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भंडारित अपशिष्ट के निस्तारण में जैव खनन की भूमिका

(सामान्य अध्ययन, मुख्य परीक्षा प्रश्नपत्र-1: शहरीकरण की समस्याएँ एवं रक्षोपाय; प्रश्नपत्र-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

चर्चा  में  क्यों ?

  • हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal-NGT) ने एक समिति को दिल्ली में भंडारित अपशिष्ट (Legacy waste) स्थलों या लैंडफिल साइट्स (कूड़े के ढेरों) को चिन्हित करने एवं रिपोर्ट सौंपने को कहा है।
  • इस समिति में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board-CPCB), राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (National Environmental Engineering Research Institute-NEERI) और आई.आई.टी. दिल्ली के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया है।

क्या है भंडारित अपशिष्ट ?

  • भंडारित अपशिष्ट उस कचरे को कहा जाता है जिसे नगर निगम या किसी ऐसी ही संस्था द्वारा किसी अप्रयुक्त और अनुपजाऊ भूमि पर एकत्रित किया गया है तथा उसका निस्तारण भी नहीं किया गया है।
  • भंडारित अपशिष्ट से दिल्ली सहित देश के अन्य शहरों में कूड़े के पहाड़ बन चुके हैं, जो कि वहाँ कई प्रकार की समस्याओं को जन्म दे रहे है।

भंडारित  अपशिष्ट  से  उत्पन्न  समस्याएँ

  • स्थानीय निकायों या आधिकारिक संस्थाओं द्वारा कूड़े को कई स्थानों पर इकठ्ठा किया जाता है और कभी-कभी तो उपजाऊ भूमि पर भी एकत्रित किया जाता है, जिससे भूमि संसाधन का दुरुपयोग तो होता ही है साथ ही कृषि-योग्य भूमि में भी कमी आती है।
  • अवैज्ञानिक तरीके से शहरीकरण किये जाने के कारण ये विशाल कूड़े के पहाड़ शहरों के बीचों-बीच आ गए हैं। इनसे विभिन्न प्रकार के हानिकारक विषाणु, जीवाणु तथा अन्य सूक्ष्म कीटाणु पनपने लगते हैं, जो कि स्थानीय लोगों एवं वहाँ से गुज़रने वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिये चुनौती बन गए हैं।
  • ध्यातव्य है कि इस तरह के कूड़े के ढेरों में गीला तथा सूखा कचरा एक-साथ इकठ्ठा किया जाता है, जिसमें गीले कचरे के कारण लीचे (Leachate) बन जाते हैं; ये लीचे भूमि के अंदर रिसने लगते हैं। इस प्रकार, भूजल प्रदूषित होने लगता है।
  • भंडारित अपशिष्ट से मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है। इसके कारण कूड़े के पहाड़ में आग लग जाती है और यह कई वर्षों तक लगती रहती है, जिससे वायु प्रदूषण का खतरा बढ़ जाता है।
  • कूड़े के विशालकाय पहाड़ों से ग्रीनहाउस गैसें भी निकलती हैं जिससे तापमान में वृद्धि होती है, फलस्वरूप वैश्विक तापन (Global warming) से जलवायु परिवर्तन की समस्या भी उत्पन्न होती है।

क्या है जैव खनन ?

  • ‘जैव खनन’ (Biomining) अर्थात् जैविक तरीके से खनन। इस विधि में सूक्ष्मजीवों की सहायता से खदानों से निकले मिश्रण से धातु का निष्कर्षण किया जाता है। इसे ‘बायोरेमेडिएशन’ (Bioremediation) भी कहा जाता है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा भंडारित अपशिष्ट के निपटान हेतु जैव खनन तकनीक के उपयोग का सुझाव दिया गया है।
  • वर्तमान समय में भंडारित अपशिष्ट में गीला व सूखा कचरा एक-साथ उपस्थित रहता है, जिस कारण से कूड़े के ढेर में कुछ कचरा स्वतः ही विघटित हो जाता है।
  • जैव खनन तकनीक द्वारा सर्वप्रथम कचरे के ढेर को छोटे-छोटे भागों में बाँट दिया जाता है, ताकि उस कचरे से प्रदूषित वायु तथा लीचे का निष्कर्षण हो जाए। तत्पश्चात् इन ढेरों पर सूक्ष्मजीवों का छिड़काव किया जाता है जिससे सम्पूर्ण कचरे का विघटन हो जाता है।

ठोस  अपशिष्ट  प्रबंधन  नियम,  2016

  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2016 में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 को अधिसूचित किया गया था।
  • इन नियमों को नगर निगम के निर्धारित क्षेत्रों से बाहर भी लागू किया गया, जैसे- रेलवे, हवाई अड्डा, धार्मिक तथा विरासत स्थल, कस्बा तथा औद्योगिक क्षेत्र आदि।
  • इन नियमों के तहत, प्रदूषणकर्त्ता तथा अन्य एजेंसियों के उत्तरदायित्व सुनिश्चित किये गए हैं।
  • नियमों का कार्यान्वयन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत एक समिति द्वारा किया जाता है।
  • इन नियमों के अंतर्गत स्थानीय संस्थाओं को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण कार्य प्रदान किये गए हैं, जैसे- कचरे को नियमित रूप से एकत्रित करना, उपयोगकर्त्ता शुल्क का निर्धारण, कचरे के उचित निस्तारण हेतु नई तकनीकों को प्रोत्साहन।
    • राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना वर्ष 2010 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत की गई थी। यह एक सांविधिक निकाय होने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण तथा इससे सम्बंधित कानूनों का क्रियान्वयन करता है।
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी.) एक सांविधिक संस्था है। यह पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को तकनीकी सहायता उपलब्ध कराता है।

भविष्य की राह

  • स्वछता का सम्बंध प्रत्यक्ष रूप से हमारे शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। साथ ही, स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार एक मौलिक अधिकार भी है, जिसे एक मज़बूत अपशिष्ट प्रबंधन तंत्र द्वारा विनियमित किया जाना चाहिये।
  • शहरी स्थानीय निकायों एवं प्रदूषणकर्त्ताओं को आधारभूत ढाँचा खड़ा करने ले लिये स्पष्ट एवं पारदर्शी रूप से उत्तरदायित्व सौंपने के साथ-साथ अनौपचारिक क्षेत्र को कूड़ा एकत्रित करने या छांटने जैसे कार्यों में सहभागी बनाना चाहिये।
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