(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास एवं रोज़गार से संबंधित विषय) |
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य विद्युत नियामक आयोगों (SERCs) और विद्युत वितरण कंपनियों (DISCOMs) को निर्देश दिया है कि वे अपनी मौजूदा नियामक परिसंपत्तियों को चार वर्ष के भीतर और नई परिसंपत्तियों को तीन वर्ष के भीतर निपटाएँ। न्यायालय ने नियामक परिसंपत्तियों को डिस्कॉम की वार्षिक राजस्व आवश्यकता (ARR) के 3% तक सीमित करने और पारदर्शी रोडमैप बनाने के भी निर्देश दिए।
नियामक परिसंपत्तियाँ
- नियामक परिसंपत्तियाँ उस राजस्व अंतर (Revenue Gap) को दर्शाती हैं जो विद्युत वितरण कंपनियों की औसत आपूर्ति लागत (ACS) और उपभोक्ताओं से मिलने वाली आय या वार्षिक राजस्व आवश्यकता (ARR) के बीच उत्पन्न होती है।
- यदि ACS > ARR, तो डिस्कॉम को हर यूनिट बिजली पर घाटा उठाना पड़ता है।
- उदाहरण: यदि ACS ₹7.20 प्रति यूनिट है और ARR ₹7.00, तो हर यूनिट पर ₹0.20 का घाटा होगा। 10 अरब यूनिट पर यह घाटा ₹2000 करोड़ हो जाएगा।
- इस घाटे को तत्काल उपभोक्ताओं पर थोपने के बजाय SERC इसे ‘नियामक परिसंपत्ति’ के रूप में दर्ज करने की अनुमति देता है, जिसे भविष्य में ब्याज सहित वसूला जाता है।
ACS-ARR अंतर के कारण
- गैर-लागत परिलक्षित टैरिफ : उपभोक्ताओं से वसूला गया शुल्क वास्तविक लागत से कम होना
- राज्य सरकारों की सब्सिडी में देरी : किसानों एवं गरीब उपभोक्ताओं को दी जाने वाली सब्सिडी समय पर न मिलना
- ईंधन की कीमतों में अचानक बढ़ोतरी : पावर परचेज लागत बढ़ना
भारत में सबसे पहले पंजाब (2003-2004) में इस प्रकार का मामला दर्ज हुआ था। बाद में दिल्ली, तमिलनाडु सहित कई राज्यों में यह एक व्यापक समस्या बन गई।
उपभोक्ताओं एवं डिस्कॉम्स पर प्रभाव
- दिल्ली की तीन प्रमुख डिस्कॉम्स (BSES राजधानी, BSES यमुना और टाटा पावर-DDL) को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार चार वर्षों में ₹16,580 करोड़ प्रतिवर्ष वसूलना होगा।
- इसका अर्थ है कि प्रति यूनिट औसतन ₹5.5 की अतिरिक्त वृद्धि उपभोक्ताओं पर पड़ेगी।
- उपभोक्ताओं के लिए:
- तत्काल राहत तो मिलती है किंतु बाद में उन्हें अधिक ब्याज सहित भुगतान करना पड़ता है।
- डिस्कॉम्स के लिए:
- नकदी प्रवाह (Cash Flow) पर दबाव
- पावर जनरेटर (विद्युत उत्पादक) को समय पर भुगतान करने में कठिनाई
- उधारी पर निर्भरता और बढ़ता कर्ज
- ग्रिड आधुनिकीकरण और नवीकरणीय ऊर्जा निवेश का सीमित होना
ACS-ARR अंतर कम करने के उपाय
- टैरिफ का वास्तविक लागत से संरेखण : केवल लक्षित सब्सिडी से गरीब उपभोक्ताओं की सुरक्षा
- समय पर सब्सिडी भुगतान : राज्य सरकारों को वित्तीय अंतर अपने ऊपर लेने की बाध्यता
- ईंधन लागत समायोजन तंत्र : Fuel and Power Purchase Cost Adjustment जैसे उपाय
- वार्षिक True-up प्रक्रिया : अनुमानित एवं वास्तविक व्यय का नियमित मिलान
- नियामक अनुशासन : सीमा तय करना, पारदर्शिता एवं समयबद्धता सुनिश्चित करना
वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ
- RAB (Regulated Asset Base) मॉडल : नियामित परिसंपत्तियों पर निवेश की लागत और तय दर से रिटर्न की अनुमति
- RIIO (यूके मॉडल) : राजस्व को नवाचार, प्रदर्शन एवं परिणामों से जोड़ने से जवाबदेही एवं दक्षता में वृद्धि
- डिजिटल ऊर्जा ग्रिड और इंडिया एनर्जी स्टैक : परिसंपत्तियों के पारदर्शी प्रबंधन एवं आधुनिक प्रणाली से सुधार
निष्कर्ष
नियामक परिसंपत्तियाँ किसी एक संस्था की विफलता नहीं बल्कि पूरे विद्युत क्षेत्र की संतुलन की समस्या हैं, जहाँ एक ओर उपभोक्ता को सस्ती बिजली चाहिए, वहीं दूसरी ओर डिस्कॉम्स को लागत वसूलनी होती है। सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप इस बात का संकेत है कि अब समन्वित कार्रवाई और वित्तीय अनुशासन का समय है ताकि उपभोक्ताओं के लिए बिजली सुलभ रहे और डिस्कॉम्स के लिए टिकाऊ रहे।