| (प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-2: न्यायपालिका की संरचना, संगठन और कार्य; शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष) |
सर्वोच्च न्यायालय ने 12 नवंबर 2025 को एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि देश के सभी उच्च न्यायालयों को यह जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए कि उनके न्यायाधीशों ने कितने मामलों में निर्णय सुरक्षित रखे हैं, कितने फैसले सुनाए गए हैं और फैसले सुनाने में कितना समय लिया गया है।
यह टिप्पणी सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची ने उस समय की जब चार आजीवन कारावास पाए कैदियों (जो अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग से थे) ने यह शिकायत की कि झारखंड उच्च न्यायालय ने उनके आपराधिक अपीलों पर दो से तीन वर्ष पहले सुनवाई पूरी कर ली थी, लेकिन अभी तक फैसला सुनाया नहीं गया है।
न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची ने सुझाव दिया कि प्रत्येक उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर एक विशेष डैशबोर्ड बनाया जाना चाहिए, जिसमें यह जानकारी हो कि कौन से मामले निर्णय हेतु सुरक्षित हैं और किन पर फैसला सुनाया जा चुका है। उनके अनुसार, “ऐसा डैशबोर्ड न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही को जनता के सामने स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करेगा।”
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में सभी उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया कि वे अपनी मौजूदा व्यवस्थाओं की रिपोर्ट पेश करें, जिनसे यह जानकारी सार्वजनिक की जा सके :
साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय यह स्पष्ट करें कि क्या वे इस तरह की जानकारी सार्वजनिक करने से जुड़ी चुनौतियों या आशंकाओं के बारे में कोई सुझाव देना चाहते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों से विशेष रूप से जनवरी 31, 2025 के बाद सुरक्षित रखे गए निर्णयों और अक्टूबर 31, 2025 तक सुनाए गए निर्णयों का विवरण मांगा है, जिसमें उनके वेबसाइट पर अपलोड होने की जानकारी भी शामिल होगी।
इससे पहले सितंबर 2025 की सुनवाई में भी सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के प्रदर्शन का मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है। न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि इसका उद्देश्य किसी “प्रधानाचार्य की तरह निगरानी करना” नहीं है, बल्कि न्यायाधीशों को उनके दायित्वों की स्पष्ट समझ देना है।
सर्वोच्च न्यायालय का यह कदम न्यायपालिका में पारदर्शिता, जवाबदेही और जनविश्वास बढ़ाने की दिशा में एक अहम पहल है। अगर सभी उच्च न्यायालय इस दिशा में एक समान और प्रभावी प्रणाली विकसित करते हैं, तो इससे न्याय वितरण की गति और गुणवत्ता दोनों में सुधार संभव है, जो भारतीय न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता को और सुदृढ़ करेगा।
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