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कृषि अवसंरचना कोष: कृषि क्षेत्र के विकास का पहिया

(प्रारम्भिक परीक्षा; आर्थिक और सामाजिक विकास- सामाजिक क्षेत्र में की गई पहल आदि)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र - 3; भारत में खाद्य प्रसंस्करण एवं सम्बंधित उद्योग- कार्य क्षेत्र एवं महत्त्व, स्थान ,ऊपरी और नीचे की अपेक्षाएँ, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कृषि अवसंरचना कोष (Agriculture Infrastructure Fund) के तहत वित्तपोषण की एक नई केंद्रीय क्षेत्र योजना (Central Sector Scheme) की शुरुआत की गई है।

मुख्य बिंदु

  • इसके तहत सरकार ने कई ऋण देने वाली संस्थाओं के साथ समझौता करके एक लाख करोड़ रुपए की वित्तपोषण की योजना की शुरुआत की है। इसमें सार्वजानिक क्षेत्र के 12 बैंकों में से 11 बैंकों द्वारा पहले ही कृषि सहयोग और किसान कल्याण विभाग के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर लिये गए हैं।
  • सरकार द्वारा इस योजना के अंतर्गत लाभार्थियों को 3 % ब्याज सब्सिडी और 2 करोड़ रुपए तक की ऋण प्रतिभूति देने की घोषणा की गई है।
  • योजना के अंतर्गत ऋण की गारंटी सरकार द्वारा दिये जाने से किसानों और संस्थाओं के जोखिम का प्रसार होता है।
  • यह योजना किसानों, प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (Primary Agricultural Credit Societies), किसान उत्पादक संगठन (Farmers Producers Organisations - FPO) और कृषि उद्यमियों आदि को सामुदायिक कृषि परिसम्पत्तियों (Community Agricultural Assets) तथा फसल उपरान्त कृषि अवसंरचना के निर्माण में सहायता प्रदान करेगी।
  • इस योजना की सहायता से कृषि उपज का अधिक मूल्य उचित भण्डारण और उसके विक्रय के साथ-साथ अपव्यय को कम करने तथा प्रसंस्करण और मूल्यवर्धन (Value Addition) कर कृषि क्षेत्र से अधिक लाभ कमाया जा सकता है।
  • यह योजना कृषि क्षेत्र की मूल्य श्रृंखला (Value Chain) को मज़बूत और बेहतर बनाने में सहायता प्रदान करेगी।

कृषि अवसंरचना कोष

  • इस कोष की घोषणा इसी वर्ष मई में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा आत्मनिर्भर भारत आर्थिक पैकेज के अंतर्गत की गई थी। इस कोष का मुख्य उद्देश्य गाँवों में निजी निवेश और नौकरियों को बढ़ावा देना है।
  • इस कोष के अंतर्गत कोल्ड स्टोरेज, वेयर हाउस, कलेक्शन सेंटर, और प्रसंस्करण इकाइयाँ, गुणवत्ता केंद्र, पैकेजिंग यूनिट और ई-प्लेटफॉर्म्स की स्थापना की जाएगी, जिससे कृषि के बुनयादी ढाँचे का विकास होगा। फसल उत्पादन के बाद उसके प्रबंधन से सम्बंधित अवसंरचना के निर्माण में भी सहायता मिलेगी।
  • कृषि अवसंरचना (Agriculture Infrastructure) के निर्माण से किसानों के पास फल, सब्जी और अन्य कृषि उत्पादों को रखने हेतु बेहतर भण्डारण की सुविधा प्राप्त होगी। कोल्ड स्टोरेज में किसान अपनी फसल रख पाएंगे। इससे फसलों की बर्बादी कम होगी और उचित समय पर उचित कीमत के साथ किसान अपनी फसल को बेच पाएंगे।खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों (Food Processing Units) के लग जाने से भी किसानों को बहुत फायदा होगा और प्रत्येक वर्ष होने वाले नुकसान में भी कमी आएगी।
  • किसानों के लिये खेतों के आस-पास के क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में कोल्ड-चेन और कटाई के बाद के प्रबंधन के बुनयादी ढाँचे की कमी को देखते हुए इस योजना की शुरुआत की गई है।
  • एक लाख करोड़ रुपए के कोष की इस योजना की अवधि 10 वर्ष अर्थात 2020 से 2029 तक होगी इसके तहत पहले वर्ष में 10,000 करोड़ रुपए और उसके बाद प्रत्येक 3 साल में 30-30 हज़ार करोड़ रुपए दिये जाएंगे ।इस प्रकार 10 वर्ष में पूरे एक लाख करोड़ रुपए का ऋण वितरित किया जाएगा।
  • इस कोष की निगरानी एक ऑनलाइन प्रबंधन सूचना प्रणाली (Management Information System-MIS) के द्वारा की जाएगी,जिसमें पात्र लोग ऋण के लिये आवेदन कर सकेंगे। इस प्रणाली के द्वारा राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर वास्तविक समय (रियल टाइम) में निगरानी की जाएगी।
  • इस ऋण के भुगतान में 6 महीने से 2 साल तक का मोरेटोरियम (ऋण वापसी की अवधि) का लाभ मिल सकता है साथ ही 3 % वार्षिक ब्याज की छूट भी प्राप्त होगी।यह ब्याज छूट अधिकतम 7 वर्ष तक के लिये होगी।पात्र आवेदकों को उनके ऋण पर क्रेडिट गारंटी भी उपलब्ध होगी।यह सूक्ष्म और लघु उद्योगों के लिये बने क्रेडिट गारंटी फण्ड ट्रस्ट (C.G.T.M.S.E.) के अंतर्गत ही प्रदान की जाएगी, जो कि 2 करोड़ रुपए तक के ऋण पर उपलब्ध होगी।

भारत के कृषि क्षेत्र पर एक नज़र

  • कृषि क्षेत्र में देश की लगभग आधी श्रम आबादी कार्यरत है।लेकिन जी.डी.पी. में इसका योगदान केवल 17.5 % है।पिछले कुछ दशकों के दौरान, अर्थव्यवस्था के विकास में विनिर्माण और सेवा क्षेत्र का योगदान तेज़ी से बढ़ा है, जबकि कृषि क्षेत्र के योगदान में गिरावट हुई है।
  • भारत का खद्यान उत्पादन प्रत्येक वर्ष बढ़ रहा है। भारत गेहूं, चावल, दालें, गन्ने और कपास का प्रमुख उत्पादक है।यह दूध उत्पादन में पहले और फलों और सब्जियों के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है।
  • हालाँकि अनेक फसलों के मामले में चीन, ब्राज़ील और अमेरिका जैसे बड़े कृषि उत्पादक देशों की तुलना में भारत की कृषि उपज कम है (प्रति हेक्टेयर जमीन में उत्पादित होने वाली फसल की मात्रा)।
  • भारत में कृषि की उत्पादकता को प्रभावित करने वाले कई कारक हैं, जैसे खेती की ज़मीन का आकार घट रहा है तथा सिंचाई की पर्याप्त सुविधा न होने के कारण किसान आज भी काफी हद तक मानसून पर निर्भर हैं।
  • उर्वरकों के असंतुलित प्रयोग के कारण मृदा की उर्वरता में निरंतर कमी आ रही है तथा देश के विभिन्न क्षेत्रों में कृषि के लिये आधुनिक तकनीक उपलब्ध नहीं है और न ही कृषि के लिये औपचारिक ऋण उपलब्ध हो पाता है।
  • सरकारी एजेंसियों द्वारा खाद्यानों की पूरी ख़रीद नहीं की जाती और किसानों को लाभकारी मूल्य नहीं मिल पाता है।

आगे की राह

  • इस योजना को अन्य सम्बंधित योजनाओं के साथ जोड़ा जाना चाहिये,जैसे मत्स्य पालन तथा पशुपालन।
  • भारत को जैविक खाद्य (आर्गेनिक फ़ूड) तथा अन्य बढ़त वाले क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने की ओर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • सरकार को जमीन की पट्टेदारी हेतु कानून बनाने पर विचार करना चाहिये तथा किसानों को जल का कुशलता पूर्वक उपयोग करने हेतु आधुनिक तकनीकों से अवगत करवाया जाना चाहिये।
  • किसान मेहनत करना जानता है तथा उसने कृषि उत्पादन को गत वर्षों में बढाकर भी दिखाया है लेकिन किसानों को अपने आर्थिक भविष्य को सुरक्षित करने के लिये किसान से व्यवसायी बनना होगा।
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