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नई ई-कचरा प्रबंधन नीति 

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-2 : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय)

संदर्भ 

भारत में ई-कचरे को विनियमित करने के लिये केंद्र सरकार ने एक रूपरेखा प्रस्तावित की है। इससे इलेक्ट्रॉनिक कचरा संग्रह करने की वर्तमान प्रणाली में परिवर्तन के साथ-साथ कई लोगों का रोजगार प्रभावित होने की संभावना है।

ई-कचरा प्रबंधन की वर्तमान व्यवस्था 

  • इलेक्ट्रॉनिक कचरा उन्हें कहते हैं जो अपने उत्पादक जीवन सीमा को पार कर चुके हैं या पुराने हो गए हैं। भारत में इनका प्रबंधन बड़े पैमाने पर अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किया जाता है।
  • पूर्ण रूप से प्रयुक्त हो चुके यंत्रों (वस्तुओं) का विघटन (नष्ट) किया जाता है और व्यवहार्य रूप से सक्रिय यंत्रों को नवीनीकृत करके पुन: प्रयोग किया जाता है, जबकि शेष को रासायनिक प्रक्रिया के माध्यम से विघटित किया जाता है ।
  • अनौपचारिक क्षेत्र की अधिकांश इकाइयाँ बाल श्रम को बढ़ावा देने के साथ-साथ खतरनाक निष्कर्षण तकनीकों का प्रयोग करती हैं। इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट से मृदा तथा प्लास्टिक प्रदूषण में वृद्धि होती है।

ई-कचरा (प्रबंधन) नियम

  • ई-कचरे के विनियोजित प्रबंधन के लिये पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वर्ष 2016 में ई-कचरा (प्रबंधन) नियमों को अंगीकृत किया, जिसमें ‘विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व’ (EPR) प्रणाली की शुरुआत की गई। 
  • इसके माध्यम से निर्माताओं द्वारा प्रत्येक वर्ष बेचे गए इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के एक नियत अनुपात का पुनर्नवीनीकरण सुनिश्चित करना होता है।
  • हालाँकि, अधिकांश कंपनियों ने आंतरिक पुनर्नवीनीकरण इकाइयों का रखरखाव नहीं किया। इससे सरकार के अधीन पंजीकृत कंपनी की व्यवस्था को बढ़ावा मिला, जिन्हें ‘निर्माता उत्तरदायित्व संगठन’ (PRO) कहा जाता है।
  • यह इलेक्ट्रॉनिक वस्तु निर्माताओं और औपचारिक रीसाइक्लिंग इकाइयों के बीच एक मध्यस्थ के रूप में कार्य करता है।
  • सामान्यत: पी.आर.ओ. पुनर्नवीनीकरण की व्यवस्था करते हैं और कंपनियों को पुनर्चक्रण प्रमाण पत्र प्रदान करते हैं। कई पी.आर.ओ. उपभोक्ता जागरूकता पर कार्य करने के साथ-साथ पुनर्नवीनीकरण श्रृंखला आपूर्ति को भी सक्षम बनाते हैं।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार मार्च तक देशभर में 74 पी.आर.ओ. तथा 468 अधिकृत विघटनकर्ता पंजीकृत थे। इनकी वार्षिक पुनर्चक्रण क्षमता 1.3 मिलियन टन है।
  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, वर्ष 2018-19 में लगभग 7.7 लाख टन ई-कचरा जबकि वर्ष 2019-20 में लगभग एक मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ। दोनों वर्ष लगभग 22% को ही सफलतापूर्वक विघटित एवं पुनर्नवीनीकृत किया जा सका।

नई ई-कचरा प्रबंधन व्यवस्था 

  • पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी मसौदा अधिसूचना के अनुसार, अब देश में पी.आर.ओ. तथा विघटनकर्ताओं की व्यवस्था को समाप्त करते हुए मात्र अधिकृत पुनर्चक्रणकर्ताओं को ही यह कार्य सौंपा जाएगा।
  • ये पुनर्चक्रण करने के साथ ई-प्रमाणपत्र जारी करेंगे। कंपनियां इन ई-प्रमाणपत्रों को अपने वार्षिक प्रतिबद्ध लक्ष्यों के बराबर खरीद सकती हैं।
  • नई ई-कचरा प्रबंधन व्यवस्था में इलेक्ट्रॉनिक प्रबंधन प्रणाली को शामिल किया जाएगा जिससे ई-कचरा प्रबंधन पर पूर्ण नजर रखना संभव होगा और जवाबदेही में सुधार होगा।
  • पी.आर.ओ. व्यवस्था में पुनर्चक्रण वाली वस्तुओं की दोहरी गणना के कई उदाहरण मौजूद हैं, जहां एक ही कंपनी के लिये एक बार पुनर्नवीनीकरण की गई सामग्री को कई कंपनियों के लिये प्रयोग कर दिया जाता है।
  • माना जा रहा है कि वर्तमान व्यवस्था इस कार्य में संलग्न सभी श्रमिकों के लिये लाभदायक नहीं है किंतु नई व्यवस्था में उन सभी इच्छुक व्यक्तियों को शामिल किया जाएगा जो ई-कचरे को एकत्रित करने के साथ उसके प्रबंधन का भी कार्य करेंगे।

संभावित चुनौतियाँ 

  • भारत में अधिकृत पुनर्चक्रणकर्ताओं की संख्या अत्याधिक कम है, ऐसे में सूचीबद्ध ई-कचरे की संख्या में वृद्धि (21 से बढ़कर 95) होना तथा निर्माता उत्तरदायित्व संगठन और पुनर्चक्रणकर्ताओं की समाप्ति देश के लिये ई-कचरे संबंधी व्यापक खतरों का सूचक है।
  • नए नियमों के तहत पुनर्चक्रणकर्ता संभवत: अपनी आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करेंगे, जबकि उत्पादों का पुनर्चक्रण सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी कंपनियों (उत्पादकों) पर नहीं होगी।
  • इस क्षेत्र में कार्यरत व्यक्तियों के रोजगार पर आकस्मिक संकट पैदा हो गया है। साथ ही, पुनर्चक्रण इकाइयों की कम उपलब्धता के कारण पुनर्नवीनीकरण के लिये वस्तुओं (ई-कचरा) को अधिक दूरी तय करनी पड़ेगी।

निष्कर्ष 

तत्कालीन परिदृश्य में ई-कचरा केवल भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व के लिये एक व्यापक खतरा बन चुका है जिसने अनेक पर्यावरणीय समस्याओं को उत्पन्न किया है। ऐसे में इस संबंध में त्वरित नीति निर्धारण अतिआवश्यक है परंतु इसके क्रियान्वयन में ई-कचरा प्रबंधन के साथ-साथ असंगठित श्रमिकों तथा पर्यावरणीय परिणामों का संज्ञान रखना अनिवार्य है।

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