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नैरोबी मक्खी

चर्चा में क्यों 

हाल ही में, पूर्वी सिक्किम के एक इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों ने नैरोबी मक्खियों के संपर्क में आने के बाद त्वचा संक्रमण की सूचना दी है।

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हालिया घटनाक्रम

  • मूलतः पूर्वी अफ्रीका में पाई जाने वाली नैरोबी मक्खियों की आबादी सिक्किम मणिपाल प्रौद्योगिकी संस्थान के परिसर में तेज गति से बढ़ रही है। 
  • स्वास्थ्य विभाग के अनुसार मक्खियाँ प्रजनन के लिये तथा खाद्य आपूर्ति की तलाश में नए क्षेत्रों में विस्तार करती है।

नैरोबी मक्खी

  • इन्हें केन्याई मक्खियाँ या ड्रैगन बग भी कहा जाता है। ये छोटे झींगुर जैसे कीट होते हैं। ये दो प्रजातियों पेडरस एक्ज़िमियस (Paederus Eximius) और पेडरस सबाईस (Paederus Sabaeus) से संबंधित हैं। 
  • ये नारंगी और काले रंग के होते हैं और उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में पनपते हैं। इसके अतिरिक्त, अन्य कीटों के समान ये भी उज्ज्वल प्रकाश से आकर्षित होते हैं।

मनुष्यों पर प्रभाव 

  • सामान्यतया ये कीट फसलों को क्षति पहुँचाने वाले हानिकारक कीटों पर हमला करते हैं। इस प्रकार, ये अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्यों के लिये लाभकारी होते हैं। 
  • लेकिन कभी-कभी ये सीधे मनुष्यों के संपर्क में आ जाते हैं जो नुकसान का कारण बनते हैं। स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार ये मक्खियाँ काटती नहीं हैं, लेकिन व्यक्ति के त्वचा पर बैठकर पेडरिन (Pederin) नामक एक शक्तिशाली अम्लीय पदार्थ छोड़ती हैं जो जलन का कारण बनता है।
  • इससे त्वचा पर घाव या असामान्य निशान पड़ सकते हैं। त्वचा एक या दो सप्ताह में ठीक होने लगती है, लेकिन इससे कुछ अन्य संक्रमण भी हो सकते हैं।

रोग का पूर्व में प्रकोप

इस रोग का सबसे व्यापक प्रसार केन्या और पूर्वी अफ्रीका के अन्य हिस्सों में हुआ है। वर्ष 1998 में, असामान्य रूप से भारी बारिश के कारण इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में कीटों का आगमन हुआ। विदित है कि अफ्रीका के बाहर भारत, जापान, इज़राइल और पराग्वे में भी इसका प्रकोप हो चुका है।

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