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जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट पर्यटन परियोजना एवं एंटी-कोल्यूजन क्लॉज

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)

संदर्भ

उत्तराखंड सरकार ने मसूरी स्थित प्रसिद्ध जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट में एडवेंचर टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की है। इसके तहत निजी कंपनियों को 142 एकड़ भूमि पर एडवेंचर गतिविधियाँ संचालित करने का अवसर दिया गया। हालाँकि, इसमें शामिल सभी कंपनी के एक ही व्यक्ति आचार्य बालकृष्ण (पतंजलि आयुर्वेद के सह-संस्थापक) के नियंत्रण में होने के कारण विवाद उत्पन्न हो गया है।

जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट पर्यटन परियोजना के बारे में

  • स्थान : मसूरी के पास वर्ष 1832 में स्थापित जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट
  • सरकारी निवेश : वर्ष 2019 से 2022 के बीच एशियन डेवलपमेंट बैंक से 23.5 करोड़ रुपए का ऋण लेकर बुनियादी ढाँचा का विकास 
  • सुविधाएँ : पार्किंग, रास्ते, हेलिपैड, लकड़ी के हट्स, कैफे, दो म्यूजियम व एक वेधशाला
  • गतिविधियाँ : पैराग्लाइडिंग, बंजी जंपिंग, रॉक क्लाइम्बिंग, हॉट एयर बलूनिंग, कैंपिंग आदि
  • समझौता : 15 साल का कॉन्ट्रैक्ट (3% वार्षिक शुल्क वृद्धि के साथ), जिसे आगे 15 साल तक बढ़ाया जा सकता है।

बोली प्रक्रिया और विवाद

  • दिसंबर 2022 में टेंडर निकाला गया और तीन कंपनियों ‘राजस एयरोस्पोर्ट्स, प्रकृति ऑर्गेनिक्स, भरुवा एग्री साइंस’ ने बोली लगाई।
  • तीनों कंपनियों में आचार्य बालकृष्ण की हिस्सेदारी है। यह एंटी-कोल्यूजन क्लॉज का उल्लंघन है, जिसमें कंपनियों को यह लिखित में देना होता है कि वे मिलकर बोली नहीं लगाएंगी।

एंटी-कोल्यूजन क्लॉज के बारे में

  • एंटी-कोल्यूजन क्लॉज (Anti-Collusion Clause) एक कानूनी प्रावधान होता है जो किसी भी टेंडर, बोली (Bidding) या कॉन्ट्रैक्ट प्रक्रिया में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा (Fair Competition) सुनिश्चित करने के लिए बनाया जाता है।
  • इसका उद्देश्य यह रोकना होता है कि दो या अधिक कंपनियाँ आपस में मिलीभगत (Collusion) करके बोली की कीमत, शर्तें या परिणाम तय न कर लें।

इस क्लॉज की कार्यप्रणाली 

  • जब भी कोई कंपनी सरकारी टेंडर में भाग लेती है उसे एक घोषणा-पत्र (Undertaking) पर हस्ताक्षर करना पड़ता है।
  • इस घोषणा-पत्र में कंपनी यह लिखित आश्वासन देती है कि:
    • उसने अन्य बोलीदाताओं के साथ मिलकर कोई गुप्त समझौता नहीं किया है।
    • बोली की कीमत या शर्तें तय करने में मिलीभगत नहीं की है।
    • प्रतिस्पर्धा को कृत्रिम रूप से प्रभावित करने की कोशिश नहीं की है।
  • यदि बाद में यह सिद्ध हो जाए कि बोलीदाता कंपनियों में मिलीभगत थी, तो-
    • टेंडर रद्द किया जा सकता है।
    • कंपनी को ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है।
    • कानूनी कार्यवाही और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

भारत में निष्पक्ष बोली के नियम

  • सार्वजनिक खरीद नीति (Public Procurement Policy) में पारदर्शिता, प्रतिस्पर्धा एवं समान अवसर अनिवार्य है।
  • प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के तहत बोली में सांठगांठ (Collusion) अवैध मानी जाती है।
  • सरकारी एजेंसियाँ अनुबंध को रद्द कर सकती हैं यदि धोखाधड़ी या मिलीभगत साबित हो।

हालिया मामले में नियमों का उल्लंघन

  • तीनों कंपनियों का एक ही मालिक होना और उसका बाद में हिस्सेदारी बढ़ाना बोली की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है।
  • यह एंटी-कोल्यूजन अंडरटेकिंग का उल्लंघन है। राज्य पर्यटन बोर्ड ने इसे ‘सामान्य’ बताया है किंतु विशेषज्ञ इसे पारदर्शिता की कमी और प्रतिस्पर्धा की भावना के खिलाफ मानते हैं।

प्रभाव

  • पारदर्शिता पर प्रश्न : सरकारी परियोजनाओं में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा पर लोगों का भरोसा कमजोर हो सकता है।
  • पर्यटन की छवि पर प्रभाव : विवाद से परियोजना की साख प्रभावित हो सकती है।
  • कानूनी विवाद की संभावना : भविष्य में न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
  • निजी कंपनियों को लाभ : सार्वजनिक संसाधनों के दुरुपयोग का आरोप लग सकता है।

संभावित कानूनी दृष्टिकोण

  • प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 की धारा 3(3) (Bid Rigging) लागू हो सकती है।
  • अनुबंध अधिनियम, 1872 के तहत मिलीभगत से किया गया अनुबंध शून्य घोषित हो सकता है।
  • लोकहित याचिका (PIL) के माध्यम से इस पर न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।

आगे की राह

  • स्वतंत्र जांच: बोली प्रक्रिया की निष्पक्षता की जांच होनी चाहिए।
  • नियमों का सख्त पालन: एंटी-कोल्यूजन नियमों को और सख्ती से लागू किया जाए।
  • प्रतिस्पर्धा आयोग की निगरानी: CCI जैसी एजेंसियों को ऐसे मामलों पर स्वतः संज्ञान लेना चाहिए।
  • सामाजिक जवाबदेही: स्थानीय जनता और हितधारकों को परियोजना से जुड़े निर्णयों में शामिल किया जाए।
  • पारदर्शिता पोर्टल: सभी टेंडर और बोली प्रक्रिया को ऑनलाइन सार्वजनिक किया जाए।
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