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भारत की समुद्री तटरेखा और द्वीपों की नई गणना

(प्रारंभिक परीक्षा : भारत का भूगोल)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1: विश्व के भौतिक भूगोल की मुख्य विशेषताएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनके स्थान-अति महत्त्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताओं तथा वनस्पति एवं प्राणिजगत में परिवर्तन व इस प्रकार के परिवर्तनों के प्रभाव)

संदर्भ 

वर्तमान में भारत की समुद्री तटरेखा की लंबाई एवं द्वीपों की संख्या में महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की गई है। समुद्री तटरेखा बढ़कर 11,098 किमी. हो गई है जो लगभग 48% की वृद्धि दर्शाती है। 

तटरेखा की लंबाई में वृद्धि 

  • नई माप : 1970 के दशक में भारत की समुद्री तटरेखा की लंबाई 7,516 किमी. आँकी गई थी किंतु हालिया सटीक मापन के बाद यह लंबाई 11,098 किमी. दर्ज की गई है, जो लगभग 3,582 किमी. की वृद्धि (लगभग 48%) को दर्शाता है।
  • कारण : यह वृद्धि किसी नए भू-क्षेत्र के अधिग्रहण के कारण नहीं हुई है बल्कि अधिक सटीक आधुनिक मापन तकनीकों के उपयोग के कारण हुई है।
    • बेहतर रिज़ॉल्यूशन डाटा : पहले की माप 1:4,500,000 (एक से पैंतालीस लाख) या उससे छोटे पैमाने के डाटा पर आधारित थी। अब 1:250,000 (एक से ढाई लाख) के उच्च रिज़ॉल्यूशन डाटा का उपयोग किया गया है। 
    • तटरेखाएँ अत्यधिक अनियमित होती हैं और उच्च रिज़ॉल्यूशन डाटा उनके मोड़, वक्र एवं सूक्ष्म विवरणों को बेहतर ढंग से कैप्चर करता है। 
    • निम्न रिज़ॉल्यूशन में ये विवरण चिकने होकर सीधी रेखाओं के रूप में दिखाई देते हैं, जिससे लंबाई की माप कम आती है।
  • आधुनिक तकनीक का उपयोग : पहले माप पारंपरिक एवं मैनुअल गणनाओं पर आधारित थे। अब आधुनिक जियोग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम (GIS) सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है जो भूमि की अनियमितताओं को अधिक सटीकता से माप सकता है। 
    • इसके अलावा, पहले की गणनाओं में कई अपतटीय द्वीपों की तटरेखाएँ शामिल नहीं थीं, जिसे अब माप में जोड़ा गया है।

कोस्टलाइन पैरेडॉक्स : माप का दार्शनिक विरोधाभास

  • तटरेखा की नई लंबाई अधिक सटीक है किंतु यह वास्तविक लंबाई नहीं है। तटरेखा विरोधाभास (Coastline Paradox) के अनुसार, तटरेखा जैसी अनियमित संरचनाओं की लंबाई माप के पैमाने पर निर्भर करती है। 
  • अधिक विस्तृत माप से तटरेखा की लंबाई हमेशा अधिक होगी। यह विरोधाभास नदियों एवं पर्वत श्रृंखलाओं जैसी अन्य प्राकृतिक संरचनाओं पर भी लागू होता है। इसलिए, तकनीकी प्रगति के साथ तटरेखा की लंबाई भविष्य में और बढ़ सकती है। इस कारण, अब हर दस साल में तटरेखा का पुनर्मापन अनिवार्य कर दिया गया है।

द्वीपों की पुनर्गणना: परिभाषा की स्पष्टता

  • पहले की गणना : वर्ष 2016 में सर्वेयर जनरल ऑफ इंडिया ने 1,382 अपतटीय द्वीपों की सूची बनाई थी। हालाँकि, राज्य सरकारों, तटरक्षक बल एवं भारतीय नौसेना की गणना में यह संख्या 1,334 थी।
  • नई गणना एवं मानकीकरण : डाटा समाधान प्रक्रिया के बाद परिभाषाओं में अस्पष्टताओं को दूर करके और वर्गीकरण को मानकीकृत करके 1,298 अपतटीय द्वीपों की नई संख्या तय की गई। 
    • इसके साथ ही 91 तटवर्ती द्वीपों को भी सूचीबद्ध किया गया। इस प्रकार, कुल द्वीपों की संख्या 1,389 है। इसमें असम एवं पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के नदी द्वीप शामिल नहीं हैं।
  • मानकीकरण का कारण : द्वीपों की गणना में कुछ जटिलताएँ हैं। उदाहरण के लिए, कुछ स्थान उच्च ज्वार के दौरान द्वीप हो सकते हैं किंतु निम्न ज्वार के दौरान मुख्य भूमि से जुड़े हुए हो सकते हैं। इन अस्पष्टताओं को दूर करने के लिए मानकीकृत परिभाषाएँ अपनाई गई हैं।

बदलाव के प्रशासनिक एवं रणनीतिक निहितार्थ

शैक्षणिक महत्व

चूँकि भूमि पर कोई वास्तविक परिवर्तन नहीं हुआ है और तटरेखा व द्वीपों की संख्या में यह वृद्धि मुख्यत: शैक्षणिक है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसका कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ता है।

प्रशासनिक एवं रणनीतिक महत्व

फिर भी, ये आँकड़े भारत के क्षेत्र एवं भू-आकृति की बेहतर समझ प्रदान करते हैं। इनके प्रशासनिक, विकासात्मक एवं सुरक्षा संबंधी निहितार्थ हैं। उदाहरण के लिए:

  • तटीय क्षेत्र विनियमन (CRZ) : नई तटरेखा कुछ स्थानों पर सी.आर.जेड. के दायरे को प्रभावित कर सकती है।
  • तटीय कटाव एवं जलवायु परिवर्तन : तटीय कटाव को रोकने और जलवायु परिवर्तन के खतरों से तटरेखा को लचीला बनाने के प्रयास प्रभावित होंगे।
  • पर्यटन एवं बुनियादी ढाँचा : पर्यटन एवं तटीय बुनियादी ढाँचे का विकास भी इन नए आँकड़ों से प्रभावित हो सकता है।

निष्कर्ष

  • भारत की तटरेखा की लंबाई एवं द्वीपों की संख्या में वृद्धि आधुनिक तकनीकों व सटीक माप का परिणाम है। यह जानकारी प्रशासनिक व रणनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। भविष्य में अधिक सटीक माप के साथ इन आंकड़ों में अतिरिक्त बदलाव संभव हैं। तकनीकी प्रगति एवं नियमित पुनर्मापन भारत के तटीय क्षेत्रों की बेहतर समझ व प्रबंधन में योगदान देगा।
  • भारत की तरह अन्य देश भी समय-समय पर अपने तटों एवं द्वीपों की पुनर्गणना करते हैं। यह केवल तकनीकी उन्नति का परिणाम नहीं है, बल्कि तटीय क्षरण, भूमि पुनर्प्राप्ति एवं समुद्र स्तर में वृद्धि जैसी प्राकृतिक घटनाओं के कारण भी आवश्यक हो जाता है।
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