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ई-कचरा से सम्बंधित समस्याएँ

(प्रारंभिक परीक्षा- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, पर्यावरणीय पारिस्थितिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3 : संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, तीसरा अन्तर्राष्ट्रीय ई-कचरा दिवस मनाया गया।

ई-कचरा : सम्बंधित तथ्य

  • मोबाइल फोन, कम्प्युटर, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, जैसे- टी.वी, फ्रिज, वाशिंग मशीन व अन्य और ट्युबलाइट, बल्ब व सी.एफ.एल. जैसी अन्य चीजें जिनमें विषैले पदार्थ पाए जाते हैं, जब खराब हो जाते हैं या जब इनका उपयोग समाप्त हो जाता है तो ये ई-कचरा कहलाते हैं।
  • पिछले 5 वर्षों में वैश्विक स्तर पर ई-कचरे की मात्रा में 21% की वृद्धि हुई है। इसके दोगुना होने की दर लगभग 16 वर्ष है।
  • अन्य प्रकार के कचरों की अपेक्षा ई-कचरे में सबसे तेज़ी से वृद्धि हो रही है। वैश्विक स्तर पर वर्ष 2019 में लगभग 53.6 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ था, जो लगभग 7.3 किलोग्राम प्रति व्यक्ति था।
  • यूरोप अपने द्वारा उत्पन्न ई-कचरे का लगभग 42.5% और अफ्रीका केवल 0.9% के आस-पास पुनर्चक्रण करता है।

भारत की स्थिति

  • भारत ने वर्ष 2019 में लगभग 3.2 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न किया, जिसमें से लगभग 90% कचरे का विवरण उपलब्ध नहीं है।
  • भारत में ई-कचरे के 90% से अधिक हिस्से को अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा सम्भाला जाता है, जो ई-कचरे से संसाधनों को निकालने के लिये गैर-वैज्ञानिक और खतरनाक तरीके अपनाता है और बाद में इसे गैर-ज़िम्मेदार तरीके से डम्प कर दिया जाता है।

ई-कचरा उत्पन्न होने के प्रमुख कारण

  • इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों (EEE) के उत्पादन में वृद्धि को औद्योगीकरण और शहरीकरण के लिये ज़िम्मेदार ठहराया गया है, जिसके परिणामस्वरूप अन्य इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की माँग में वृद्धि हुई है।
  • ई-कचरे के उत्पन्न होने का प्रमुख कारण उच्च और गैर-ज़िम्मेदारी पूर्वक खपत, इन उत्पादों का छोटा जीवन काल और ई.ई.ई. उत्पादकों द्वारा एक निश्चित समय के बाद इन उपकरणों को अनिवार्य रूप से अप्रचलित कर दिया जाना आदि है।

ई-कचरे से समस्या और हानियाँ

  • विश्व स्तर पर उत्पादित ई-कचरे के 80% भाग के स्रोत, निपटान स्थल और इनको अंतिम रूप से फेंकने से पूर्व इसमें उपलब्ध संसाधनों के निष्कर्षण हेतु प्रयोग की जाने वाली विधियों का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है।
  • विश्व स्तर पर विकसित और बड़े देश के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर उच्च वर्ग अपने द्वारा उत्पादित ई-कचरे को अविकसित एवं छोटे देशों व निम्न वर्ग की ओर हस्तांतरित कर रहे हैं।
  • निष्कर्षण की अनुपयुक्त तकनीकों के कारण ई-कचरे से कोबाल्ट की कुल प्राप्ति दर केवल 30% के आस-पास है, जबकि लैपटॉप, स्मार्ट फोन और इलेक्ट्रिक कार बैटरी के लिये इस धातु की माँग काफी अधिक है।
  • ई-कचरे से पारिस्थितकी असंतुलन के साथ-साथ जल, वायु, भूमि व मृदा और रेडियोसक्रिय प्रदूषण में भी वृद्धि हो रही है।

ई-कचरे के उपयोग की सम्भावना

  • ई-कचरा सभी प्रकार के कचरों में सबसे मूल्यवान साबित हो सकता है। उल्लेखनीय है कि कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में सोना, चाँदी सहित कई मूल्यवान धातुएँ पाई जाती हैं, अत: ई-कचरे से सोना, चाँदी, कोबाल्ट और प्लैटिनम के साथ-साथ अन्य दुर्लभ धातुएँ भी प्राप्त की जा सकती हैं।
  • एक अध्ययन के अनुसार सामान मात्रा में चाँदी अयस्क की अपेक्षा ई-कचरे से अधिक मात्रा में चाँदी प्राप्त की जा सकती है। विदित है कि एक टन सोने के अयस्क की तुलना में एक टन स्मार्ट फोन में 100 गुना अधिक सोना होता है।

ई-कचरे का नियमन

  • वर्ष 2019 तक की स्थिति के अनुसार ई-कचरे के वैज्ञानिक और सु-प्रबंधन के लिये लगभग 78 देशों ने कोई न कोई नीति, विनियम या कानून बनाया था।
  • भारत ने भी अक्तूबर 2016 में एक नीति को अधिसूचित किया, जिसे ई-कचरा प्रबंधन नियम कहा जाता है। हालाँकि, इसका कार्यान्वयन अभी संतोषजनक अवस्था में नहीं है।

समाधान

  • इसका एक समाधान इलेक्ट्रॉनिक्स की एक वर्तुलाकार अर्थव्यवस्था बनाना हो सकता है और इसके लिये एक बहु-आयामी रणनीति की आवश्यकता है।
  • उत्पादों को इस तरह से डिज़ाइन किये जाने की आवश्यकता है कि उनका पुन: उपयोग किया जा सके और वे टिकाऊ हों तथा पुनर्चक्रण के लिये भी सुरक्षित हों।
  • उत्पादकों को पुराने उपकरणों को एकत्र करने के लिये ‘बाय-बैक’ या ‘रिटर्न ऑफर’ जैसी योजनाएँ लानी चाहिए और उपभोक्ताओं को वित्तीय रूप से प्रोत्साहित करने की भी आवश्यकता है।
  • किसी भी इलेक्ट्रॉनिक/इलेक्ट्रिक ई-कचरा उत्पादक को शहरों में उपयुक्त स्थानों पर संग्रह केंद्र स्थापित करने चाहिए, जहां ग्राहक अपने अनुपयुक्त उत्पादों को छोड़ सकें। और इस प्रकार एकत्र किये गए ई-कचरा/उत्पादों का पुनर्चक्रण (Recycling) सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इस दृष्टिकोण को ‘विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व’ प्रावधान के अंतर्गत 'शहरी खनन' प्रणाली के रूप में जाना जाता है।

निष्कर्ष

यह स्पष्ट है कि वैश्विक समुदाय ई-कचरे का प्रबंधन करने में बुरी तरह विफल रहे हैं। ई-कचरे के प्रबंधन हेतु बेहतर कार्यान्वयन के ऐसे तरीकों और समावेशी नीतियों की आवश्यकता है, जो अनौपचारिक क्षेत्र को ई-कचरे के प्रबंधन हेतु स्थान उपलब्ध कराने के साथ-साथ उसको मान्यता प्रदान करती हों। साथ ही, पर्यावरणीय दृष्टि से पुनर्चक्रण के लक्ष्यों को पूरा करने में भी मदद प्रदान करती हों।

प्री फैक्ट :

  • प्रत्येक वर्ष 14 अक्तूबर को अन्तर्राष्ट्रीय ई-कचरा दिवस मनाया जाता है। वैश्विक स्तर पर ई-कचरे के दोगुने होने की दर लगभग 16 वर्ष है।
  • यूरोप अपने द्वारा उत्पन्न कुल ई-कचरे का अधिकतम और अफ्रीका न्यूनतम पुनर्चक्रण करता है।
  • लैपटॉप, स्मार्ट फोन और इलेक्ट्रिक कार बैटरी के लिये कोबाल्ट धातु की काफी मांग है।
  • ई-कचरे से सोना, चाँदी, कोबाल्ट और प्लैटिनम के साथ-साथ दुर्लभ पृथ्वी धातुएँ प्राप्त की जा सकती हैं।
  • भारत ने अक्टूबर 2016 में ‘ई-कचरा प्रबंधन नियम’ को अधिसूचित किया है।

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