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ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का उपग्रहों पर प्रभाव

(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ 

नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार वायुमंडल में मानव-जनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बढ़ते स्तर के कारण इस सदी के अंत तक पृथ्वी की परिक्रमा कक्ष की वहन क्षमता में 66% तक की कमी आ सकती है। 

ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का प्रभाव 

ऊपरी वायुमंडल का संकुचन 

  • शोधकर्ताओं के अनुसार, वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल को संकुचित कर सकती है क्योंकि आने वाली अवरक्त विकिरण अंतरिक्ष में परावर्तित होती है जिसके परिणामस्वरूप शीतलन एवं संकुचन प्रभाव होता है। 
    • पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में मेसोस्फीयर (50-85 किमी) एवं थर्मोस्फीयर (85-600 किमी) शामिल हैं। 
    • यह प्रभाव थर्मोस्फीयर में विशेष रूप से चिंताजनक है जहाँ अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन सहित अधिकांश उपग्रह परिक्रमा करते हैं।
  • यह संकुचन पृथ्वी के कक्षीय घनत्व को कम करता है जिससे वायुमंडल के साथ घर्षण कम होने के कारण अंतरिक्ष मलबे का कक्षा में रहने का समय बढ़ जाता है। 
    • वायुमंडल के साथ घर्षण पुराने उपग्रहों एवं अंतरिक्ष मलबे को पृथ्वी की निचली कक्षा में खींचकर इसे नष्ट करने में मदद करता है। 

थर्मोस्फीयर का प्राकृतिक चक्र बनाम मानवीय प्रभाव

  • सूर्य की नियमित गतिविधि चक्र की प्रक्रिया में थर्मोस्फीयर हर 11 वर्ष में स्वाभाविक रूप से संकुचित एवं विस्तारित होता है। 
    • सौर न्यूनतम (Solar Minimum) के दौरान पृथ्वी को कम विकिरण प्राप्त होने पर बाह्य वायुमंडल अस्थायी रूप से ठंडा होकर संकुचित हो जाता है जबकि सौर अधिकतम (Solar Maximum) के दौरान अधिक विकिरण प्राप्त होने पर यह पुन: विस्तारित हो जाता है।
  • वर्तमान में मानवीय गतिविधियों के कारण उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैस निचले वायुमंडल में ऊष्मा को रोक लेती हैं जिससे वैश्विक तापन का अनुभव होता है। 
    • हालाँकि, यही गैसें बहुत अधिक ऊँचाई पर ऊष्मा का विकिरण करती हैं जिससे थर्मोस्फीयर प्रभावी रूप से ठंडा हो जाता है। 
    • इससे थर्मोस्फीयर के संकुचित होने से वायुमंडलीय घनत्व कम हो जाता है। 

प्रभाव 

  • पृथ्वी की कक्षा में उपग्रहों की संख्या में वृद्धि के साथ ही अंतरिक्ष मलबे पृथ्वी के कक्षीय स्थान के दीर्घकालिक उपयोग के लिए समस्या बन जाते हैं।
  • यह केसलर सिंड्रोम’ की स्थिति उत्पन्न कर सकता है। अंतरिक्ष में अंतरिक्ष मलबा की वजह से होने वाले उपग्रहों के टकरावों की श्रृंखला को केसलर सिंड्रोम कहते हैं। 
    • यह एक काल्पनिक स्थिति है जिसे वर्ष 1978 में नासा के वैज्ञानिक डोनाल्ड जे. केसलर ने प्रस्तावित किया था

निष्कर्ष

वर्तमान में लगभग 11,900 उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे हैं जो इंटरनेट कनेक्शन, संचार क्षमता, मौसम की भविष्यवाणी और नेविगेशन तकनीक जैसी आवश्यक सेवाएँ प्रदान करते हैं। अंतरिक्ष में उपग्रह के टकराव के जोखिम को कम करने के लिए सक्रिय डी-ऑर्बिटिंग प्रौद्योगिकियों पर विचार किया जा रहा है किंतु शोधकर्ताओं का सुझाव है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना पृथ्वी की जलवायु के लिए महत्वपूर्ण होने के साथ ही बाह्य  अंतरिक्ष तक हमारी पहुंच और उपयोग को संरक्षित करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।

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