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आर.सी.ई.पी. वार्ता का पुनः प्रवर्तन और भारत के समक्ष अवसर

(प्रारम्भिक परीक्षा:  राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, आर्थिक और सामाजिक विकास)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3: भारत के हितों को प्रभावित करने वाले करार, भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव, पशु पालन सम्बंधी अर्थशास्त्र)

चर्चा में क्यों?

आसियान की अगुवाई वाले आर.सी.ई.पी. (क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी- Regional Comprehensive Economic Partnership) के सदस्य देशों ने भारत को फिर से इसमें शामिल होने के लिये किसी समझौते पर पहुँचने की आवश्यकता पर बल दिया है।

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी

  • आर.सी.ई.पी. एक प्रकार व्यापार समझौता है। वर्तमान में यह समझौता 16 देशों के मध्य बातचीत के दौर में है।
  • इसमें दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन ‘आसियान’ (ASEAN) के 10 सदस्य देशों के साथ-साथ 6 अन्य देश भी शामिल हैं। यह 6 ऐसे देश जिनके साथ आसियान ब्लॉक का मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है।
  • एफ.टी.ए. के साझेदार देशों में एशिया की चार बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ- भारत, चीन, जापान व दक्षिण कोरिया के अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश शामिल हैं।
  • आर.सी.ई.पी. से सम्बंधित मुद्दों पर वार्ता वर्ष 2013 से ही जारी है। आर.सी.ई.पी. की व्यापार वार्ता समिति (TNC) द्वारा भारत को एक पत्र भेजा गया है। इसमें भारत द्वारा वार्ता को पुन: शुरू करने की स्थिति में ‘सीमित संख्या में उत्पादों’ के लिये बाज़ार पहुँच पर भारत की आपत्तियों पर पुनर्विचार करने का प्रस्ताव रखा गया।
  • इसके अनुसार, आर.सी.ई.पी. कोविड-19 के कारण इस क्षेत्र में व्यापार और निवेश के लिये आवश्यक रिकवरी में सहायता करने के लिये एक अधिक स्थिर व अनुमानित आर्थिक वातावरण प्रदान करेगा।

गतिरोध का मुद्दा

  • पिछले वर्ष नवम्बर में थाईलैंड में आर.सी.ई.पी. का शिखर सम्मलेन सम्पन्न हुआ था। भारत ने अंतिम समय में इस समझौते से बाहर होने का ऐलान कर दिया था। इसका कारण चीन सहित बातचीत के अन्य भागीदार देशों द्वारा भारत की कुछ माँगों पर पूरी तरह से विचार नहीं किया जाना था। इसके लिये भारत ने कृषि व अन्य क्षेत्रों में संरक्षण की कमी का हवाला दिया था।
  • भारत विशेष रूप से चीन से होने वाले आयात को लेकर चिंतित है जो अप्रत्यक्ष रूप से सब्सिडी या छूट प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिये निश्चित रूप से, आर.सी.ई.पी. राष्ट्रों और भारत के मध्य मुद्दों को समझने व हल निकालने के लिये विशेषज्ञों द्वारा चर्चा और प्रयास करने होंगे।
  • चीनी (Chinese) आयात के खिलाफ कुछ सुरक्षा उपायों तथा बाज़ार पँहुच की माँग जैसे मुद्दे वास्तविक है और इनको हल किये जाने की ज़रूरत है।
  • इन सबके बीच, किसानों के मुद्दों के सुलझने की स्थिति में किसी न किसी समझौते पर पहुँचने की उम्मीद प्रतीत होती है।

वर्तमान विवाद

  • इस समझौते में आगे बढ़ने के तरीकों को लेकर भारत सरकार के भीतर ही स्पष्ट रूप से विभाजन देखा जा रहा हैं।
  • हाल के वर्षों में, व्यापार समझौतों को लेकर वाणिज्य मंत्रालय आम तौर पर संशय में रहा है। हालाँकि, कम से कम यह व्यापार मुद्दों पर आर.सी.ई.पी. राष्ट्रों से आने वाले सुझावों तथा उससे खुलने वाली सम्भावनाओं की जाँच व आकलन करने के लिये तैयार है।
  • इसके विपरीत, विदेश मंत्रालय (MEA) स्पष्ट रूप से भारत द्वारा किसी भी समझौते के दृढ़ खिलाफ है। इसके लिये विदेश मंत्रालय की चिंताएँ और प्रस्तुत तर्क काफ़ी हद तक उचित हैं।
  • कोरोनावायरस के बाद की स्थितियों में चीन पर वैश्विक चिंताओं ने इस समूह के लिये भारत के विरोध को मज़बूत किया है। विदेश मंत्रालय के नीति सलाहकारों के अनुसार, कोविड-19 के दौरान, आयात के लिये चीन या किसी एक अर्थव्यवस्था पर निर्भर देशों के अनुभवों ने भारत द्वारा आर.सी.ई.पी. से बाहर रहने के निर्णय को प्रबल और पुनर्सत्यापित कर दिया है।
  • इन्हीं नीति सलाहकारों के अनुसार, अतीत में भारत द्वारा व्यापार समझौतों ने देश में विनिर्माण को खोखला कर दिया तथा यह सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ नीति के लिये प्रतिबद्धता को नए सिरे से बाधित करेगा।
  • कुछ विशेषज्ञ भारत को आर.सी.ई.पी. में शामिल होने के लिये बीजिंग के नेतृत्व में व्यापारिक आदेश के तौर पर देख रहे हैं क्योंकी इस दृष्टिकोण से आर.सी.ई.पी. अमेरिका के नेतृत्व वाली ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (टी.पी.पी.) का एक प्रतिरूप है। हालाँकि अमेरिका टी.पी.पी. से बाहर हो गया है।
  • वर्तमान में फिलहाल बीजिंग के साथ सम्बंधों की स्थिति को देखते हुए, विदेश मंत्रालय का तर्क सही लग सकता है कि यह समय कोई ऐसी रियायत देने का नहीं है।

क्या हो आगे की योजना?

  • आस्ट्रेलिया और जापान आर.सी.ई.पी. में भारत को फिर से शामिल करने के प्रयासों में सबसे आगे रहे हैं। यह प्रयास इस समूह में चीन को सम्भावित जवाब के रूप में देखा जा रहा है। परंतु जब बात आर्थिक नीतियों की आती है तो भारत के व्यापक हितों को महत्त्व दिया जाना चाहिये।
  • विश्व व्यापार संगठन (WTO) के कमज़ोर होने तथा कोविड-19 महामारी जैसी परिस्थितियों के मद्देनजर, वैश्विक व्यापार प्रणाली को व्यवधान का सामना करना पड़ रहा है।
  • ऐसी स्थितियों में, भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में स्वयं को जोड़ने का तरीका हर कीमत पर खोजना चाहिये। इसके लिये, आर.सी.ई.पी. वर्तमान स्थितियों में एक अच्छा विकल्प है।
  • एक, दूसरा विचार यह है कि पिछले दशक में कई मुक्त व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए परंतु इससे भारत को अधिक मदद प्राप्त नहीं हुई। इसके लिये समझौतों को दोष देना उचित नहीं है बल्कि प्रतिस्पर्धा में वृद्धि जैसे सुधारों को लाने और लागू करने में की गई देरी को दोष दिया जाना चाहिये। अब सरकार ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि ऐसे सुधार उसके प्रमुख एजेंडों में से एक है।
  • हालाँकि आर.सी.ई.पी. देशों के साथ व्यापार शुरू करने की स्थिति में प्रतिस्पर्धा में वृद्धि के लिये और दबाव बढ़ने की उम्मीद है। यह भी एक प्रकार का स्पष्ट संकेत है कि वर्तमान में चर्चित ‘आत्मनिर्भरता’ का एजेंडा घरेलू उत्पादन क्षमता में वृद्धि के बारे में अधिक है।
  • ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त के अनुसार, आर.सी.ई.पी. वार्ता को फिर से शुरू करने के लिये भारत के पास इससे बेहतर समय नहीं होगा, क्योंकि यह दुनिया को एक संकेत देगा कि भारत न केवल निवेश करने के लिये एक आकर्षक स्थान है बल्कि सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ नीति द्वारा परिकल्पित एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने की भी पूरी क्षमता भारत में है।
  • एक व्यापार विशेषज्ञ के अनुसार, महामारी के कारण माँग और खपत पर अनिश्चितता को देखते हुए, भारतीय कम्पनियों में आशावादी दृष्टिकोण उत्पन्न करने के लिये भारत आर.सी.ई.पी. का भी उपयोग कर सकता है।
  • कुल मिलाकर, भारत अंतिम क्षणों में प्रदान किये गए प्रस्ताव द्वारा विनिर्माण निर्यात के अवसर को चूकने का जोखिम नहीं उठा सकता है। आर.सी.ई.पी. ने टैरिफ बेस दरों और विशेष व्यापार सुरक्षा उपायों पर भारत की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए एक पैकेज का प्रस्ताव दिया है।
  • अंततः, सरकार द्वारा अपने आंतरिक मतभेदों को सुलझाने के साथ-साथ आर.सी.ई.पी. में शामिल होने की सम्भावना पर फिर से विचार किया जाना चाहिये।
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