कृषि और जैव विविधता का रिश्ता गहराई से जुड़ा हुआ है — कृषि जैव विविधता पर निर्भर भी है और उसकी संरक्षक भी। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में, जहां लगभग 55% जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है, वहां जैव विविधता का संरक्षण खाद्य सुरक्षा, पोषण, आजीविका और पारिस्थितिक संतुलन के लिए अत्यंत आवश्यक है।
परंतु आधुनिक कृषि में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और एकल फसल प्रणाली (monocropping) के अत्यधिक उपयोग ने जैव विविधता में चिंताजनक गिरावट लाई है।

वैश्विक और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य (Global & National Context)
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स्तर
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प्रमुख पहल / कानून
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वैश्विक स्तर
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- जैव विविधता पर कन्वेंशन (Convention on Biological Diversity - CBD, 1992)
- नागोया प्रोटोकॉल (2010) – लाभ साझा करने का ढांचा
- FAO का Global Plan of Action on Agricultural Biodiversity
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राष्ट्रीय स्तर
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- जैव विविधता अधिनियम, 2002
- राष्ट्रीय कृषि नीति, 2000
- राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA)
- राष्ट्रीय कृषि जैव विविधता कार्ययोजना (2019)
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कृषि जैव विविधता (Agrobiodiversity) क्या है?
कृषि जैव विविधता उन सभी जीवित घटकों को संदर्भित करती है जो कृषि और खाद्य उत्पादन प्रणाली का हिस्सा हैं।
इसमें शामिल हैं:
- फसल विविधता (Crop Diversity) – विभिन्न फसलों और उनकी किस्मों की विविधता
- पशुधन विविधता (Livestock Diversity) – पशु प्रजातियाँ और नस्लें
- मृदा जैव विविधता (Soil Biodiversity) – सूक्ष्मजीव, फफूंद, कीट, कृमि आदि
- जलीय जैव विविधता (Aquatic Biodiversity) – मछलियाँ, शैवाल, जलीय पौधे आदि
- परागण और पारिस्थितिक सेवाएं (Pollinators & Ecosystem Services) – मधुमक्खियाँ, पक्षी, तितलियाँ, कीट आदि
भारत में कृषि जैव विविधता (Agrobiodiversity in India)
- भारत में तकरीबन 166 फसलें और 3200+ किस्में परंपरागत रूप से उगाई जाती रही हैं।
- यह देश “Vavilov Centre of Crop Origin” में से एक है (धान, गन्ना, मूंग, अरहर जैसी फसलों की उत्पत्ति का केंद्र)।
- भारत के पास 50,000+ धान किस्मों और 1,500+ गेहूं किस्मों का जीन भंडार है।
मुख्य चुनौतियाँ (Major Challenges)
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चुनौती
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विवरण
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1. मोनोकल्चर (Monocropping)
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केवल एक फसल पर निर्भरता से पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ता है।
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2. पारंपरिक बीजों का क्षरण
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उच्च उत्पादकता वाले HYV बीजों ने देशी बीजों को विस्थापित किया।
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3. रासायनिक कृषि (Chemical Inputs)
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कीटनाशकों और उर्वरकों से मिट्टी की जैविक विविधता घट रही है।
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4. जलवायु परिवर्तन
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सूखा, बाढ़ और अस्थिर मौसम पैटर्न से फसल विविधता प्रभावित।
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5. भूमि क्षरण (Land Degradation)
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भारत में लगभग 30% भूमि किसी न किसी रूप में क्षरणग्रस्त।
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6. पारंपरिक ज्ञान की उपेक्षा
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स्थानीय किसानों के जैविक ज्ञान और बीज संरक्षण पर कम ध्यान।
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डेटा और रिपोर्ट्स (Important Reports & Facts)
- FAO (2023): विश्व स्तर पर पिछले 100 वर्षों में 75% कृषि जैव विविधता नष्ट हो चुकी है।
- IPBES (2022): कृषि भूमि के विस्तार से वैश्विक जैव विविधता हानि में लगभग 70% योगदान।
- भारत: 2022 में केवल 10 प्रमुख फसलें कुल खाद्य उत्पादन का 80% से अधिक योगदान देती हैं।
कृषि में जैव विविधता संरक्षण के उपाय (Strategies for Agrobiodiversity Conservation)
1. In-situ Conservation (स्थल पर संरक्षण):
- पारंपरिक कृषि प्रणालियों में बीज, फसल और जीव संरक्षण।
- उदाहरण: झूम खेती, झारखंड की कोदो-कुटकी खेती, उत्तराखंड की बाखली प्रणाली।
2. Ex-situ Conservation (स्थल के बाहर संरक्षण):
- जीन बैंकों, बीज भंडारों और ऊतक संस्कृति प्रयोगशालाओं में संरक्षण।
- भारत में:
- राष्ट्रीय जीन बैंक (National Gene Bank) – राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (NBPGR), नई दिल्ली।
- राष्ट्रीय बीज निगम (NSC)
- ICAR और CGIAR नेटवर्क
3. पारंपरिक बीज संरक्षण कार्यक्रम:
- Navdanya, Beej Bachao Andolan (चिपको आंदोलन से जुड़ा पहल), Krishi Vigyan Kendras द्वारा स्थानीय बीजों का पुनरुद्धार।
4. सतत कृषि मॉडल:
- ऑर्गैनिक खेती
- ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (ZBNF)
- मल्टी-क्रॉपिंग और मिश्रित खेती (Mixed Cropping)
- Agroforestry (कृषि वानिकी)
- Integrated Farming Systems (IFS)
5. नीति और संस्थागत पहलें:
- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY)
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM)
- राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) – जैविक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान की रक्षा के लिए।
- Biodiversity Management Committees (BMCs) – ग्राम स्तर पर जैव विविधता रजिस्टर बनाए जा रहे हैं।
कृषि जैव विविधता और सतत विकास लक्ष्य (SDGs)
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SDG
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उद्देश्य
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कृषि जैव विविधता से संबंध
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SDG 2
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Zero Hunger
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पोषक विविधता और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना
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SDG 13
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Climate Action
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जलवायु-अनुकूल फसलें विकसित करना
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SDG 15
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Life on Land
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भूमि पारिस्थितिकी और फसल विविधता का संरक्षण
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SDG 12
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Responsible Consumption
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स्थानीय, पारंपरिक खाद्य प्रणाली को प्रोत्साहन
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भारत के लिए आगे की राह (Way Forward)
- कृषि जैव विविधता नीति का अद्यतन: Climate-resilient crops पर केंद्रित राष्ट्रीय नीति आवश्यक।
- लोकल बीज बैंकों का सशक्तीकरण: पंचायत स्तर पर बीज संरक्षण और आदान-प्रदान तंत्र विकसित करना।
- किसानों को प्रोत्साहन: जैव विविधता बढ़ाने वाले किसानों को इको-क्रेडिट्स या ग्रीन सब्सिडी देना।
- शोध एवं नवाचार: देशी किस्मों में gene editing और climate adaptation research।
- पारंपरिक ज्ञान का दस्तावेजीकरण: आदिवासी और ग्रामीण समुदायों की जैव विविधता परंपराओं का औपचारिक संरक्षण।
- नागरिक जागरूकता: उपभोक्ताओं को local food diversity की ओर प्रेरित करना।
निष्कर्ष (Conclusion)
कृषि जैव विविधता न केवल खाद्य सुरक्षा की नींव है, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन से मुकाबले की सबसे प्रभावी रणनीति भी है। भारत जैसे देश में, जहाँ कृषि और प्रकृति सह-अस्तित्व का प्रतीक रही हैं, वहां संरक्षण की दिशा में संतुलित नीति, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सामुदायिक सहभागिता अत्यंत आवश्यक है।