(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक मुद्दे) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: केंद्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का कार्य-निष्पादन) |
संदर्भ
भारत में रक्षा कर्मियों और उनके परिवारों को प्राय: गंभीर चोटों, अक्षमता एवं आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेकर सैन्य प्रशिक्षण के दौरान घायल और अक्षम हुए कैडेट्स के मामले में हस्तक्षेप किया, जिसने नौकरशाही की असंवेदनशीलता तथा रक्षा कर्मियों की अनदेखी पर सवाल उठाए।
हालिया मुद्दे के बारे में
- भारत में सैनिक जब प्रशिक्षण या ड्यूटी के दौरान घायल हो जाते हैं, तो उन्हें व उनके परिवार को पर्याप्त समर्थन और लाभ प्राप्त करने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
- सैन्य अकादमियों में प्रशिक्षण के दौरान घायल कैडेट्स को नियमों की जटिलता और नौकरशाही की असंवेदनशीलता के कारण उचित चिकित्सा लाभ, मुआवजा या पुनर्वास की सुविधा नहीं मिलती है।
- यह मुद्दा उन युवाओं के लिए विशेष रूप से गंभीर है, जो देश की सेवा के लिए आगे आते हैं किंतु चोट आदि के कारण उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक मीडिया रिपोर्ट के आधार पर स्वतः संज्ञान लिया, जिसमें ऐसे कैडेट्स की दुर्दशा को उजागर किया गया था और सरकार को तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिया।
सर्वोच्च न्यायालय की कार्रवाई
- न्यायालय ने इस मामले को ‘न्याय का हनन’ माना और सरकार से इन कैडेट्स को पूर्व सैनिकों के समान चिकित्सा लाभ प्रदान करने का निर्देश दिया।
- इस कार्रवाई के बाद सरकार ने तुरंत कदम उठाए और इन कैडेट्स को चिकित्सा लाभ प्रदान करने की घोषणा की।
- न्यायालय ने नौकरशाही के इस हृदयहीन रवैये पर सवाल उठाए और इस मुद्दे की गहराई से जांच करने की इच्छा जताई।
सैनिकों के लिए न्याय संबंधी मामले
- 1989 का IAF पायलट मामला : भारतीय वायु सेना (IAF) के एक पायलट की उड़ान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी और उनकी गर्भवती पत्नी को नियमों के अनुसार बढ़ी हुई पारिवारिक पेंशन नहीं मिल रही थी क्योंकि नियम पुस्तक में गर्भवती विधवाओं के लिए प्रावधान नहीं था। समिति ने इस मुद्दे को उठाया और कई वर्षों की मेहनत के बाद नियमों में संशोधन हुआ।
- सियाचिन हेलीकॉप्टर दुर्घटना : दो दशक पहले सियाचिन ग्लेशियर में IAF चीता हेलीकॉप्टर दुर्घटना में एक पायलट की मृत्यु हो गई, जबकि दूसरा पायलट सिर की गंभीर चोट के कारण अक्षम हो गया। छत्तीसगढ़ के तत्कालीन राज्यपाल शेखर दत्त, जो पूर्व सैनिक और रक्षा सचिव थे, ने रक्षा मंत्रियों ए.के. एंटनी व मनोहर पर्रिकर के साथ मिलकर पायलट को सेवा विस्तार दिलवाया। यह मामला असाधारण सहानुभूति और हस्तक्षेप का उदाहरण है।
- वर्तमान मामला : सैन्य अकादमियों में प्रशिक्षण के दौरान अक्षम हुए कैडेट्स को चिकित्सा लाभ और पुनर्वास से वंचित रखा गया था। सर्वोच्च न्यायालय की स्वत: संज्ञान कार्रवाई के बाद सरकार ने इन कैडेट्स को पूर्व सैनिकों के समान लाभ प्रदान किए।
नौकरशाही स्तर पर असंवेदनशील का कारण
- नियमों की कठोरता : नौकरशाही बिना मानवीय परिस्थितियों को ध्यान में रखे प्राय: नियम पुस्तक का शब्दशः पालन करती है।
- सहानुभूति की कमी : नौकरशाही सैनिकों और उनके परिवारों की अनूठी चुनौतियों, जैसे- सियाचिन जैसे खतरनाक क्षेत्रों में काम करने की कठिनाइयों को समझने में विफल रहती है।
- जटिल प्रक्रियाएँ : मुआवजा, पेंशन या चिकित्सा लाभ प्राप्त करने के लिए जटिल कागजी कार्रवाई और लंबी प्रक्रियाएं सैनिकों एवं उनके परिवारों के लिए बाधा बनती हैं।
- जवाबदेही की कमी : नौकरशाही में व्यक्तिगत जवाबदेही की कमी के कारण अधिकारी नियमों के पीछे छिपकर निर्णय लेने में देरी करते हैं।
- सामाजिक दूरी : नौकरशाही प्राय: सैनिकों की कठिनाइयों से व्यक्तिगत रूप से अपरिचित होती है।
रक्षा कर्मियों और उनके परिवारों की चुनौतियाँ
- चिकित्सा लाभों तक पहुँच : प्रशिक्षण या ड्यूटी के दौरान घायल हुए सैनिकों को चिकित्सा लाभ और पुनर्वास प्राप्त करने में कठिनाई होती है, खासकर यदि वे औपचारिक रूप से ‘सेवा में’ नहीं माने जाते।
- आर्थिक कठिनाइयाँ : अक्षमता या मृत्यु के बाद परिवारों को पेंशन, मुआवजा या रोजगार के अवसरों की कमी का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ती है।
- सामाजिक समर्थन की कमी : सैनिकों एवं उनके परिवारों को सामाजिक व भावनात्मक समर्थन की कमी होती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
- नौकरशाही बाधाएँ : जटिल नियम एवं प्रक्रियाएँ (जैसे- अक्षमता प्रमाणन या पेंशन के लिए आवेदन) सैनिकों और उनके परिवारों के लिए बोझ बनती हैं।
- मनोवैज्ञानिक प्रभाव : युद्ध क्षेत्रों में काम करने और चोटों का सामना करने से सैनिकों में PTSD जैसे मनोवैज्ञानिक मुद्दे उत्पन्न हो सकते हैं, जिनका समाधान नहीं किया जाता।
आगे की राह
- नियमों में लचीलापन: सरकार को सैनिकों और उनके परिवारों की अनूठी परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए नियमों में लचीलापन लाना चाहिए। उदाहरण के लिए, गर्भवती विधवाओं या अक्षम कैडेट्स के लिए स्पष्ट प्रावधान बनाए जाएँ।
- सहानुभूति प्रशिक्षण : नौकरशाही को सैनिकों की चुनौतियों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएँ।
- सरल प्रक्रिया : चिकित्सा लाभ, पेंशन एवं मुआवजे की प्रक्रियाओं को सरल व समयबद्ध करना चाहिए, ताकि सैनिकों के परिवारों को त्वरित सहायता मिले।
- विशेष कोष एवं नीतियाँ : सैनिकों और उनके परिवारों के लिए एक विशेष कोष व नीतियां बनानी चाहिए, जो ऐसी स्थितियों में तत्काल सहायता प्रदान करे।
- सामाजिक समर्थन : सैनिकों एवं उनके परिवारों के लिए सामुदायिक समर्थन कार्यक्रम (जैसे- मनोवैज्ञानिक परामर्श व पुनर्वास केंद्र) स्थापित किए जाएँ।