(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: मुख्य फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न; कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय और बाधाएँ) |
संदर्भ
भारत की कॉफी उत्पादन का सबसे बड़ा हिस्सा कर्नाटक के चिकमंगलूरु, कूर्ग एवं हासन जिलों से आता है। हाल ही में इन क्षेत्रों में लगातार तीन महीने से अधिक समय तक भारी बारिश, अत्यधिक ठंड और धूप की कमी ने कॉफी बागानों को गंभीर नुकसान पहुँचाया है। अनुमान है कि इस बार कॉफी उत्पादन में 20 से 30% तक की गिरावट हो सकती है।
भारत की कॉफी हृदयभूमि के बारे में
- कर्नाटक, विशेषकर चिकमंगलूरु, कूर्ग एवं हासन को भारत की कॉफी हृदयभूमि (Coffee Heartland) माना जाता है।
- यहाँ से देश की कुल कॉफी उत्पादन का लगभग 70% आता है। यह क्षेत्र उच्च गुणवत्ता वाली अरेबिका एवं रोबस्टा कॉफी के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

भारत में कॉफी उत्पादन
- भारत का कॉफी उत्पादन मुख्यतः कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाडु में होता है।
- कॉफी बोर्ड के अनुसार वर्ष 2025-26 में अनुमानित उत्पादन 4.03 लाख मीट्रिक टन था, जिसमें 1.18 लाख टन अरेबिका और 2.84 लाख टन रोबस्टा शामिल हैं।
- भारत विश्व कॉफी निर्यातक देशों में से एक है और इसकी कॉफी यूरोप, अमेरिका एवं एशिया के कई हिस्सों में जाती है।
हाल की समस्या: मॉनसून फ्रीज़
- वर्ष 2025 में समय से पहले और लगातार हुई बारिश ने कॉफी उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया है।
- भारी बारिश और नमी के कारण ब्लैक रॉट, लीफ रॉट, फ्रूट रॉट, बेरी ड्रॉप एवं स्टॉक रॉट जैसी बीमारियाँ फैल गईं। किसान समय पर फफूंदनाशक छिड़काव भी नहीं कर सके।
प्रमुख कारक
- सामान्य से पहले और लगातार हुई बारिश
- धूप एवं गर्मी की कमी
- जलजमाव एवं मृदा की नमी बढ़ना
- फसल सुरक्षा उपायों के समय पर न हो पाना
प्रभाव
- कॉफी उत्पादन में 20-30% की गिरावट
- अरेबिका और रोबस्टा दोनों किस्में प्रभावित
- किसानों की आय में भारी कमी
- पेपर बेल (Pepper Vines) जैसी सहायक फसलें भी प्रभावित
- कॉफी निर्यात पर नकारात्मक असर
चुनौतियाँ
- लगातार मौसमीय अस्थिरता
- रोग व कीट प्रबंधन में कठिनाई
- जलजमाव एवं मृदा उर्वरता का ह्रास
- छोटे किसानों के लिए वित्तीय संकट
- वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा
आगे की राह
- जल निकासी और मृदा संरक्षण की बेहतर तकनीक
- मौसम पूर्वानुमान और फसल बीमा योजनाओं को मजबूत करना
- वैज्ञानिक एवं टिकाऊ खेती पद्धतियों को अपनाना
- कॉफी बोर्ड और सरकार द्वारा किसानों को तकनीकी सहायता और राहत पैकेज
- किसानों की आय सुरक्षा के लिए सहायक फसलों का विविधीकरण
निष्कर्ष
भारत की कॉफी हृदयभूमि इस समय गंभीर मौसमीय संकट से जूझ रही है। यदि टिकाऊ खेती, बेहतर जल प्रबंधन और सरकारी सहयोग को बढ़ावा दिया जाए तो न केवल किसानों की आजीविका सुरक्षित होगी बल्कि भारत की कॉफी अपनी वैश्विक पहचान को भी बरकरार रख पाएगी।
कॉफी : एक फसल के रूप में
जलवायु
- कॉफी उष्णकटिबंधीय और आर्द्र जलवायु में पनपती है।
- इसके लिए 15°C से 28°C तापमान उपयुक्त है।
- 150-250 सेमी. वार्षिक वर्षा आवश्यक होती है।
कृषि
- छायादार वृक्षों के नीचे उगाई जाती है।
- लाल दोमट मृदा, जल निकासी वाली मृदा सबसे उपयुक्त
- मुख्य किस्में : अरेबिका (कम कैफीन, स्वादिष्ट) और रोबस्टा (अधिक कैफीन, सख्त)
भारतीय कॉफ़ी बोर्ड के बारे में
- भारतीय कॉफ़ी बोर्ड, भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा भारत में कॉफ़ी उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु प्रबंधित एक संस्था है।
- इसका मुख्यालय बेंगलुरु (Bengaluru), कर्नाटक में स्थित है।
- इस बोर्ड की स्थापना 1942 में संसद के एक अधिनियम द्वारा की गई थी।
- वर्ष 1995 तक कॉफ़ी बोर्ड कई उत्पादकों की कॉफ़ी का विपणन एक संयुक्त आपूर्ति से करता था किंतु उसके बाद भारत में आर्थिक उदारीकरण के कारण कॉफ़ी विपणन निजी क्षेत्र की गतिविधि बन गई।
- कॉफ़ी बोर्ड के पारंपरिक कार्यों में भारत और विदेशों में कॉफ़ी का प्रचार, बिक्री व उपभोग; कॉफ़ी अनुसंधान का संचालन; छोटे कॉफ़ी उत्पादकों को स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता; श्रमिकों के लिए कार्य परिस्थितियों की सुरक्षा तथा बची हुई कॉफ़ी के अधिशेष भंडार का प्रबंधन शामिल है।
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