न और निर्धन वर्ग तक नहीं पहुँचता, तब तक देश विकसित नहीं बन सकता।
  • इसके लिये आवश्यक है कि विकास की नीतियाँ ऐसी हों, जिससे प्रत्येक व्यक्ति का कल्याण सुनिश्चित हो सके। साथ ही,  यह भी ध्यान रखना होगा कि आर्थिक विकास पर्यावरण की कीमत पर न हो।
  • भारत सरकार ने वर्ष 2022 में स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगाँठ मनाने के लिये एक व्यापक अभियान "भारत @ 75" शुरू किया है। इस अवसर पर यह समीक्षा की जानी चाहिये कि भारत उन लक्ष्यों को प्राप्त करने में कितना सफल हुआ है, जिनका उल्लेख पंडित जवाहरलाल नेहरु ने 15 अगस्त, 1947 को  भाषण 'नियति के साक्षात्कार’ (Tryst with Destiny) में किया था।


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