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लेह : जन-प्रतिनिधित्व का अभाव एवं संबंधित मुद्दे

(प्रारम्भिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार और इनसे उत्पन्न होने वाले विषय।)

संदर्भ

  • 31 अक्तूबर 2025 को लद्दाख के लेह जिले की लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (LAHDC) का पांच वर्षीय कार्यकाल समाप्त हो गया। इसके साथ ही अब जिले में कोई भी निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं बचा है। 
  • वर्तमान में, लद्दाख के केवल एक ही जन-प्रतिनिधि सांसद मोहम्मद हनीफा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। नई परिषद के चुनाव अब तभी होंगे जब नागरिक समाज संगठनों और केंद्र सरकार के बीच चल रही बातचीत किसी ठोस नतीजे पर पहुंचेगी।

राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग पर वार्ता

  • अक्टूबर 2025 में पुलिस कार्रवाई में चार प्रदर्शनकारियों (जिनमें एक कारगिल युद्ध के पूर्व सैनिक भी शामिल थे) की मौत के बाद लेह और कारगिल दोनों जिलों के नागरिक संगठनों लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक एलायंस (KDA) ने केंद्र के साथ अपनी वार्ता फिर से शुरू की। 
  • दोनों संगठन लद्दाख के लिए दो प्रमुख मांगें उठा रहे हैं :
    1. संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करना (जनजातीय दर्जा)
    2. राज्य का दर्जा (Statehood)
  • गृह मंत्रालय ने इन संगठनों से कहा है कि वे एक साझा संविधानिक सुरक्षा ढांचे का प्रारूप (draft framework) तैयार करें, जिसे अगली बैठक में प्रस्तुत किया जा सके।

विशेष संवैधानिक प्रावधानों पर विचार

  • 22 अक्तूबर की बैठक में गृह मंत्रालय ने संकेत दिया कि अनुच्छेद 371 के अंतर्गत मिलने वाले विशेष प्रावधानों को लद्दाख के लिए लागू करने पर विचार किया जा सकता है।
  • वर्तमान में LAB और KDA कानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञों की मदद से एक साझा प्रस्ताव तैयार कर रहे हैं, ताकि अपनी मांगों को मजबूती से रखा जा सके।

चुनाव में देरी का कारण

  • 31 अक्तूबर को लद्दाख प्रशासन ने एक आदेश जारी कर बताया कि 
    • नए जिलों के गठन की प्रक्रिया जारी है।
    • सीमा निर्धारण (delimitation) आवश्यक है।
    • LAHDC अधिनियम, 1997 में हाल ही में संशोधन के तहत महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण लागू किया गया है।
  • इन कारणों से वर्तमान समय में चुनाव कराना “व्यवहारिक रूप से संभव नहीं” बताया गया।
  • तब तक के लिए, परिषद के सभी कार्य उपायुक्त (Deputy Commissioner) को सौंप दिए गए हैं, जब तक नई परिषद का गठन नहीं हो जाता।

स्थानीय प्रतिनिधित्व की कमी पर चिंता

  • चुशुल (चीन सीमा से सटा क्षेत्र) के पूर्व पार्षद कोंचोक स्तानजिन ने कहा “अब सांसद के अलावा कोई जनप्रतिनिधि नहीं बचा है। यह विशेष रूप से सीमा क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए हानिकारक है। उन्हें अपनी समस्याएं बताने के लिए सैकड़ों किलोमीटर दूर लेह शहर आना पड़ता है।”
  • परिषद के हर पार्षद के पास लगभग 1.5 करोड़ का विकास कोष होता है और परिषद 40 प्रकार के प्रशासनिक कार्यों पर निर्णय लेने के लिए अधिकृत है।

पिछला चुनाव और वर्तमान स्थिति

  • LAHDC-लेह का पिछला चुनाव वर्ष 2020 में हुआ था, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने 15 सीटें, कांग्रेस ने 9 सीटें जीती थीं। 
  • 4 पार्षद उपराज्यपाल द्वारा नामित किए गए थे।
  • कारगिल की परिषद (LAHDC-Kargil) का गठन वर्ष 2023 में हुआ था, जिसका कार्यकाल वर्ष 2028 तक रहेगा।
  • 2025–26 के लिए लेह हिल काउंसिल को गृह मंत्रालय द्वारा 255 करोड़ का बजट आवंटित किया गया है।

लद्दाख की स्थिति और भौगोलिक विशेषता

  • लद्दाख को वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग कर विधानसभा रहित केंद्रशासित प्रदेश  बनाया गया था।
  • लेह जिला जनसंख्या (2011 जनगणना): 1.33 लाख
  • कुल क्षेत्रफल: 45,100 वर्ग किलोमीटर
  • यह भारत के सबसे ऊँचे और शीत क्षेत्रों में से एक है।

निष्कर्ष

  • लेह में जन-प्रतिनिधित्व का अभाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया में एक अस्थायी ठहराव लेकर आया है। 
  • जब तक राज्य का दर्जा और संवैधानिक सुरक्षा से जुड़ी वार्ताएं किसी निर्णायक परिणाम पर नहीं पहुँचतीं, तब तक स्थानीय प्रशासन केवल प्रशासनिक रूप से चलाया जा रहा है।
  • यह स्थिति न केवल स्थानीय शासन और विकास कार्यों को प्रभावित कर रही है, बल्कि सीमावर्ती क्षेत्रों के लोगों की आवाज़ को भी कमजोर बना रही है।
  • लद्दाख के लोगों की यह मांग  “छठी अनुसूची के तहत संरक्षण और राज्य का दर्जा” अब भारत की संघीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण विषय बन चुकी है।
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