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भारतीय इस्पात क्षेत्र एवं संबंधित मुद्दे

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3:
भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

13 जून, 2025 को इस्पात मंत्रालय द्वारा जारी किए गए नवीन गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (Quality Control Order: QCO) के तहत इस्पात उत्पादों के निर्माण में उपयोग होने वाली कच्ची सामग्री एवं इनपुट्स (आगत) के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के मानकों का पालन करना अनिवार्य कर दिया गया है। इस आदेश को लागू करने के लिए इस्पात उद्योग को एक कार्य दिवस से भी कम समय दिया गया है जो उद्योग जगत क लिए चिंता का कारण बन गया। 

भारतीय इस्पात क्षेत्र के बारे में

  • परिचय : भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश है और इस्पात उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  • उत्पादन : भारत ने वर्ष 2024 में लगभग 140 मिलियन टन इस्पात का उत्पादन किया, जो वैश्विक उत्पादन का लगभग 7% है।
  • निर्यात : वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने ~7.5 मिलियन टन इस्पात का निर्यात किया, जिसका मूल्य ~55,000 करोड़ था।
  • रोजगार : इस्पात क्षेत्र में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से ~25 लाख लोग कार्यरत हैं, जिनमें से अधिकांश सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) में हैं।
  • MSME की भूमिका : MSME इस्पात क्षेत्र में ~40% उत्पादन एवं वितरण में योगदान करते हैं।
  • आयात : भारत में इस्पात एवं संबंधित कच्चे माल का आयात ~20,000 करोड़ प्रति वर्ष है।
  • भारत के प्रमुख इस्पात निर्माता : टाटा स्टील, एस्सार स्टील, आर्सेलर मित्तल एवं सेल (सारदा स्टील) जैसे कंपनियाँ इस क्षेत्र की प्रमुख कंपनियाँ हैं।

वर्तमान मुद्दा 

  • QCO अधिसूचना : 13 जून, 2025 को जारी अधिसूचना में इस्पात उत्पादों के कच्चे माल पर BIS अनुपालन को अनिवार्य किया गया, जो 16 जून 2025 से लागू है।
  • समय की कमी : आयातकों को अनुपालन के लिए केवल एक कार्य दिवस (13 जून, शुक्रवार से 16 जून, सोमवार के मध्य) का समय दिया गया।
  • आदेश का दायरा : इस आदेश में केवल भारतीय निर्माताओं को ही नहीं, बल्कि विदेशों से भारत में आयातित स्टील उत्पादों को भी BIS प्रमाणपत्र की आवश्यकता होगी।
  • प्रभावित क्षेत्र : आयातित अर्द्ध तैयार (Semi-finished) और कच्चे माल पर निर्भर MSME तथा आयातक सर्वाधिक प्रभावित।
  • लागत में वृद्धि : विदेशी आपूर्तिकर्ताओं द्वारा BIS प्रमाणन के लिए अतिरिक्त लागत लगाई जाएगी, जिससे आयातित सामग्री की कीमत बढ़ेगी।
  • उदाहरण : मलेशिया से स्लैब आपूर्ति करके वियतनाम में शीट्स में प्रसंस्करण करने वाली कंपनियों को अब BIS अनुपालन करना होगा।

भारतीय इस्पात क्षेत्र पर प्रभाव

  • उत्पादन में व्यवधान : आयात में कठिनाई के कारण MSME की उत्पादन प्रक्रिया प्रभावित होगी, जिससे आपूर्ति श्रृंखला में देरी होगी।
  • लागत वृद्धि : अनुपालन लागत एवं आयातित सामग्री की कीमतों में वृद्धि से इस्पात उत्पादों की लागत बढ़ेगी, जो अंततः उपभोक्ताओं पर बोझ डालेगी।
  • MSME पर प्रभाव : MSME लागत-संवेदनशील हैं और इसको अनुपालन के लिए अतिरिक्त संसाधनों की आवश्यकता होगी, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो सकती है।
  • निर्यात पर प्रभाव : वैश्विक बाजार में भारतीय इस्पात की प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो सकती है, विशेष रूप से अमेरिका जैसे देशों में 50% टैरिफ की संभावना के साथ।
  • आपूर्ति श्रृंखला : आपूर्तिकर्ताओं के साथ अनुपालन दस्तावेजों का समन्वय समय लेने वाला होगा, जिससे आयात प्रक्रिया जटिल होगी।

चुनौतियाँ

  • अल्प समयावधि : एक कार्य दिवस का समय अनुपालन के लिए अपर्याप्त है क्योंकि BIS प्रमाणन एक लंबी प्रक्रिया है।
  • जागरूकता एवं समर्थन की कमी : सरकार की ओर से स्पष्ट दिशानिर्देश एवं तकनीकी सहायता का अभाव।
  • MSME की सीमाएँ : सीमित वित्तीय एवं तकनीकी संसाधनों के कारण MSME के लिए अनुपालन चुनौतीपूर्ण।
  • विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता : विदेशी आपूर्तिकर्ताओं द्वारा BIS प्रमाणन प्राप्त करने की अनिच्छा या अतिरिक्त लागत
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा : उच्च लागत एवं अनुपालन बोझ से भारतीय इस्पात की वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा पर प्रभाव 

आगे की राह

  • समय विस्तार : सरकार को कम-से-कम 3-6 महीने की समयावधि प्रदान करनी चाहिए ताकि आयातक व आपूर्तिकर्ता BIS अनुपालन के लिए तैयार हो सकें।
  • MSME के लिए सहायता : अनुपालन लागत को कम करने के लिए सब्सिडी एवं तकनीकी सहायता प्रदान करना
  • जागरूकता अभियान : आयातकों एवं MSME के लिए BIS मानकों व प्रक्रियाओं पर कार्यशालाएँ तथा प्रशिक्षण
  • आपूर्तिकर्ताओं के साथ समन्वय : सरकार को विदेशी आपूर्तिकर्ताओं के साथ द्विपक्षीय वार्ता कर BIS अनुपालन को सुगम बनाना चाहिए।
  • स्वदेशी माल को प्रोत्साहन : आयात पर निर्भरता कम करने के लिए घरेलू कच्चे माल उत्पादन को बढ़ावा देना
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म : अनुपालन प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए ऑनलाइन BIS पोर्टल को अधिक प्रभावी करना 
  • निगरानी एवं मूल्यांकन : QCO के प्रभाव को ट्रैक करने के लिए नियमित समीक्षा एवं हितधारकों के साथ परामर्श

निष्कर्ष

भारतीय इस्पात क्षेत्र गुणवत्ता सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है किंतु QCO का अचानक व सख्त कार्यान्वयन MSME एवं आयातकों के लिए चुनौतीपूर्ण है। दीर्घकालिक दृष्टिकोण, सरकारी समर्थन एवं हितधारकों के साथ सहयोग से इस्पात क्षेत्र की प्रतिस्पर्धात्मकता व स्थिरता को बनाए रखा जा सकता है। पारदर्शी एवं व्यावहारिक नीतियों के साथ भारत वैश्विक इस्पात बाजार में अपनी स्थिति को अधिक मजबूत कर सकता है।

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