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 भूमि-निम्नीकरण (Land Degradation in India)

भारत जैसे कृषि-प्रधान देश में भूमि की गुणवत्ता (Soil Quality) और उपजाऊपन (Fertility) का संरक्षण अति आवश्यक है। लेकिन आज देश की एक-तिहाई से अधिक भूमि भूमि-निम्नीकरण (Land Degradation) से प्रभावित है। यह न केवल पर्यावरणीय चुनौती है, बल्कि खाद्य सुरक्षा, आजीविका और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन का भी प्रश्न है।

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भूमि-निम्नीकरण क्या है? (Definition)

भूमि-निम्नीकरण (Land Degradation) का अर्थ है —

“भूमि की उत्पादकता, जैव विविधता, और पारिस्थितिकीय कार्यों में स्थायी या अस्थायी गिरावट।”

इसमें शामिल हैं —

  • मिट्टी का क्षरण (Erosion)
  • लवणता/अम्लता (Salinization/Acidification)
  • जलभराव (Waterlogging)
  • पोषक तत्वों की कमी
  • वन/चरागाह की हानि
  • भूमि उपयोग का अनुचित परिवर्तन

भारत में भूमि-निम्नीकरण की वर्तमान स्थिति (Current Status)

संकेतक

आँकड़े / तथ्य

कुल प्रभावित भूमि

लगभग 115–120 मिलियन हेक्टेयर (≈33% भू-भाग)

मुख्य कारण

जल कटाव (Water Erosion) – 60% से अधिक

प्रमुख राज्य

राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, झारखंड

वैश्विक स्थिति

भारत विश्व के शीर्ष 10 “Land Degradation Hotspots” देशों में शामिल

मरुस्थलीकरण प्रभावित क्षेत्र

लगभग 82 मिलियन हेक्टेयर

SDG लक्ष्य

2030 तक “Land Degradation Neutrality (LDN)” प्राप्त करना

स्रोत: ISRO, NRSC “Desertification and Land Degradation Atlas of India (2021)”

भूमि-निम्नीकरण के प्रमुख कारण (Major Causes)

(1) प्राकृतिक कारण

  • जल एवं वायु कटाव (Erosion) – वर्षा, बाढ़, व हवा से ऊपरी मिट्टी का ह्रास।
  • जलवायु परिवर्तन – सूखा, बाढ़ और चरम मौसमी घटनाओं से भूमि की क्षमता में कमी।
  • भू-रासायनिक कारक – लवणता, क्षारीयता, अम्लीकरण आदि।

(2) मानवजनित कारण

  • वनों की अंधाधुंध कटाई – जैव विविधता ह्रास, मिट्टी क्षरण।
  • अतिचराई (Overgrazing) – वनस्पति आवरण नष्ट होकर मिट्टी खुल जाती है।
  • अत्यधिक सिंचाई / अनुचित कृषि पद्धति – जलभराव, लवणता बढ़ना।
  • खनन एवं औद्योगिक गतिविधियाँ – खुली खुदाई से भूमि संरचना का ह्रास।
  • शहरीकरण व निर्माण कार्य – भूमि पर स्थायी आवरण (Impervious layer) बन जाता है।

भूमि-निम्नीकरण के प्रभाव (Impacts)

प्रभाव

विवरण

कृषि उत्पादन में गिरावट

उपजाऊ परत के हटने से उत्पादन घटता है; खाद्य सुरक्षा प्रभावित।

आर्थिक हानि

NITI Aayog अनुमान — GDP का लगभग 2.5% नुकसान भूमि-निम्नीकरण से।

जल संसाधन पर प्रभाव

मिट्टी की जल-धारण क्षमता कम, नदियों में गाद भरना।

जैव विविधता पर असर

वनस्पति व जीवों के आवास समाप्त।

सामाजिक प्रभाव

किसान पलायन, गरीबी, भूमि विवादों में वृद्धि।

जलवायु प्रभाव

कार्बन सिंक घटने से ग्रीनहाउस गैसें बढ़ती हैं।

भारत सरकार की प्रमुख पहलें (Government Initiatives)

पहल / कार्यक्रम

उद्देश्य

National Action Plan to Combat Desertification and Land Degradation (NAP, 2023)

2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर भूमि पुनर्स्थापन का लक्ष्य।

National Afforestation Programme (NAP)

वनों की पुनर्स्थापना और हरित क्षेत्र विस्तार।

Green India Mission (GIM)

भूमि पुनर्वास व वनावरण बढ़ाना।

Integrated Watershed Management Programme (IWMP)

मिट्टी व जल संरक्षण के लिए एकीकृत दृष्टिकोण।

Desert Development Programme (DDP)

शुष्क क्षेत्रों में भूमि पुनरुत्थान व कृषि सुधार।

National Mission for Sustainable Agriculture (NMSA)

कृषि-पारिस्थितिकी और भूमि गुणवत्ता में सुधार।

ISRO–NRSC “Land Degradation Atlas” (2021)

1:50,000 पैमाने पर राष्ट्रीय स्तर पर भूमि स्थिति का मानचित्रण।

वैश्विक प्रयास (Global Efforts)

पहल

विवरण

UNCCD (United Nations Convention to Combat Desertification)

1994 में स्थापित; भारत सदस्य है।

Land Degradation Neutrality (LDN) Target – 2030

भूमि ह्रास को रोकना व पुनर्स्थापित करना।

Bonn Challenge (2011)

350 मिलियन हेक्टेयर भूमि पुनर्स्थापन का वैश्विक लक्ष्य (भारत ने 26 मिलियन हेक्टेयर का वादा किया है)।

G20 Global Land Initiative (2023)

भारत की अध्यक्षता में भूमि पुनरुत्थान पर केंद्रित सहयोग मंच।

प्रमुख चुनौतियाँ (Challenges)

  1. डेटा की असमानता: विभिन्न एजेंसियों के आंकड़े भिन्न।
  2. नीतिगत समन्वय का अभाव: कृषि, वन, जल व उद्योग मंत्रालयों में तालमेल की कमी।
  3. अपर्याप्त वित्तीय संसाधन: पुनर्स्थापन परियोजनाओं में धन की कमी।
  4. स्थानीय समुदायों की सीमित भागीदारी: योजनाएँ ‘टॉप-डाउन’ होती हैं।
  5. प्रभावी निगरानी की कमी: GIS और Remote Sensing का सीमित उपयोग।
  6. जलवायु परिवर्तन: सूखा और बाढ़ भूमि गुणवत्ता पर अतिरिक्त दबाव डालते हैं।

आगे की दिशा (Way Forward)

  1. Integrated Land Resource Management (ILRM):कृषि, जल, वन और खनन नीति का समन्वित दृष्टिकोण।
  2. Community-based Land Restoration: ग्राम पंचायतों, महिला समूहों, NGOs की भागीदारी से पुनर्वास।
  3. Technology-based Mapping: GIS, LiDAR, Remote Sensing द्वारा सतत निगरानी।
  4. Incentive Mechanism: भूमि संरक्षण करने वाले किसानों को “Green Credit” प्रोत्साहन।
  5. Agroforestry Promotion:वृक्ष आधारित कृषि प्रणाली से कार्बन संचयन और भूमि सुधार।
  6. Sustainable Mining Practices: खनन क्षेत्रों में “Mine Closure Plans” का कड़ाई से पालन।
  7. Water and Soil Conservation: जलग्रहण आधारित भूमि प्रबंधन; सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली।

निष्कर्ष (Conclusion)

“जब मिट्टी स्वस्थ होगी, तभी समाज समृद्ध होगा।”

भूमि-निम्नीकरण भारत के सतत विकास की राह में एक मौन संकट (Silent Crisis) है। 2030 तक भूमि पुनर्स्थापन का लक्ष्य केवल पर्यावरणीय दायित्व नहीं बल्कि खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण रोजगार और जलवायु न्याय की दिशा में अनिवार्य कदम है।

यदि प्रत्येक ग्राम पंचायत अपने आसपास की भूमि की गुणवत्ता के संरक्षण की जिम्मेदारी ले — तो भारत विश्व में “Land Degradation Neutral Nation” बनने की दिशा में अग्रणी भूमिका निभा सकता है।

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