(प्रारंभिक परीक्षा: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ, विभिन्न सुरक्षा बल और संस्थाएँ तथा उनके अधिदेश) |
संदर्भ
23 अगस्त, 2025 को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने ओडिशा तट पर एकीकृत हवाई रक्षा हथियार प्रणाली (IADWS) का सफलतापूर्वक प्रथम उड़ान परीक्षण किया।
बहु-स्तरीय हवाई रक्षा प्रणाली के बारे में
- यह एक एकीकृत रक्षा प्रणाली है जो विभिन्न हथियार प्रणालियों, रडार एवं कमांड सेंटर को जोड़ती है।
- यह प्रणाली विभिन्न ऊंचाइयों और दूरी पर हवाई खतरों, जैसे- ड्रोन, मिसाइल एवं लड़ाकू विमानों को नष्ट करने के लिए डिज़ाइन की गई है।
- इस प्रणाली में स्वदेशी एवं आयातित दोनों प्रणालियाँ शामिल हैं, जैसे- S-400, अकाश व क्विक रिएक्शन सरफेस-टू-एयर मिसाइल (QRSAM)।
- एकीकृत हवाई कमांड एवं नियंत्रण प्रणाली (IACCS) और आकाशतीर के माध्यम से यह सभी घटकों को समन्वित करती है।
- डी.आर.डी.ओ. द्वारा विकसित यह प्रणाली रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला (DRDL) द्वारा नियंत्रित केंद्रीकृत कमांड सेंटर पर निर्भर करती है।

प्रमुख घटक
- क्विक रिएक्शन सरफेस-टू-एयर मिसाइल (QRSAM): मध्यम दूरी की यह मिसाइल ड्रोन एवं क्रूज मिसाइलों को 30 किमी. तक की दूरी पर नष्ट कर सकती है।
- अल्प दूरी की हवाई रक्षा प्रणाली (VSHORADS): कम ऊंचाई पर उड़ने वाले लक्ष्य, जैसे- ड्रोन और हेलीकॉप्टर को 6-8 किमी. की दूरी पर नष्ट करने में सक्षम है।
- निर्देशित ऊर्जा हथियार (DEW): यह उच्च-शक्ति लेजर प्रणाली है जो ड्रोन और अन्य छोटे लक्ष्यों को नष्ट करने के लिए उन्नत तकनीक का उपयोग करती है।
- रडार और निगरानी: उन्नत रडार (जैसे- रोहिणी एवं अरुध्रा) 200 से अधिक लक्ष्यों को एक साथ ट्रैक कर सकते हैं।
- कमांड एवं नियंत्रण: केंद्रीकृत कमांड सेंटर वास्तविक समय में निगरानी, पहचान एवं जवाबी कार्रवाई को समन्वित करता है।
मुख्य विशेषताएँ
- बहु-स्तरीय रक्षा: चार स्तरों (लंबी, मध्यम, छोटी एवं बहुत छोटी दूरी) पर खतरों को रोकने की क्षमता।
- स्वदेशी तकनीक: QRSAM, VSHORADS एवं DEW जैसे घटक पूरी तरह से स्वदेशी हैं, जो भारत की आत्मनिर्भरता को दर्शाते हैं।
- तेज प्रतिक्रिया: यह प्रणाली 5 मिनट में युद्ध के लिए तैयार हो सकती है और विभिन्न इलाकों में तैनात की जा सकती है।
- विविध लक्ष्य: यह लड़ाकू विमान, क्रूज मिसाइल, बैलिस्टिक मिसाइल और ड्रोन जैसे विभिन्न खतरों को नष्ट कर सकती है।
- इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमता: यह जैमिंग एवं साइबर हमलों से बचाव के लिए उन्नत इलेक्ट्रॉनिक सुरक्षा उपाय है।
महत्व
- राष्ट्रीय सुरक्षा: यह प्रणाली भारत के हवाई क्षेत्र को दुश्मन के विमानों, मिसाइलों एवं ड्रोन से बचाती है।
- रणनीतिक निवारण: S-400 जैसे लंबी दूरी के सिस्टम दुश्मनों को हमले की रणनीति बदलने के लिए मजबूर करते हैं।
- आत्मनिर्भरता: स्वदेशी प्रणालियों का विकास भारत की रक्षा तकनीक में प्रगति को दर्शाता है।
- क्षेत्रीय स्थिरता: यह प्रणाली भारत को दक्षिण एशिया में रणनीतिक श्रेष्ठता प्रदान करती है।
- आधुनिक युद्ध: ड्रोन एवं हाइपरसोनिक हथियारों जैसे उभरते खतरों का मुकाबला करने में सक्षम है।
सीमाएँ
- इस प्रणाली की स्थापना एवं रखरखाव के लिए उच्च लागत व संसाधनों की आवश्यकता
- विभिन्न रक्षा बलों (सेना, नौसेना, वायुसेना) के बीच समन्वय में कमी के कारण देरी
- हाइपरसोनिक मिसाइलों जैसे उन्नत खतरों का पूरी तरह से मुकाबला करने के लिए अधिक विकास की आवश्यकता
- जटिल प्रणालियों को संचालित करने के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता
- सीमित संख्या में S-400 जैसे आयातित सिस्टम की आपूर्ति में देरी से रणनीतिक चुनौतियाँ