भारत में रोजगार सृजन की चुनौतियाँ और समाधान
- नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) द्वारा जारी “India’s Employment Prospects: Pathways to Jobs” रिपोर्ट भारत के श्रम बाजार की संरचनात्मक वास्तविकताओं को उजागर करती है।
- यह रिपोर्ट कौशल विकास (Skill Development) और लघु उद्यमों (Small Enterprises) को रोजगार सृजन के प्रमुख चालक के रूप में रेखांकित करती है, साथ ही यह भी दर्शाती है कि मात्र रोजगार संख्या में वृद्धि, सार्थक (Quality) रोजगार की गारंटी नहीं है।

भारत में रोजगार के प्रमुख रुझान
1. स्व-रोजगार की प्रधानता
- भारत में रोजगार वृद्धि का बड़ा हिस्सा स्व-रोजगार से आया है।
- यह स्व-रोजगार उद्यमशीलता (Entrepreneurship) से अधिक आर्थिक विवशता (Distress-driven) का परिणाम है।
- अधिकांश लघु उद्यम:
- कम पूंजी,
- निम्न उत्पादकता,
- सीमित तकनीकी उपयोग
के साथ केवल जीवन-निर्वाह स्तर पर संचालित हो रहे हैं।
2. कौशल संरचना में असंतुलन
- सेवा क्षेत्र में मध्यम-कौशल वाली नौकरियाँ रोजगार वृद्धि का प्रमुख स्रोत हैं।
- विनिर्माण क्षेत्र अब भी मुख्यतः कम-कौशल श्रम पर निर्भर है।
- कम-कौशल से उच्च-कौशल रोजगार की ओर संक्रमण धीमा बना हुआ है।
3. व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण (VET) की चुनौतियाँ
भारत की VET प्रणाली गहन संरचनात्मक समस्याओं से जूझ रही है:
- प्रशिक्षण सीटों का पूर्ण उपयोग न होना
- कमजोर प्लेसमेंट रिकॉर्ड
- प्रशिक्षकों के पद रिक्त रहना
- उद्योग से सीमित जुड़ाव
- व्यावसायिक शिक्षा को अब भी “द्वितीय श्रेणी का विकल्प” समझा जाना
रोजगार सृजन के लिए प्रमुख सिफारिशें
(A) मांग पक्ष (Demand Side Reforms)
- घरेलू उपभोग को प्रोत्साहन
- क्रय शक्ति में वृद्धि से रोजगार मांग को बल मिलेगा।
- PLI योजनाओं का पुनर्निर्देशन
- वस्त्र, फुटवियर जैसे श्रम-गहन क्षेत्रकों पर विशेष ध्यान।
- ऋण तक पहुँच में सुधार
- रिपोर्ट के अनुसार: ऋण पहुँच में 1% की वृद्धि → नियुक्त कर्मचारियों की संख्या में 45% की वृद्धि
- यह MSME क्षेत्र की केंद्रीय भूमिका को दर्शाता है।
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श्रम कानूनों का सरलीकरण : अनुपालन लागत घटाकर औपचारिक रोजगार को प्रोत्साहन।
(B) आपूर्ति पक्ष (Supply Side Reforms)
- प्रारंभिक शिक्षा में VET का एकीकरण : कौशल निर्माण को स्कूल स्तर से ही मुख्यधारा में लाना।
- उद्योग-संरेखित पाठ्यक्रम : Skill–Job mismatch को कम करना।
- सार्वजनिक–निजी भागीदारी (PPP) : उद्योग की भागीदारी से प्रशिक्षण की गुणवत्ता में सुधार।
- वैश्विक मानकों के अनुरूप सार्वजनिक निवेश : आधुनिक उपकरण, प्रशिक्षक प्रशिक्षण और डिजिटल अवसंरचना।
महत्वपूर्ण अनुमान:
- औपचारिक कौशल विकास में निवेश से यदि कुशल कार्यबल का अनुपात 12 प्रतिशत अंक बढ़ाया जाए,
- तो 2030 तक श्रम-गहन क्षेत्रकों में रोजगार में 13% से अधिक वृद्धि संभव है।
नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER)
नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) भारत का सबसे पुराना और सबसे बड़ा गैर-लाभकारी, स्वतंत्र आर्थिक नीति अनुसंधान थिंक टैंक है।
इसकी स्थापना वर्ष 1956 में हुई थी। यह संस्था सरकार और निजी क्षेत्र दोनों के लिए उच्च-गुणवत्ता वाला, अनुभवजन्य (Empirical) आर्थिक शोध उपलब्ध कराती है तथा भारत के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है।
NCAER के बारे में मुख्य तथ्य
स्थापना एवं पृष्ठभूमि : NCAER की स्थापना 1956 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के विजन के अंतर्गत एक स्वतंत्र निकाय के रूप में की गई थी, ताकि नीति-निर्माण को ठोस आर्थिक शोध से समर्थन मिल सके।
नेतृत्व : संस्था का संचालन निदेशक-महानिदेशक के नेतृत्व में किया जाता है। हाल ही में सुरेश गोयल को NCAER का 11वां महानिदेशक नियुक्त किया गया है।
प्रकृति : यह एक स्वायत्त और गैर-लाभकारी संगठन है, जो सरकारी एवं निजी—दोनों क्षेत्रों को नीति-समर्थन और शोध सेवाएँ प्रदान करता है।
कार्य एवं उद्देश्य : NCAER भारत के आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन से जुड़े मुद्दों पर उच्च-गुणवत्ता वाला अनुभवजन्य शोध करता है। इसके अंतर्गत व्यापक डेटा संग्रह, सर्वेक्षण, सांख्यिकीय विश्लेषण और नीति-आधारित अध्ययन शामिल हैं।
प्रमुखता : यह भारत के उन चुनिंदा थिंक टैंकों में शामिल है जो मजबूत फील्ड-लेवल डेटा संग्रह क्षमताओं को कठोर और वैज्ञानिक विश्लेषण के साथ जोड़ते हैं, जिससे इसकी रिपोर्ट्स नीति-निर्माताओं के लिए अत्यंत उपयोगी बनती हैं।
हालिया गतिविधियाँ एवं रिपोर्ट्स
रोजगार पर रिपोर्ट : NCAER ने हाल ही में “India’s Employment Prospects: Pathways to Jobs” नामक रिपोर्ट जारी की है। इसमें स्वरोजगार को बढ़ावा देने और मध्यम-कुशल (Middle-skilled) नौकरियों के सृजन पर विशेष जोर दिया गया है।
आर्थिक विकास अनुमान : NCAER ने वित्त वर्ष 2024–25 के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर लगभग 7% रहने का अनुमान व्यक्त किया है, जो भारत की मजबूत आर्थिक संभावनाओं को दर्शाता है।