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दिवालियापन और शोधन अक्षमता संहिता

(प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय अर्थव्यवस्था)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास एवं रोज़गार से संबंधित विषय)

संदर्भ

भारतीय दिवाला एवं शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI) के अनुसार, विगत आठ वर्षों में दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code: IBC) के तहत 3.89 लाख करोड़ रुपए की वसूली हुई, जिसमें 32.8% दावों (Claims) की रिकवरी हुई।

दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC) के बारे में

  • लागू : वर्ष 2016 में  
  • कारण : भारत में दिवालियापन से निपटने का कोई स्पष्ट कानून न होने से पुरानी प्रणाली में केस वर्षों तक चलते थे और कर्जदाताओं को बहुत कम पैसा वापस मिलता था।
  • विशेषताएँ
  • तेज प्रक्रिया : कंपनियों के लिए 330 दिनों के अंदर समाधान ढूंढना होगा अन्यथा कंपनी को बेचना (लिक्विडेशन) होगा।
  • संपत्ति की कीमत बचाना : कंपनी को बंद करने के बजाय उसे बचाने की कोशिश।
  • कर्जदाताओं को पैसा वापस : कर्ज देने वालों को ज्यादा से ज्यादा पैसा दिलाना।
  • कर्ज लेने वालों में अनुशासन : कर्ज न चुकाने वालों को डर रहे कि उनकी कंपनी छिन सकती है।

IBC की उपलब्धियाँ

  • वसूली : IBC के तहत 3.89 लाख करोड़ की वसूली हुई, जो पुराने सिस्टम से बहुत बेहतर है।
  • कंपनियां बचीं : 1,194 कंपनियों को बंद होने से बचाया गया, जबकि 2,758 कंपनियाँ बिक्री के लिए गईं।
  • बैंकों की वसूली : वर्ष 2023-24 में बैंकों की कुल वसूली का 48% IBC से प्राप्त हुआ, जो सरफेसी (SARFAESI) कानून (32%), डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल (17%) और लोक अदालत (3%) से ज्यादा है।
  • केस निपटान : 30,310 केस कोर्ट में पहुंचने से पहले ही सुलझ गए, जिनमें 13.78 लाख करोड़ के कर्ज शामिल थे।
  • NPA में कमी : बैंकों के बैड लोन (NPA) वर्ष 2018 में 11.2% से घटकर 2024 में 2.8% हो गए।

महत्त्व

  • कर्ज लेने का तरीका बदला : सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि IBC ने ‘कर्ज न चुकाने वालों का स्वर्ग’ खत्म कर दिया। अब कर्ज लेने वाले समय पर पैसा चुकाने की कोशिश करते हैं।
  • बेहतर कॉर्पोरेट गवर्नेंस : IBC से बची कंपनियों में स्वतंत्र निदेशकों की संख्या बढ़ी, जिससे प्रबंधन बेहतर हुआ।
  • आर्थिक लाभ : IBC ने नौकरियां बचाईं, कंपनियों की कीमत बढ़ाई और निवेशकों का भरोसा जीता है।

चुनौतियाँ

  • देरी की समस्या : 78% केस 270 दिन से ज्यादा समय ले रहे हैं। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) में देरी से कई बार कंपनियां बिक्री की ओर चली जाती हैं।
  • कम वसूली : कर्जदाताओं को औसतन 67% नुकसान हो रहा है अर्थात पूरी धनराशि नहीं मिलती है।
  • नए तरह के केस : IBC को बौद्धिक संपदा, कर्मचारी बकाया एवं तकनीकी निरंतरता जैसे नए मुद्दों के लिए अधिक स्पष्ट नियम चाहिए।
  • न्यायिक अनिश्चितता : भूषण स्टील मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने सवाल उठाए कि IBC के तहत हुए समाधान को बाद में बदला जा सकता है। इससे निवेशकों का भरोसा कम हो सकता है।
  • हालिया भूषण स्टील केस : भूषण पावर एंड स्टील केस में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला IBC की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है। अगर पुराने समाधान को सालों बाद बदला जा सकता है तो निवेशक डरेंगे कि उनके निवेश सुरक्षित नहीं हैं। इससे IBC का मकसद कमजोर हो सकता है।

आगे की राह

  • NCLT को मजबूत करना : न्यायालय में देरी को कम करने के लिए न्यायाधीश व संसाधन बढ़ाने चाहिए।
  • प्री-पैकेज्ड इन्सॉल्वेंसी : छोटे व मझोले व्यवसायों के लिए तेज समाधान की व्यवस्था।
  • कानूनी स्पष्टता : समाधान के बाद कानूनी बदलाव से बचने के लिए स्पष्ट नियम।
  • नए नियम : बौद्धिक संपदा एवं कर्मचारी हितों के लिए बेहतर दिशानिर्देश।

निष्कर्ष

IBC भारत की अर्थव्यवस्था का एक मजबूत स्तंभ है। इसने कर्ज वसूली, कॉर्पोरेट गवर्नेंस एवं क्रेडिट अनुशासन को बेहतर किया है। हालाँकि, देरी व कानूनी अनिश्चितता जैसी चुनौतियाँ बाकी हैं। अगर इनका समाधान हो जाए, तो IBC भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में अहम भूमिका निभा सकता है।

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