(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों व राजनीति का प्रभाव; आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौती उत्पन्न करने वाले शासन विरोधी तत्त्वों की भूमिका, संचार नेटवर्क के माध्यम से आंतरिक सुरक्षा को चुनौती, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सामाजिक नेटवर्किंग साइटों की भूमिका, सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ एवं उनका प्रबंधन) |
संदर्भ
राजनीतिक अशांति के समय गलत सूचना, सेंसरशिप एवं सामग्री मॉडरेशन प्रथाओं को लेकर सोशल मीडिया कंपनियों के संचालन के तरीके को लेकर चिंताएँ बढ़ रही हैं।
भारत में स्थिति
- भारत में विरोध प्रदर्शनों को संगठित करने और अफ़वाहें या अभद्र भाषा फैलाने के लिए सोशल मीडिया का व्यापक रूप से उपयोग देखा गया है।
- सरकार ने प्लेटफ़ॉर्म को जवाबदेह बनाने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 लागू किए हैं।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं विनियमन के बीच संतुलन पर संवाद जारी है।
वैश्विक परिदृश्य
- नेपाल में हुए हिंसक आंदोलन का तात्कालिक कारण नेपाल सरकार द्वारा 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स तक पहुँच पर प्रतिबंध लगाने के बाद शुरू हुए विरोध प्रदर्शन का परिणाम है।
- विशेष रूप से जिन कंपनियों की सेवाओं पर प्रतिबंध के कारण यह आंदोलन प्रारंभ हुआ, उन्होंने डिजिटल अधिकारों का सम्मान करने और संवाद करने के बारे में केवल औपचारिक बयान दिए।
- ईरान में 2022 में इंस्टाग्राम एवं व्हाट्सएप ने सामान्य अपीलें जारी कीं, जबकि उन पर निर्भर लाखों छोटे व्यवसाय ध्वस्त हो गए।
- म्यांमार में वर्ष 2021 के तख्तापलट के दौरान फेसबुक पर प्रतिबंध के कारण प्रदर्शनकारियों के लिए समाचारों और संगठित करने के साधनों तक पहुँच बाधित हो गई।
- वर्ष 2021 में नाइजीरिया में ट्विटर (अब X.com) उस समय लगभग चुप रहा जब सरकार ने महीनों तक इसके संचालन को निलंबित कर दिया, जिससे अर्थव्यवस्था को लगभग 26 मिलियन डॉलर प्रतिदिन का नुकसान हुआ और कई व्यवसायों को वैकल्पिक प्लेटफार्म की ओर रुख करना पड़ा।
- अमेरिकी कैपिटल दंगे (2021) और अन्य घटनाएँ संकट के दौरान सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म की भूमिका के बारे में समान चिंताओं को उजागर करती हैं।
- वर्ष 2018 में रूस में टेलीग्राम ने तकनीकी बचाव के माध्यम से अपने प्रतिबंध का विरोध किया किंतु उन उपयोगकर्ताओं के प्रति कोई राजनीतिक एकजुटता नहीं दिखाई, जिन्हें राज्य के आदेशों की अवहेलना करने के लिए गिरफ़्तारी का सामना करना पड़ा।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बहुराष्ट्रीय निगम हैं जिनके हित वाणिज्यिक हैं, न कि नागरिक। वे लाभदायक बाजारों में स्वतंत्र अभिव्यक्ति को सशक्त बनाने की छवि का व्यापार करते हैं।
- इस परिदृश्य ने वैश्विक स्तर पर बड़ी तकनीकी कंपनियों के स्वतंत्र विनियमन की माँग में वृद्धि की है।
अंतर्राष्ट्रीय विनियमन
- अंतर्राष्ट्रीय मानदंड डिजिटल स्पेस तक पहुँच को विशेषाधिकार के बजाय एक अधिकार के रूप में मान्यता देते हैं।
- वर्ष 2016 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने इंटरनेट शटडाउन को अंतर्राष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन घोषित किया था।
- नागरिक समाज समूहों ने कंटेंट मॉडरेशन में पारदर्शिता एवं जवाबदेही पर सांता क्लारा सिद्धांतों को आगे बढ़ाया है जो कंपनियों से सरकारी माँगों का खुलासा करने और अपनी प्रतिक्रियाओं को उचित ठहराने का आह्वान करते हैं।
- मेटा एवं गूगल जैसी बड़ी सोशल मीडिया कंपनियाँ प्राय: सैद्धांतिक रूप से इन ढाँचों पर हस्ताक्षर करती हैं, फिर भी उनके वास्तविक आचरण ने बयानबाजी एवं अनुपालन के बीच एक खाई का निर्माण किया है।
प्रमुख मुद्दे
- एल्गोरिदमिक पूर्वाग्रह एवं प्रवर्धन: प्लेटफ़ॉर्म प्राय: विभाजनकारी या सनसनीखेज सामग्री को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं, जिससे सामाजिक तनाव बढ़ता है।
- सामग्री मॉडरेशन में कमियाँ: पोस्ट को फ़्लैग करने, हटाने तथा प्रसारित होने से संबंधित प्रणाली में पारदर्शिता का अभाव देखा जाता है।
- विदेशी हस्तक्षेप: घरेलू राजनीति को प्रभावित करने के लिए बाहरी तत्वों द्वारा दुरुपयोग की संभावना रहती है।
- जवाबदेही की कमी: कंपनियाँ ‘प्लेटफ़ॉर्म तटस्थता’ का हवाला देकर ज़िम्मेदारी से बचती हैं।
- डिजिटल डिवाइड अंतराल में वृद्धि : शटडाउन की स्थिति में धनी एवं तकनीकी रूप से अधिक दक्ष उपयोगकर्ता प्राय: वी.पी.एन. के ज़रिए समाधान ढूंढ लेते हैं किंतु निर्धन नागरिक ऑफ़लाइन रह जाते हैं।
- ऐसे में मुख्यधारा के प्लेटफ़ॉर्म के बंद होने से डिजिटल अंतराल में अतिरिक्त वृद्धि होती है।
आगे की राह
- एल्गोरिदम और सामग्री मॉडरेशन में अधिक पारदर्शिता
- मज़बूत स्वतंत्र निगरानी तंत्र
- लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करते हुए वैश्विक नियामक ढाँचा की आवश्यकता