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कृषि-उत्थान के लिये अधिकतम समर्थन नीति की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाओं से संबंधित प्रश्न)
(मुख्य परीक्षा : सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 3- प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कृषि सहायता तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित विषय)

संदर्भ

तीनों कृषि कानूनों की वापसी के बाद से ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (Minimum Supoort Price – MSP) का मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है।

प्रमुख बिंदु

  • आंदोलनकारियों ने एम.एस.पी. को वैध बनाने, ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ बढ़ाने तथा इसे सभी फसलों तक विस्तारित करने की माँग की जबकि सरकार द्वारा इस दावे को खारिज़ कर दिया गया।
  • एम.एस.पी. का अर्थ मूलतः सरकार द्वारा किसानों को उनकी फसल के लिये दी जाने वाली न्यूनतम मूल्य की गारंटी से होता है। यह फसल लागत के डेढ़ गुने से अधिक होता है।
  • एम.एस.पी. का मुद्दा मुख्य रूप से लागत प्रभावी मूल्य निर्धारण से संबंधित है। वर्तमान परिदृश्य में कृषि का मूल्यांकन न केवल एक उद्यम, व्यवसाय या आजीविका के साधन के रूप में, बल्कि इससे आगे बढ़कर किया जाना चाहिये।

अधिकतम समर्थन नीति की आवश्यकता

  • ‘अधिकतम समर्थन नीति’ का आशय है कि सरकार द्वारा कृषि के उत्थान के लिये कृषि के प्रत्येक पहलू को बढ़ावा दिया जाए।
  • वोट बैंक की राजनीति के चलते कृषि क्षेत्र व ग्रामीण क्षेत्र सामान्यतः उपेक्षित रहा। अत: समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिये ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ के स्थान पर ‘अधिकतम समर्थन नीति’ (Maximum Support Policy) की आवश्यकता है।
  • इसके माध्यम से ग्रामीण भारत की संरचनात्मक असमानताओं, संस्थागत और प्रशासनिक कमियों और राजनीतिक विकृतियों को दूर किया जा सकता है।

अधिकतम समर्थन नीति संबंधी प्रमुख कदम

  • इस नीति को बढ़ावा देने के लिये रसायनों के उपयोग को पर आधारित हरित क्रांति के मॉडल से चरणबद्ध वापसी की जानी चाहिये।
  • सतत् कृषि हेतु ‘शून्य बजट प्राकृतिक खेती’ को बढ़ावा देने वाली नीति के मूल्यांकन की भी आवश्यकता है क्योंकि भारत के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों के लिये ‘प्राकृतिक खेती’ का एकल कृषि मॉडल उपयुक्त नहीं होगा।
  • एकल कृषि मॉडल के बजाय क्षेत्रीय रूप से विकसित टिकाऊ कृषि प्रणाली की आवश्यकता है, जो कृषि संबंधी असमानताओं, जैसे– बंधुआ मज़दूरी और किराएदारी आदि को समाप्त करने में सक्षम हो और नई जलवायु प्रवृत्तियों के अनुकूल हो।
  • यदि वास्तव में छोटे व सीमांत किसानों के हितों को ध्यान में रखना है, तो ऐसी नीतियों की आवश्यकता होगी, जो भूमि तथा जल जैसे संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित कर सके।
  • चुनाव के दौरान सरकारों को लोक-लुभावन वादे करने, जैसे– कृषि सब्सिडी देना, किसानों का ऋण माफ करना आदि से बचाना चाहिये। इसके स्थान पर सरकार को कृषि के पुनरुत्थान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। इसके अलावा, जल संसाधनों का पुनर्भरण, मृदा स्वास्थ्य में वृद्धि, बीज व कृषि विविधता आदि को भी बढ़ावा देना चाहिये।
  • यह नीति न केवल सतत् कृषि को बढ़ावा देगी, बल्कि लोगों को जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन रणनीतियाँ विकसित करने में भी सक्षम बनाएगी।
  • ‘स्थानीय बीज बैंकों’ के बेहतर विकास के लिये एक नई बीज नीति लाए जाने की आवश्यकता है, ताकि किसानों को ‘लाभकेंद्रित बीज उद्योगों’ के चंगुल में फँसने से बचाया जा सके।
  • बेरोज़गारी तथा शहरी प्रवास की समस्या से निपटने हेतु लघु उद्योगों और प्रसंस्करण केंद्रों को बढ़ावा देना होगा, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में ही रोज़गार के अवसर सृजित किये जा सकें और शहरों की ओर होने वाले प्रवसन को नियंत्रित किया जा सके। इसके अलावा, लोगों के कौशल विकास को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • ग्रामीण क्षेत्र के लिये एक नवीन नीति अपनाई जानी चाहिये, ताकि वहाँ भी स्वास्थ्य, शिक्षा, जीवन की गुणवत्ता जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव लाया जा सके।
  • सार्वजनिक संस्थानों, जैसे– पंचायतों, आँगनवाड़ी केंद्रों, स्कूलों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों आदि में ऐसे सुधार की आवश्यकता है, जो राजकीय सेवाओं की सहज आपूर्ति सुनिश्चित कर सकें।

निष्कर्ष

यद्यपि सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र में तीनों कृषि बिल निरसित कर दिये हैं, तथापि ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ का मुद्दा अभी भी विद्यमान है। ऐसे में, हमें कृषकों की स्थिति में सुधार हेतु एक ‘अधिकतम समर्थन नीति’ अपनाने की आवश्यकता है, जो जलवायु-स्मार्ट कृषि के साथ-साथ कृषकों के हित भी पूरे कर सके।

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