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भारत के घरेलू क्षेत्र में विद्यमान लैंगिक विषमता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास एवं रोज़गार से संबंधित विषय, समावेशी विकास तथा इससे उत्पन्न विषय)

संदर्भ

भारत में बदलती सामाजिक-आर्थिक संरचनाएँ ‘घरेलू क्षेत्र’ की अवधारणाओं, जैसे- घरेलू, पारिवारिक भूमिकाएँ और श्रम के लैंगिक विभाजन को नया रूप दे रही हैं।

भारत का घेरलू क्षेत्र : वर्तमान परिदृश्य

  • घरेलू क्षेत्र का एक अन्य पहलू घर के भीतर और बाहर महिलाओं द्वारा किया जाने वाला कार्य है। 
  • हाल ही में हुए टाइम यूज़ सर्वे 2024 के अनुसार सभी महिलाओं के आयु वर्ग (15-59 वर्ष) में से 25% ‘रोज़गार एवं संबंधित गतिविधियों’ में थीं और औसतन पाँच घंटे काम करती थीं। 
  • पारिवारिक उद्यमों में काम करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 23 था। इस श्रेणी की महिलाएँ दो घंटे से थोड़ा कम काम करती हैं।
  • इन दोनों श्रेणियों में किए गए काम को आर्थिक रूप से उत्पादक माना जाता है और इसे राष्ट्रीय लेखा प्रणाली में शामिल किया जाता है।
  • रोज़गार एवं संबंधित गतिविधियों में लगभग 75% पुरुष शामिल थे जो औसतन आठ घंटे प्रतिदिन काम करते हैं। 
  • पारिवारिक उद्यमों में 14% पुरुष औसतन दो घंटे प्रतिदिन काम करते हैं।

संबंधित मुद्दे 

लैंगिक श्रम विभाजन 

  • टी.यू.एस. (TUS) सर्वेक्षण के अनुसार अवैतनिक घरेलू सेवाएँ (खाना पकाना, सफाई करना, कपड़े धोना) में 93% महिलाएँ प्रतिदिन औसतन सात घंटे और 41% महिलाएँ अवैतनिक घरेलू देखभाल में ढाई घंटे काम करती हैं। 
  • सर्वे के अनुसार 70% पुरुष कोई घरेलू काम नहीं करते हैं। 30% जो घरेलू काम करते हैं, वे प्रतिदिन डेढ़ घंटे से भी कम काम करते हैं।
  • अवैतनिक देखभाल श्रेणी में 79% पुरुष कोई ‘अवैतनिक देखभाल’ नहीं करते हैं जबकि 21% जो करते हैं, वे प्रतिदिन औसतन एक घंटा 14 मिनट काम करते हैं। 
  • निष्कर्ष यह है कि महिलाओं द्वारा कुल कार्य के घंटे पुरुषों की तुलना में अधिक हैं और महिलाएँ पुरुषों की तुलना में खाने, सोने एवं आराम में कम समय बिताती हैं। 

वेतन भिन्नता 

  • लाखों महिलाएँ जो आँगनवाड़ी, मध्याह्न भोजन सेवाओं और मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) के रूप में बाल देखभाल सेवाओं की ज़िम्मेदारी संभालती हैं, उन्हें कार्यकर्ता के बजाय ‘सामाजिक स्वयंसेवक’ माना जाता है। 
    • उन्हें न्यूनतम वेतन के बजाय मानदेय के रूप में एक मामूली राशि दी जाती है। अंततः उन्हें सरकारी कर्मचारी के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है। 
  • इस प्रकार, घरेलू क्षेत्र में महिलाओं के लिए जो कार्य ‘स्वाभाविक’ माना जाता है, वह सार्वजनिक क्षेत्र में देखभाल सेवाओं में कम वेतन वाले कार्य में परिवर्तित हो जाता है।

अल्प-मूल्यांकन

  • भारतीय स्टेट बैंक के वर्ष 2023 में एक सर्वेक्षण के अनुसार यदि महिलाओं द्वारा किए जाने वाले अवैतनिक कार्य का मुद्रीकरण किया जाए, तो यह देश के सकल घरेलू उत्पाद के 7% से अधिक या प्रति वर्ष 22.5 लाख करोड़ के बराबर होगा। 
  • यह श्रम के सामाजिक पुनरुत्पादन में महिलाओं के अवैतनिक घरेलू कार्य द्वारा निभाई जाने वाली आवश्यक भूमिका के अवमूल्यन की ओर भी संकेत करता है।\
  • महिला के घरेलू कार्य का अदृश्य घटक ही जीविका एवं मज़दूरी की लागत को कम रखता है। 
    • इस प्रकार, उचित न्यूनतम मज़दूरी के लिए संघर्ष का महिलाओं द्वारा किए जाने वाले अदृश्य कार्य की मान्यता से सीधा संबंध है।

बदलता परिदृश्य

घरेलू गतिशीलता

  • शहरीकरण, शिक्षा व कार्यबल में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी पारंपरिक पारिवारिक संरचनाओं को बदल रही है।
  • एकल परिवार अधिक आम होते जा रहे हैं जिससे विस्तारित रिश्तेदारी नेटवर्क पर निर्भरता कम हो रही है।

लिंग एवं श्रम

  • महिलाओं के पेशेवर क्षेत्रों में प्रवेश करने के बावजूद अवैतनिक देखभाल कार्य का बोझ अभी भी असमान रूप से उन पर पड़ता है।
  • कोविड-19 महामारी ने कामकाजी महिलाओं के सामने आने वाले ‘दोहरे बोझ’ नौकरी और घरेलू कर्तव्यों में संतुलन को उजागर किया है।

प्रौद्योगिकी एवं घरेलू जीवन

  • तकनीक-संचालित सेवाएँ (खाद्य वितरण, घरेलू उपकरण, गिग कार्य) घरेलू कार्यों के प्रबंधन के तरीके को नया रूप दे रही हैं।
    • हालाँकि, वे प्राय: श्रम को कमजोर समूह, जैसे- अनौपचारिक महिला श्रमिकों को आउटसोर्स करते हैं।

समाजशास्त्रीय महत्त्व 

  • घरेलू क्षेत्र का परिवर्तन भारत में व्यापक सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों को दर्शाता है।
  • लैंगिक समानता, श्रम की गरिमा और सामाजिक न्याय के प्रश्न इस परिवर्तन के केंद्र में हैं।

नीतिगत निहितार्थ

  • राष्ट्रीय लेखा और नीति निर्माण में अवैतनिक देखभाल कार्य को मान्यता देने की आवश्यकता है।
  • बाल देखभाल सुविधाओं का विस्तार, माता-पिता की छुट्टी और लचीले कार्य मानदंड ज़िम्मेदारियों का पुनर्वितरण कर सकते हैं।
  • श्रम संहिताओं और सामाजिक सुरक्षा उपायों में घरेलू व गिग श्रमिकों को शामिल किया जाना चाहिए।

आगे की राह 

  • परिवारों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने और खत्म करने के लिए सांस्कृतिक, सामाजिक और नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता 
  • समान वेतन पर प्राथमिक श्रमिकों के रूप में पुरुषों और महिलाओं को समान काम करने का अधिकार
  • राज्य द्वारा बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल के लिए आसानी से सुलभ सार्वभौमिक सुविधाओं का प्रावधान
  • गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा सुविधाओं का प्रावधान
  • पुरुषों और महिलाओं के बीच घरेलू ज़िम्मेदारी साझा करने को प्रोत्साहित करने वाली संस्कृतियों को बढ़ावा देना
  • बाल देखभाल और स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यरत सभी योजना कर्मियों को सरकारी कर्मचारियों के समान न्यूनतम वेतन व लाभ प्रदान करना
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