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वुलर झील के संरक्षण की आवश्यकता

(प्रारंभिक परीक्षा : पर्यावरण एवं पारिस्थिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नप्रत्र-3: प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन)

चर्चा में क्यों 

कई अध्ययनों के अनुसार पिछले 100 वर्षों में वुलर झील काफी संकुचित हो गई है तथा जलग्रहण क्षेत्र में गाद के कारण इसकी जल भंडारण क्षमता कम हो रही है। ऐसे में कश्मीर घाटी में बार-बार आने वाली बाढ़ के जोखिम को कम करने के लिए वुलर झील की जल धारण क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता है।

वुलर झील के बारे में 

  • परिचय : वुलर झील भारत की सबसे बड़ी एवं एशिया की दूसरी सबसे बड़ी ताजे पानी की झील है। 
    • इसे सतीसर झील का अवशेष भी माना जाता है।
  • पौराणिक महत्त्व : प्राचीन काल में, वुलर झील को महापद्मसर भी कहा जाता था। नीलमत पुराण में इसका उल्लेख महापद्मसर के रूप में किया गया है।
  • अवस्थिति : यह जम्मू और कश्मीर के बांदीपुरा जिले में हरामुक पर्वत की तलहटी में स्थित है। 
  • निर्माण: झील बेसिन का निर्माण टेक्टोनिक गतिविधि के परिणामस्वरूप हुआ था।
  • क्षेत्रफल : यह 200 वर्ग किलोमीटर के कुल क्षेत्र में फैली हुई है, जिसकी लंबाई लगभग 24 किमी. जबकि चौड़ाई 10 किमी. है। 
  • जल स्रोत : वुलर झील के लिए पानी का मुख्य स्रोत झेलम नदी है। इसके अलावा यह मधुमती और अरिन नदियों से भी जल प्राप्त करती है। 
  • द्वीप : इस झील के केंद्र में एक छोटा सा द्वीप भी है जिसे 'ज़ैना लंक' कहा जाता है। इस द्वीप का निर्माण राजा ज़ैनुल-अबी-दीन ने करवाया था।
  • रामसर साइट : वर्ष 1990 में 

जोखिम 

  • वर्ष 2014 की बाढ़ ने पूरे कश्मीर घाटी से झेलम और वुलर में भारी मात्रा में गाद जमा होने से इन जल निकायों की धारण क्षमता में कमी के कारण कश्मीर में बाढ़ का खतरा बना हुआ है।
  • इसके अलावा झील के मूल्य और कार्य की समझ की कमी के कारण इसके बड़े क्षेत्र को कृषि, बस्तियों, वृक्षारोपण आदि के लिए परिवर्तित कर दिया गया।

महत्त्व

  • वुलर झील बाढ़ के पानी के लिए एक विशाल अवशोषण बेसिन के रूप में कार्य करके कश्मीर घाटी के जल विज्ञान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 
  • इसके अलावा, झील मध्य एशियाई फ्लाई वे के भीतर प्रवासी जल पक्षियों के लिए एक महत्त्वपूर्ण आवास है जो यहाँ की समृद्ध जैव विविधता का समर्थन करती है। 
  • यह क्षेत्र मछलियों के लिए एक महत्वपूर्ण आवास है, तथा राज्य के कुल मछली उत्पादन में इसका लगभग 60 % योगदान है।
  • झील के आस-पास देखे जाने वाले स्थलीय पक्षियों में, यूरेशियन स्पैरोहॉक , शॉर्ट-टोड ईगल , हिमालयन गोल्डन ईगल,गोल्डन ओरियोल आदि शामिल हैं।

झील के संरक्षण के लिए किए गए प्रयास 

  • जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय योजना : यह जलीय पारिस्थितिकी तंत्रों के संरक्षण के लिए एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा संचालित की जाती है। योजना का क्रियान्वयन चार चरणों के आधार पर किया जा रहा है :  
    • आधारभूत जानकारी विकसित करना
    • आर्द्रभूमि की स्थिति का त्वरित मूल्यांकन 
    • 'आर्द्रभूमि मित्रों' का गठन 
    • प्रबंधन योजना, विशिष्ट आर्द्रभूमि जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के मूल्यों और खतरों को संबोधित करना।
  • वुलर संरक्षण और प्रबंधन प्राधिकरण : जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा वर्ष 2013 में एक विशेष प्रयोजन वाहन वुलर संरक्षण और प्रबंधन प्राधिकरण की स्थापना की गई जो विशेष रूप से झील के लिए समर्पित है। 
    • वर्ष 2014 के हाइड्रोग्राफ के विश्लेषण के अनुसार वुलर झील की जल भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए इसकी ड्रेजिंग करना आवश्यक बताया गया है ताकि इस क्षेत्र में बाढ़ के जोखिम को कम किया जा सके। 
    • पानी के नीचे से तलछट हटाने की प्रक्रिया को ड्रेजिंग कहते हैं। 
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