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असम के चाय बागान : आजीविका एवं भुखमरी का खतरा

(प्रारम्भिक परीक्षा: आर्थिक एवं सामाजिक विकास, आर्थिक भूगोल)

(मुख्य परीक्षा: सामान्य अध्ययन, प्रश्नपत्र-3: भारतीय अर्थव्यवस्था, विकास, प्रगति एवं रोज़गार से सम्बंधित विषय)

पृष्ठभूमि

कोविड-19 से निपटने हेतु देश में लागू लॉकडाउन के बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय ने असम के चाय बागानों में कार्य शुरू करने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

क्या हैं दिशा-निर्देश?

  • चाय बागानों को 50 प्रतिशत कर्मचारियों के साथ कार्य करने की अनुमति दी गई है।
  • प्लकिंग  ऑपरेशन  के तहत इन चाय बागानों में सामाजिक दूरी एवं अन्य रक्षोपायों का अनुसरण करते हुए चाय मज़दूरों को पत्तियाँ तोड़ने की मंज़ूरी दी गई है।
  • साथ ही, असम सरकार द्वारा गुवाहाटी टी ऑक्शन में चाय की नीलामी को अनुमति दे दी गई है। ध्यातव्य है कि पिछले वर्ष के चाय उत्पादन की अभी तक पूर्ण रूप से नीलामी नहीं हो पाई है, जिसके चलते इस उद्योग में तरलता का संकट बना हुआ है।

असम  चाय  बागानों  का  महत्त्व

  • भारत विश्व में चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। साथ ही, भारत चाय के वैश्विक व्यापार में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
  • असम देश का सबसे बड़ा चाय उत्पादक राज्य है, यहाँ देश में कुल चाय उत्पादन का 50 प्रतिशत से भी अधिक उत्पादन किया जाता है। साथ ही, यह क्षेत्रीय स्तर पर आजीविका का एक महत्त्वपूर्ण साधन भी है।
  • उल्लेखनीय है कि असम में 800 से अधिक बड़े तथा 6000 से ज़्यादा छोटे चाय बागान हैं। इन चाय बागानों से 20 लाख लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर रोज़गार मिलता है।
  • भारत वैश्विक बाज़ार में चाय का एक बड़ा निर्यातक है। इसके निर्यात से भारत विदेशी मुद्रा का अर्जन करता है, जिससे भारत के व्यापार घाटे के साथ-साथ चालू खाते के घाटे में कमी होती है।

चुनौतियाँ

  • कोरोना संकट से पहले ही देश में चाय उद्योग प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर रहा है। साथ ही, कोविड-19 महामारी के कारण इस उद्योग के लगभग 12 लाख मजदूरों की आजीविका संकट में है।
  • वैश्विक बाज़ारों में भारतीय चाय को श्रीलंका और केन्या जैसे देशों की चाय से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है।
  • साथ ही, कई चाय बागानों में मज़दूरों ने कोरोना संक्रमण के भय से खुद ही काम पर आना बंद कर दिया है, जिससे कामगारों की उपलब्धता का संकट खड़े होने की आशंका है। इसके अतिरिक्त, चाय बागानों में समय पर मज़दूरी ना दिया जाना और अन्य राज्यों की तुलना में न्यूनतम दैनिक मज़दूरी का कम होना भी एक बड़ी समस्या है।
  • चाय उद्योग के सामने गुणवत्ता की भी एक बड़ी समस्या है। छोटे चाय उत्पादक कीटनाशक का प्रयोग अधिक करते हैं, जबकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एमआरएल (Minimum Residue Limit) मानकों के अनुसार चाय की खेती में कीटनाशकों के प्रयोग का स्तर निर्धारित किया गया है।

टी बोर्ड भारत : यह केंद्र सरकार की एक एजेंसी है, जिसकी स्थापना 1 अप्रैल, 1954 को चाय अधिनियम, 1953 के तहत की गई थी। इसका मुख्यालय कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में है।

नोट : ध्यातव्य है कि भारत में चाय उद्योग केंद्र सरकार के नियंत्रण में आता है।

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सुझाव

  • चाय बागानों में पहले कई बार भुखमरी फैल चुकी है। इसलिये चाय मज़दूरों को वेतन भुगतान के लिये सरकारी समर्थन दिया जाना चाहिये। साथ ही, काम ना होने की स्थिति में भी उनके खाते में साप्ताहिक रूप से एक निश्चित धनराशि हस्तांतरित की जानी चाहिये।
  • चाय उद्योग को सरकार द्वारा वित्तीय राहत पैकेज प्रदान किये जाने की आवयशकता है। साथ ही, चाय के उचित मूल्य की खोज हेतु सरकार द्वारा एक मज़बूत प्रशासनिक तंत्र बनाए जाने की भी आवश्यकता है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिये अगर सरकार द्वारा आवश्यक कदम नहीं उठाए गए तो कई महत्त्वपूर्ण वैश्विक बाज़ारों के खोने का खतरा है।
  • साथ ही, चाय बागानों की झाड़ियाँ काफी पुरानी हो चुकी हैं, जिनसे उत्पादकता निरंतर घटती जा रही है। अतः योजना बनाकर नई एवं अच्छी किस्म की झाड़ियाँ लगाए जाने की ज़रूरत है। इससे गुणवत्ता तथा उत्पादकता दोनों में वृद्धि होगी।

क्या  हो  आगे  की  राह?

  • भारत में चाय का सामाजिक, सांस्कृतिक, व्यावसायिक और राजनैतिक महत्त्व है।
  • वर्तमान में सरकार को लोगों का जीवन और उनकी आजीविका बचाने के लिये समग्र रूप में तत्काल हस्तक्षेप किये जाने की आवश्यकता है।
  • विदित है कि पूर्वोत्तर का क्षेत्र देश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में पिछड़ा हुआ हुआ है। इसलिये, सबका साथ सबका विकास की अवधारणा के तहत इस क्षेत्र पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
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