(प्रारंभिक परीक्षा: अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, सामान्य विज्ञान) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास एवं अनुप्रयोग और रोज़मर्रा के जीवन पर इसका प्रभाव) |
संदर्भ
- तमिलनाडु खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (FDA) को कांचीपुरम स्थित मेसर्स श्रीसन फार्मा के विनिर्माण परिसर से लिए गए कोल्ड्रिफ कफ सिरप के नमूनों में डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) की मात्रा अनुमेय सीमा से अधिक मिली।
- इसके बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने छह राज्यों में फैली 19 दवा निर्माण इकाइयों में जोखिम-आधारित निरीक्षण (Risk-Based Inspection) शुरू कर दिया। इस कदम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अन्य दवाओं में ऐसी खतरनाक मिलावट न हो और नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा की जा सके।
प्रमुख बिंदु
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जांच में पाया गया कि तमिलनाडु एफ.डी.ए. द्वारा एकत्रित नमूनों में DEG की मात्रा काफी अधिक थी। हालांकि, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) द्वारा लिए गए छह नमूनों तथा मध्य प्रदेश एफ.डी.ए. के शुरुआती तीन नमूनों में डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) एवं एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) का अंश नहीं पाया गया।
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हालाँकि, राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (NIV), भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR), राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI) और एम्स नागपुर सहित कई संस्थानों के विशेषज्ञों की बहु-विषयक टीम गहन जांच में जुटी हुई है।
डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) और एथिलीन ग्लाइकॉल (EG)
DEG एवं EG औद्योगिक रसायन हैं जिनका उपयोग पेंट, एंटीफ्रीज़, ब्रेक द्रव व प्लास्टिक निर्माण में होता है। निगरानी में कमी या सस्ती आपूर्ति के चलते ये कभी-कभी ग्लिसरीन जैसी औषधीय सामग्रियों में मिलकर गंभीर संदूषण पैदा कर देते हैं।
DEG/EG का स्वास्थ्य पर प्रभाव
- किडनी को क्षति : DEG/EG का सेवन एक्यूट ट्यूबलर इंजरी और किडनी फेल्योर का कारण बन सकता है।
- प्रारंभिक लक्षण : मतली, उल्टी, पेट दर्द एवं सामान्य कमजोरी।
- तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव: दौरे पड़ना और कोमा जैसी स्थिति की संभावना
- बच्चों में खतरा: शरीर का कम वजन और अंगों का विकासशील होना उन्हें और अधिक संवेदनशील बनाता है। इस प्रकार, ये रसायन कम मात्रा में भी घातक सिद्ध हो सकते हैं।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य: WHO की चेतावनी
- अक्टूबर 2022 से अब तक WHO ने DEG व EG से दूषित दवाओं पर छह वैश्विक चेतावनियाँ जारी की हैं। पहली बार गाम्बिया में बच्चों की मौत के मामलों के बाद यह मुद्दा सामने आया था।
- इसके बाद एशिया, यूरोप, पश्चिमी प्रशांत और पूर्वी भूमध्यसागर क्षेत्रों में भी ऐसी समस्याएँ सामने आईं। अनुमानतः इससे दुनिया भर में 300 से अधिक बच्चों की मौत हुई।
भारत में दवा बनाने वाली कंपनियों का विनियमन
1. केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO)
- यह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन कार्य करता है और इसकी जिम्मेदारियाँ हैं:
- दवा निर्माण और विपणन के लिए लाइसेंस जारी करना
- नई दवाओं के अनुमोदन की प्रक्रिया
- दवाओं के गुणवत्ता मानकों का पालन सुनिश्चित करना
- दवाओं के आयात-निर्यात पर नियंत्रण
2. प्रमुख कानूनी ढांचा
- ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 और नियम, 1945: दवाओं के उत्पादन, वितरण और विपणन को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कानून
- भारतीय फार्माकोपिया: दवाओं की शुद्धता और मानक तय करने वाला आधिकारिक दस्तावेज
3. राज्य औषधि नियंत्रण
राज्य स्तर पर भी औषधि नियंत्रण विभाग सक्रिय रहते हैं। वे विनिर्माण इकाइयों का निरीक्षण करते हैं, लाइसेंस जारी करते हैं और दवाओं के वितरण की गुणवत्ता पर निगरानी रखते हैं।
आगे की राह
- तमिलनाडु का यह मामला भारतीय दवा उद्योग के लिए एक चेतावनी है। DEG और EG जैसे औद्योगिक रसायन दवाओं में मिलकर न केवल जानलेवा साबित हो सकते हैं बल्कि देश की दवा उद्योग की अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न लगा सकते हैं। भारत को दुनिया का ‘फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड’ कहा जाता है, ऐसे में गुणवत्ता नियंत्रण और निगरानी की ढिलाई न केवल घरेलू स्वास्थ्य संकट ला सकती है, बल्कि निर्यात बाजार को भी प्रभावित कर सकती है।
- यद्यपि दवा सुरक्षा सीधे तौर पर नागरिकों के जीवन और विश्वास से जुड़ी है। जोखिम-आधारित निरीक्षण, कठोर नियामक तंत्र और वैश्विक मानकों के अनुरूप गुणवत्ता नियंत्रण अब और अधिक आवश्यक हो गए हैं। भारत को अपने फार्मास्यूटिकल उद्योग की विश्वसनीयता बनाए रखने और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निरंतर निगरानी, पारदर्शिता व कड़े दंडात्मक प्रावधानों की ओर बढ़ना होगा।