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चारधाम परियोजना और पर्यावरणीय चिंताएँ

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3: पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी; पर्यावरणीय प्रभाव आकलन)

सन्दर्भ

हाल ही में पर्यावरणविदों ने सर्वोच्च न्यायालय से अपील की है कि वह चारधाम परियोजना पर वर्ष 2021 के अपने मार्ग चौड़ा करने के निर्णय पर पुनः विचार करे। मार्गों के चौड़ा होने से पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान एवं भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाएँ बढ़ रही हैं।

चारधाम परियोजना के बारे में

  • प्रारम्भ : दिसंबर 2016 में
  • संचालन : सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा
  • उद्देश्य : उत्तराखंड के प्रमुख चारधाम स्थलों- यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ; को अखिल भारतीय सड़क नेटवर्क से जोड़ना।
  • बजट : लगभग 9,474 करोड़ रुपये (889 किमी. राजमार्ग निर्माण)
  • परियोजना में पहाड़ी सड़कों को चौड़ा करने का काम भी शामिल है, जिनमें से कई सड़कें भारत-चीन सीमा तक जाने वाले रणनीतिक मार्ग भी हैं।
  • इनमें भागीरथी ईको-संवेदनशील क्षेत्र (BESZ) जैसे संवेदनशील क्षेत्र भी शामिल हैं।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (2021)

  • एक विशेषज्ञ समिति ने न्यायालय में सिफारिश की थी कि सड़कों की चौड़ाई अधिकतम 5.5 मीटर रखी जाए ताकि पारिस्थितिक संतुलन न बिगड़े।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने प्रारंभ में इस सिफारिश को मानते हुए सरकार को यही निर्देश दिया था।
  • लेकिन डोकलाम गतिरोध और रक्षा मंत्रालय की दलीलों के बाद कोर्ट ने सरकार को तीन प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्गों- ऋषिकेश–माणा, ऋषिकेश–गंगोत्री और टनकपुर–पिथौरागढ़; की चौड़ाई 10 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति दे दी, ताकि सेना के उपकरण और सैनिकों की तेज़ आवाजाही संभव हो सके।

पर्यावरणविदों की हालिया माँग

  • सर्वोच्च न्यायालय से वर्ष 2021 के आदेश की समीक्षा और वापसी की माँग की गई है।
  • सड़क चौड़ीकरण से पेड़, वनावरण और पहाड़ी ढलानों का बड़े पैमाने पर विनाश हो रहा है।
  • परिणामस्वरूप भूस्खलन, भू-स्खलन क्षेत्र (sinking zones), और सड़क अवरोध लगातार बढ़ रहे हैं।
  • यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ और पिथौरागढ़ जैसे मार्गों पर बरसात के मौसम में सड़कें अक्सर अवरुद्ध और अनुपयोगी हो जाती हैं।
  • हाल के वर्षों में हिमस्खलन, ग्लेशियर टूटने और भारी वर्षा से हुई तबाही ने स्थिति और भी गंभीर कर दी है।

चुनौतियाँ

  • सुरक्षा बनाम पर्यावरण: सीमा सुरक्षा और सैन्य तैनाती के लिए चौड़ी सड़कें आवश्यक, लेकिन पर्यावरणीय नुकसान भी गंभीर।
  • भूस्खलन और आपदा जोखिम: सड़क चौड़ीकरण से मिट्टी ढीली होती है और आपदा की आशंका बढ़ती है।
  • स्थानीय जनजीवन: सड़क अवरोध और आपदा से स्थानीय लोगों और यात्रियों को भारी दिक़्क़तें होती हैं।
  • संतुलन की कमी: विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने में असफलता।

आगे की राह

  • समीक्षा की आवश्यकता: सर्वोच्च न्यायालय को विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों पर पुनर्विचार करना चाहिए।
  • सतत विकास: सड़क निर्माण में आधुनिक तकनीक और पर्यावरण-मित्र तरीकों का इस्तेमाल हो।
  • स्थानीय भागीदारी: स्थानीय समुदाय और वैज्ञानिकों की सलाह से सड़क निर्माण हो।
  • आपदा प्रबंधन योजना: भूस्खलन, बाढ़ और हिमस्खलन जैसी आपदाओं से निपटने के लिए मजबूत तंत्र तैयार किया जाए।
  • संतुलित दृष्टिकोण: राष्ट्रीय सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण दोनों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिए जाएँ।

निष्कर्ष

चारधाम परियोजना भारत के धार्मिक और सामरिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके पर्यावरणीय प्रभाव को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सर्वोच्च न्यायालय से की गई पुनर्विचार की अपील यह दर्शाती है कि अब आवश्यकता है विकास और पारिस्थितिकी के बीच संतुलन बनाने की। यदि परियोजना को वैज्ञानिक और सतत विकास के मानकों के साथ लागू किया जाए तो यह न केवल यात्रियों और सेना के लिए सुरक्षित होगी, बल्कि हिमालयी पर्यावरण को भी सुरक्षित रखेगी।

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