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दुर्लभ मृदा खनिजों का संरक्षण

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र- 2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा उनके अभिकल्पन व कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)

संदर्भ

भारत सरकार ने राज्य संचालित खनन कंपनी इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL) को जापान को दुर्लभ मृदा खनिजों (REM) का निर्यात रोकने का निर्देश दिया है।

दुलर्भ मृदा खनिजों के बारे में

  • यह खनिज दुर्लभ मृदा तत्वों से बने यौगिक होते हैं। यह दुर्लभ मृदा तत्व 17 रासायनिक तत्वों का एक समूह है।
  • इनमें 15 लैंथेनाइड श्रृंखला के तत्व (लैंथेनम, सेरियम, प्रासियोडिमियम, नियोडिमियम, प्रोमेथियम, सैमेरियम, यूरोपियम, गैडोलिनियम, टर्बियम, डिस्प्रोसियम, होल्मियम, एर्बियम, थुलियम, यटरबियम, ल्यूटेशियम) और दो अन्य तत्व स्कैंडियम व यट्रियम शामिल हैं।
  • ये तत्व अपनी अद्वितीय चुंबकीय, विद्युत, और ऑप्टिकल गुणों के कारण उच्च प्रौद्योगिकी उद्योगों में महत्वपूर्ण हैं।

इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL) के बारे में

  • यह भारत सरकार के तहत एक सार्वजनिक उपक्रम है जो दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के खनन, प्रसंस्करण एवं शोधन का कार्य करती है। 
  • इसकी स्थापना 1950 में हुई थी और यह मुख्यत: परमाणु ऊर्जा एवं रक्षा क्षेत्र के लिए सामग्री प्रदान करती है। 
  • ओडिशा में इसका दुर्लभ मृदा खनिज निष्कर्षण संयंत्र है और केरल में एक रिफाइनिंग इकाई है। 
  • यह घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में दुर्लभ पृथ्वी पदार्थों की आपूर्ति करती है।

भारत सरकार की हालिया मांग

  • भारत सरकार ने IREL से यह मांग की है कि वह जापान को दुर्लभ पृथ्वी पदार्थों का निर्यात स्थगित करे और इन पदार्थों की घरेलू आपूर्ति सुनिश्चित करे।
    • इसके लिए भारत-जापान समझौते (2012) को स्थगित करना होगा।
  • इससे चीन पर निर्भरता कम करने के प्रयास में मदद मिल सकती है। 
  • वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत ने 53,748 मीट्रिक टन दुर्लभ मृदा तत्व आयात किए, जो मुख्य रूप से चीन से आए।
  • भारत इस दिशा में अपनी खनन क्षमता को बढ़ाने और घरेलू प्रसंस्करण क्षमता विकसित करने के लिए कदम उठा रहा है।

भारत-जापान समझौता (2012)

  • वर्ष 2012 में भारत एवं जापान के बीच एक द्विपक्षीय समझौता हुआ था, जिसके तहत IREL ने जापान के टॉयोटा टसुशो के सहयोग से जापान को दुर्लभ पृथ्वी पदार्थों का निर्यात करना शुरू किया। 
  • इस समझौते के तहत IREL ने वर्ष 2024 में जापान को 1,000 मीट्रिक टन दुर्लभ मृदा खनिज निर्यात किए थे, जो कुल खनन (2,900 टन) का एक-तिहाई है। 
  • यह समझौता भारत के लिए रणनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण बन गया है क्योंकि घरेलू प्रसंस्करण क्षमता की कमी के कारण भारत अपनी सामग्री निर्यात कर रहा है।

भारत में REM की मांग

  • इलेक्ट्रिक वाहन (EV) उद्योग : नियोडिमियम जैसे तत्व EV मोटरों में चुंबक निर्माण के लिए आवश्यक हैं।
  • नवीकरणीय ऊर्जा : पवन टरबाइन एवं सौर ऊर्जा उपकरणों में दुर्लभ मृदा तत्वों का उपयोग होता है।
  • रक्षा और परमाणु ऊर्जा : ये सामग्रियां मिसाइल, रडार एवं परमाणु रिएक्टरों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • चिकित्सा एवं हाई-टेक क्षेत्र : MRI मशीनों और अन्य उपकरणों में उपयोग। 

चुनौतियाँ

  • घरेलू प्रसंस्करण क्षमता की कमी
  • चीन पर अत्यधिक निर्भरता
  • खनन परियोजनाओं में देरी
  • तकनीकी एवं बुनियादी ढांचा की कमी

आगे की राह

  • घरेलू प्रसंस्करण क्षमता का विकास
  • उन्नत खनन व प्रसंस्करण तकनीकों में निवेश
  • जापान जैसे मित्र देशों के साथ सहयोग को संतुलित करते हुए वैकल्पिक आपूर्ति स्रोतों की तलाश
  • खनन मंजूरी प्रक्रिया को तेज करना और निजी क्षेत्र को शामिल करना
  • खनन एवं प्रसंस्करण में पर्यावरणीय मानकों का पालन सुनिश्चित करना

निष्कर्ष

भारत सरकार का यह कदम दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के संरक्षण और स्वदेशी उत्पादन क्षमता को बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण है। यह चीन पर निर्भरता को कम करने और घरेलू उद्योगों की माँग को पूरा करने के लिए एक सकारात्मक कदम हो सकता है, बशर्ते इसे सही नीति, निवेश व वैश्विक साझेदारियों के साथ साकार किया जाए।

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