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मिर्ज़ा ग़ालिब

गोपीचंद नारंग की ‘ग़ालिब : इनोवेटिव मीनिंग एंड द इंजिनियस माइंड’ और मेहर अफशां फ़ारूकी की ‘ग़ालिब: ए वाइल्डरनेस एट माई डोरस्टेप’ जैसी पुस्तकें चर्चा में रही हैं।

मिर्ज़ा ग़ालिब के बारे में 

  • परिचय : ग़ालिब उर्दू-फ़ारसी के प्रख्यात कवि तथा महान शायर थे। 
  • उर्दू गद्य-लेखन की नींव रखने के कारण इन्हें वर्तमान उर्दू गद्य का जन्मदाता भी कहा जाता है।

  • मूल नाम : मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग ख़ान
  • जन्म : 27 दिसंबर, 1797 (आगरा, उत्तर प्रदेश)
  • मृत्यु : 15 फ़रवरी, 1869 (दिल्ली)
  • विवाह : 13 वर्ष की आयु में नवाब ईलाही बख्श की बेटी उमराव बेगम से
  • प्रमुख उपाधि : मिर्ज़ा नोशा, दबीर-उल-मुल्क एवं नज़्म-उद-दौला 
  • प्रमुख विधा : ग़ज़ल, क़सीदा, रुबाई, क़ितआ, मर्सिया
  • प्रमुख विषय : प्यार, विरह, दर्शन, रहस्यवाद
  • राजनैतिक जीवन 
    • मुग़ल काल के आख़िरी शासक बहादुर शाह ज़फ़र के दरबारी कवि
    • बहादुर शाह द्वितीय के पुत्र मिर्ज़ा फ़ख़रु के शिक्षक
    • मुग़ल दरबार के शाही इतिहासविद
  • ग़ालिब की प्रमुख रचनाएँ
    • उर्दू-ए-हिन्दी
    • उर्दू-ए-मुअल्ला
    • नाम-ए-ग़ालिब
    • लतायफे गैबी
    • दुवपशे कावेयानी आदि।
  • इनकी रचनाओं में देश की तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक स्थिति का वर्णन हुआ है।
  • रचना संग्रह : उनकी शायरी का संग्रह ‘दीवान-ए-ग़ालिब’ के रूप में 10 भागों में प्रकाशित किया गया है।

ग़ालिब की शायरी संग्रह ‘दीवान-ए-ग़ालिब’ से कुछ पंक्तियाँ

मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे

तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे।


रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल

जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।


बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया है मेरे आगे

होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे।

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