(प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय राजव्यवस्था) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, संगठन एवं कार्य; सरकारी नीतियों व विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा उनके अभिकल्पन व कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय) |
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार की मातृत्व लाभ को दो बच्चों तक सीमित करने वाली नीति को खारिज करते हुए एक सरकारी शिक्षिका को तीसरे बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश प्रदान करने का आदेश दिया।
मातृत्व अवकाश एवं प्रजनन अधिकार
हालिया मामला
- तमिलनाडु में एक शिक्षिका ने पहले पति से दो बच्चों को जन्म दिया था और वर्ष 2012 में सरकारी सेवा में शामिल हुई थी। उसने पुनर्विवाह के बाद वर्ष 2021 में तीसरे बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश की मांग की, जिसे अस्वीकार कर दिया गया।
- तमिलनाडु सरकार ने कहा कि मातृत्व लाभ केवल ‘दो जीवित बच्चों’ के लिए उपलब्ध है जिससे वह इस लाभ के लिए अयोग्य हो गई।
न्यायिक प्रक्रिया
- मद्रास उच्च न्यायालय : एकल पीठ ने अवकाश स्वीकृत किया किंतु डिवीजन बेंच ने मातृत्व अवकाश को मौलिक अधिकार न मानते हुए इसे खारिज कर दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय : उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करते हुए शिक्षिका को अवकाश प्रदान करने का निर्देश दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मातृत्व अवकाश मातृत्व लाभों का एक अनिवार्य हिस्सा है और इसे महिलाओं के प्रजनन अधिकारों के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रजनन अधिकार अब अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के कई क्षेत्रों का हिस्सा हैं, जैसे- स्वास्थ्य का अधिकार, समानता का अधिकार एवं गरिमा का अधिकार।
तमिलनाडु सरकार का रुख
- नीति : मातृत्व लाभ दो बच्चों तक सीमित और तीसरे बच्चे के लिए लाभ देने से नीति का उल्लंघन।
- तर्क : मातृत्व लाभ के विस्तार से राजकोष पर बोझ पड़ना, प्रशासनिक दक्षता पर प्रभाव और जनसंख्या नियंत्रण नीति का उल्लंघन।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
निर्णय
- शिक्षिका को तमिलनाडु के FR 101(a) नियम के तहत मातृत्व अवकाश का हक।
- तमिलनाडु सरकार को दो महीने के भीतर मातृत्व लाभ प्रदान करने का निर्देश।
तर्क
- तीसरा बच्चा शिक्षिका की सरकारी सेवा में शामिल होने के बाद पहला बच्चा था।
- जनसंख्या नियंत्रण एवं मातृत्व लाभ नीतियों में सामंजस्य की आवश्यकता।
प्रजनन अधिकार
- प्रजनन अधिकारों को स्वास्थ्य, गोपनीयता, समानता एवं गरिमा के अधिकारों से जोड़ा गया।
- मातृत्व लाभ को मानवाधिकारों का हिस्सा माना गया।
आगे की राह
- मातृत्व लाभ नीतियों को प्रजनन अधिकारों के साथ संरेखित करने की आवश्यकता।
- राज्यों को मातृत्व अवकाश नीतियों में लचीलापन अपनाने की आवश्यकता।
- कार्यस्थल में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता की आवश्यकता।
निष्कर्ष
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय मातृत्व अवकाश को प्रजनन एवं मानवाधिकारों का हिस्सा स्थापित करता है। यह तमिलनाडु की दो-बच्चों की औपचारिक नीति को चुनौती देता है और मातृत्व लाभों के लिए व्यापक दृष्टिकोण की मांग करता है। भारत को मातृत्व लाभ नीतियों को अधिक समावेशी बनाने के लिए नीतिगत सुधारों पर ध्यान देना चाहिए।