(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2 : केन्द्र एवं राज्यों द्वारा जनसंख्या के अति संवेदनशील वर्गों की रक्षा एवं बेहतरी के लिये गठित तंत्र, विधि, संस्थान एवं निकाय।) |
संदर्भ
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। हमारे संविधान का अनुच्छेद 39A स्पष्ट कहता है कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि कोई भी नागरिक आर्थिक या अन्य अक्षमता के कारण न्याय से वंचित न रहे।
कानूनी सहायता तंत्र की स्थापना
नि:शुल्क विधिक सहायता के संवैधानिक आदर्श को साकार करने के लिए न्यायमूर्ति वी.आर.कृष्णा अय्यर के मार्गदर्शन में विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 लागू किया गया, जो 9 नवंबर 1995 से प्रभावी हुआ। तभी से हर वर्ष 9 नवंबर को राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
कानूनी सहायता की पहुंच
- 2022-25 तक 44.22 लाख से अधिक लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता मिली।
- लोक अदालतों ने 23.58 करोड़ से ज्यादा मामलों का त्वरित निपटारा किया।
- दिशा योजना (2021-2026) के तहत 28 फरवरी 2025 तक 2.10 करोड़ लोगों को मुकदमा-पूर्व सलाह, निःशुल्क कानूनी प्रतिनिधित्व और जागरूकता प्रदान की गई।
- 2022-25 तक 13.83 लाख से अधिक कानूनी जागरूकता कार्यक्रमों में 14.97 करोड़ लोगों ने भाग लिया।

तीन-स्तरीय मजबूत ढांचा
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम ने देश में एक मजबूत त्रि-स्तरीय व्यवस्था बनाई है:
- राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) : मुख्य न्यायमूर्ति की अध्यक्षता में।
- राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण : उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में।
- जिला विधिक सेवा प्राधिकरण : जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में।
इनकी फंडिंग केंद्र, राज्य और दान से होती है। पिछले तीन वर्षों में कानूनी सहायता प्राप्त करने वालों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

लोक अदालतें: न्याय का जन-जन तक विस्तार
लोक अदालतें समझौते का सबसे सशक्त माध्यम हैं। 2022-25 तक इन्होंने 23.58 करोड़ मामलों का सौहार्दपूर्ण निपटारा किया। ये लंबित और मुकदमा-पूर्व दोनों तरह के मामलों को तेजी से सुलझाती हैं।
विशेष योजनाएं और पहल
- एल.ए.डी.सी.एस. (Legal Aid Defense Counsel System): 668 जिलों में कार्यरत। सितंबर 2025 तक 11.46 लाख में से 7.86 लाख मामलों का निपटारा। बजट: 998.43 करोड़ रुपये।
- टेली-लॉ सेवा: 1.3 लाख कॉमन सर्विस सेंटर्स पर 45 लाख से अधिक मुफ्त परामर्श।
- न्याय बंधु ऐप: 11,000 से अधिक प्रो-बोनो वकील गरीब मुवक्किलों से जोड़ते हैं।
- फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट्स (FTSC): 725 कोर्ट (392 POCSO सहित), 3.34 लाख मामलों का निपटारा।
- ग्राम न्यायालय: मार्च 2025 तक 488 कार्यरत।
- नारी अदालतें: असम और जम्मू-कश्मीर में 50-50 पंचायतों में, 16 राज्यों में पायलट प्रोजेक्ट।
तकनीक का सहारा
- दिशा योजना बजट: 250 करोड़ रुपये।
- ई-कोर्ट मिशन के तहत 80,000 से अधिक निर्णय 18 भारतीय भाषाओं में अनुवाद।
- दूरदर्शन पर 56 टीवी कार्यक्रम, 70.70 लाख दर्शक।
- सोशल मीडिया पर 21 वेबिनार, 1 करोड़ से अधिक लोगों तक पहुंच।

चुनौतियां
- ग्रामीण क्षेत्रों में 75% लोग मुफ्त कानूनी सहायता के हकदार होने से अनजान।
- केवल 20% पैनल वकीलों को औपचारिक प्रशिक्षण।
- 40% जिला अदालतों में कानूनी सहायता क्लिनिक की कमी।
- डिजिटल विभाजन और 4.5 करोड़ से अधिक लंबित मामले।
आगे की राह
- NALSA बजट में 25% वृद्धि की आवश्यकता।
- सभी पैनल वकीलों के लिए अनिवार्य प्रमाणन और निरंतर कानूनी शिक्षा।
- AI आधारित अनुवाद, ई-फाइलिंग और मोबाइल हेल्पडेस्क का विस्तार।
- NEP 2020 में कानूनी साक्षरता मॉड्यूल शामिल करना।
- लॉ यूनिवर्सिटी, बार काउंसिल और निजी फर्मों के साथ साझेदारी।

निष्कर्ष: न्याय कोई दान नहीं, अधिकार है
विकसित भारत 2047 का सपना तभी साकार होगा जब गांव की आखिरी महिला, आदिवासी युवा और गरीब मजदूर भी बिना डरे, बिना खर्च के न्याय मांग सके। राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस हमें याद दिलाता है कि कानून की समानता कोई नारा नहीं, जीवंत हकीकत है, बस हमें इसे समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना है।