New
The Biggest Summer Sale UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 31 May 2025 New Batch for GS Foundation (P+M) - Delhi & Prayagraj, Starting from 2nd Week of June. UPSC PT 2025 (Paper 1 & 2) - Download Paper & Discussion Video The Biggest Summer Sale UPTO 75% Off, Offer Valid Till : 31 May 2025 New Batch for GS Foundation (P+M) - Delhi & Prayagraj, Starting from 2nd Week of June. UPSC PT 2025 (Paper 1 & 2) - Download Paper & Discussion Video

मासिक धर्म से जुड़ी वर्जनाएँ और मिथक

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, अधिकार संबंधी मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 : भारतीय समाज में महिलाएँ, उनकी भूमिका और सामाजिक सशक्तीकरण)

संदर्भ

  • हाल ही में, गुजरात उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को मासिक धर्म से संबंधित वर्जनाओं और भेदभाव पूर्ण प्रथाओं को समाप्त करने के लिये सुझाव देने के साथ-साथ भी इस दिशा में प्रयास करने का निर्देश दिया है।
  • उल्लेखनीय है कि फ़रवरी 2020 में गुजरात के भुज स्थित एक संस्थान में बालिकाओं के मासिक धर्म की जाँच का मामला सामने आया था। जाँच करने का आरोप 4 महिलाओं पर ही लगा था। आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 384 (जबरन वसूली), 355 (किसी का अनादर करने के आशय से आपराधिक बल का प्रयोग) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज़ किया गया था।
  • इस घटना के बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जनहित याचिका दायर करते हुए इस संबंध में कानून बनाने के लिये सरकार को निर्देश देने की माँग की है। विदित है कि यौन-उत्पीड़न के ख़िलाफ़ वर्ष 1997में उच्चतम न्यायालय ने ‘विशाखा दिशा-निर्देश’ जारी किये थे।

याचिकाकर्ताओं केतर्क

  • याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि मासिक धर्म के आधार पर महिलाओं से अलग व्यवहार करना अस्पृश्यता का ही एक स्वरुप है। लैंगिक भेदभाव को रोकने संबंधी कानूनों से इतर मासिक धर्म के आधार पर महिलाओं के साथ होने वाली अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिये एक विशिष्ट कानून की आवश्यकता है।
  • मासिक धर्म के आधार पर किसी महिला/बालिका का बहिष्कार न केवल महिलाओं की शारीरिक स्वायत्तता का उल्लंघन है, बल्कि उनकी निजता के अधिकार का भी उल्लंघन है।
  • मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के अतिरिक्त प्रकार के भेदभाव से महिलाएँ अवसर की समानता से वंचित रह जाती हैं। भारत जैसे कई देशों में यह बड़ी संख्या में लड़कियों के स्कूल छोड़ने का कारण बनता है।

उच्च न्यायालय के प्रस्ताव

  • न्यायालय का प्रस्ताव इससे संबंधित अवैज्ञानिक वर्जनाओं और मिथकों को तोड़ने की दिशा में एक अहम कदम है। न्यायालय नेराज्य सरकार से स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, क्षेत्र और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं सहित विभिन्न स्तरों पर जागरूकता बढ़ाने को कहा है।
  • साथ ही, न्यायालय ने मासिक धर्म से संबंधित बातचीत को सामान्य बनाने की आवश्यकता पर भी ज़ोर दिया है।पारंपरिक मान्यताओं के कारण महिलाओं की अशुद्धता और इस पर सामान्य रूप से चर्चा की न किये जाने की वजह से समाज में मासिक धर्म को लेकर कुंठाएँ व्याप्त हो गई हैं। इससे महिलाओं की भावनात्मक व मानसिक स्थिति, जीवन शैली और स्वास्थ्य पर व्यापक असर पड़ता है।
  • मासिक धर्म के आधार पर निजी व सार्वजनिक स्थलों, धार्मिक व शैक्षिक संस्थाओं आदि स्थानों पर सामाजिक बहिष्कार को रोकने की आवश्यकता है। साथ ही, जागरूकता बढ़ाने के लिये इसे स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने की भी ज़रुरत है।

विगत प्रयास /चर्चाएँ/निर्णय/मत

  • सबरीमला मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि संवैधानिक शासन में किसी को कलंकित या किसी के साथ भेदभाव करने वाली किसी धारणा का कोई स्थान नहीं हो सकता है। मासिक धर्म के आधार पर बहिष्कार करना संविधान द्वारा प्रदत्त महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध है।
  • विगत वर्ष दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका द्वारा सभी महिला कर्मचारियों को प्रत्येक माह चार दिन का ‘सवैतनिक मासिक धर्म अवकाश’ अथवा इस दौरान काम करने वाली महिलाओं को अतिरिक्त भुगतान करने संबंधी दिशा-निर्देश जारी करने की माँग की गई थी।
  • हालाँकि, वर्ष 2018 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने ‘प्रीमेंस्ट्रुअल स्ट्रेस सिंड्रोम’ के कारण मानसिक और भावनात्मक अस्थिरता के आधार पर हत्या व हत्या का प्रयास करने वाली एक महिला को बरी कर दिया था।

प्रभाव

  • मासिक धर्म के कारण महिलाओं को सुरक्षा संबंधी विभिन्न खतरों का सामना करना पड़ता है। जागरूकता, स्वच्छता प्रबंधन व असुविधाओं के चलते महिलाओं को संक्रमण तथा बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है।
  • साथ ही, सामाजिक और पारिवारिक बहिष्कार के साथ-साथ शिक्षा, रोजगार और अन्य गतिविधियों में भी महिलाओं को समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • इस दौरान समाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों में उनके हिस्सा लेने पर पाबंदी लगा दी जाती है, जिससे उनमें मानसिक संत्रास, तनाव और डर का वातावरण पनपने लगता है।
  • मासिक धर्म के दौरान पितृसत्तात्मक नियंत्रण और महिलाओं के व्यवहार व आवाजाही पर पाबंदियाँ उनके समानता के अधिकार को कमज़ोर करती हैं। साथ ही, उन्हें जिस तरह से कलंक और शर्मिंदगी का एहसास कराया जाता है वह उनको कमज़ोर बनाता है।

उपाय

  • इस संबंध में यथा शीघ्र दिशा-निर्देश जारी करने के साथ-साथ इसके अनुपालन के लिये एक प्रभावी तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है।साथ ही, सभी सार्वजनिक और निजी संस्थाओं को भी तत्काल प्रभाव से मासिक धर्म के आधार पर सामाजिक बहिष्कार रोकने के लिये निर्देश दिया जाना चाहिये।
  • महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव पर अंकुश लगाने के लिये विशेष प्रावधान करने के साथ-साथ एक स्वस्थ और सार्थक विमर्श आवश्यक है।
  • माहवारी से जुड़ी अनुचित धारणाओं को समाप्त करने के लिये मीडिया, शोध कार्यों, नीति निर्माण प्रक्रिया और सांस्कृतिक विमर्शों के माध्यम से अधिक प्रयास किये जाने की ज़रूरत है।
  • साहित्य, सिनेमा (जैसे- पैडमैन) और सोशल मीडिया के द्वारा भी इसके संबंध में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है।
« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR