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शॉर्ट न्यूज़: 30 जनवरी, 2021

शॉर्ट न्यूज़: 30 जनवरी, 2021


राम सेतु : मिथक या इतिहास


राम सेतु : मिथक या इतिहास

(प्रारंभिक परीक्षा – राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ)

संदर्भ

हिंदू पौराणिक ग्रंथ रामायण में राम सेतु का उल्लेख मिलता है, इसकी सत्यता की जाँच के लिये भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के अंतर्गत कार्यरत केंद्रीय सलाहकारी बोर्ड ने राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (NIO) द्वारा इसकी उत्पत्ति एवं इस पर एकत्रित अवसादों के अध्ययन को मंजूरी दी है।

क्या है राम सेतु?

श्रीलंका में  मन्नार की खाड़ी से लेकर भारत के रामेश्वरम तक समुद्र में दिखने वाली चट्टानों की  संरचना को राम सेतु कहा जाता है। इसे एडम्स ब्रिज (आदम का पुल) भी कहते है। इसकी लंबाई लगभग 48 किमी. है। गौरतलब है कि नासा ने इसका एक चित्र भी जारी किया था ।

राम सेतु पर विवाद

वर्ष 2005 में भारत सरकार ने सेतु समुद्रम परियोजना को मंजूरी प्रदान की थी, जिसके लिये  सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में एक एफिडेविट प्रस्तुत किया था। इसमें इसके अस्तित्त्व को अस्वीकार कर दिया गया था, जिसे सुब्रमण्यम स्वामी ने चुनौती दी थी। फलस्वरूप सर्वोच्च न्यायालय ने इस पुल के प्राकृतिक होने या मानव निर्मित होने की जाँच के निर्देश दिये थे।

राम सेतु प्रोजेक्ट

  • एन.आई.ओ तीन वर्षो तक रामसेतु पुल का अध्ययन करेगा ताकि इसकी उपस्थिति का पता लगाया जा सके।
  • इसके लिये कार्बन डेटिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा ताकि इसकी आयु का निर्धारण किया जा सके।
  • इसके ऊपर जमा अवसाद को हटाकर इसकी वास्तविक सरंचना का पता लगाया जायेगा तथा फोटोग्राफ लिये जाएंगे।

मुख्य परीक्षण

  • साइड स्कैन सोनार टेस्ट- यह स्थल की सरंचना का टोपोग्राफी अध्ययन कर सकेगा। जिसके अंतर्गत ध्वनि तरंगो को संरचना तक भेजकर पुल की भौतिक संरचना का रेखांकन किया जा सकेगा।
  • साइलो सिस्मिक सर्वे- इसके अंतर्गत संरचना तक हल्के भूकंपीय झटके पहुँचाए जाएंगे, जिससे प्राप्त सिगनल से पुल की ऊपरी संरचना का पता लगाया जा सकेगा ।

महत्त्व

  • भारत का तटीय क्षेत्र लगभग 7500 किमी. से अधिक है। यह अध्ययन समुद्री जल- स्तर से जलवायवीय एवं स्थलीय सरंचना में आए बदलाव को स्पष्ट कर सकेगा।
  • विभिन्न पौराणिक एवं धार्मिक ग्रंथों में कही गई बातों की प्रामाणिकता भी सत्य सिद्ध हो सकेगी, जिन्हें भविष्य में एक दस्तावेज की मान्यता मिल पाने में सहूलियत होगी।
  • साथ ही, भारत समुद्र के नीचे मौजूद कई संरचनाओ, जैसे- द्वारका तथा अन्य के संबंध में अपने अनुसंधान को आगे बढ़ा सकेगा।

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