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प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में सुधार की आवश्यकता

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय)

संदर्भ 

भारत के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (Primary Health Centre: PHC) के चिकित्सक ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा की रीढ़ हैं। हालाँकि, वे कई चुनौतियों का सामना करते हैं जो गुणवत्तापूर्ण सेवाएँ प्रदान करने की उनकी क्षमता को प्रभावित करती हैं।

भारत में प्रथमिक स्वास्थ्य केंद्र

  • एक पी.एच.सी. सामान्यत: लगभग 30,000 लोगों की विविध आबादी की सेवा करता है। 
    • इसमें महिलाएँ, बच्चे, पुरानी बीमारियों से ग्रस्त बुजुर्ग एवं अन्य कमजोर समूह शामिल हैं। 
  • पहाड़ी एवं आदिवासी क्षेत्रों में यह संख्या लगभग 20,000 है जबकि शहरी क्षेत्रों में यह संख्या 50,000 लोगों तक है। 
  • भोरे समिति के अनुसार प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को निवारक सेवाओं एवं सामुदायिक भागीदारी पर आधारित होनी चाहिए।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा सतत विकास लक्ष्य 3.8 में निहित सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का प्रवेश द्वार है।
    • यह आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं, सुरक्षित दवाओं एवं वित्तीय सुरक्षा तक पहुँच का वादा करता है। 
  • मज़बूत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के बिना सतत विकास लक्ष्य (SDG)-3 केवल एक कोरी कल्पना ही साबित होगी।

पी.एच.सी. चिकित्सकों का महत्त्व 

  • भारत की त्रि-स्तरीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में पी.एच.सी. संपर्क का पहला बिंदु हैं। 
  • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज और SDG- 3 (अच्छा स्वास्थ्य एवं कल्याण) प्राप्त करने के लिए पी.एच.सी. चिकित्सकों की प्रभावशीलता महत्त्वपूर्ण है।
  • एक छोटी-सी टीम और सीमित संसाधनों के साथ पी.एच.सी. चिकित्सक पूरे समुदाय की देखभाल का बोझ उठाते हैं। 
  • पी.एच.सी. चिकित्सक योजनाकार, समन्वयक एवं नेतृत्वकर्ता के रूप में भी कार्य करते हैं।
  • भारत के दूरदराज के इलाकों में लाखों लोगों के लिए वे चिकित्सा का एकमात्र सुलभ चेहरा हैं।
  • वे सामुदायिक आवश्यकताओं एवं नीतिगत मंशा के बीच एक कड़ी के रूप में खड़े होते हैं और एक विशाल व नाज़ुक स्वास्थ्य सेवा नेटवर्क को एक साथ बनाए रखते हैं।
  • उनका कार्य प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के आधारभूत सिद्धांतों पर आधारित है:
    • समान पहुँच
    • सामुदायिक भागीदारी
    • अंतर-क्षेत्रीय समन्वय
    • प्रौद्योगिकी का व्यावहारिक उपयोग

पी.एच.सी. चिकित्सकों के प्रमुख कार्य 

  • टीकाकरण अभियानों का समन्वय एवं घर-घर जाकर सर्वेक्षण 
  • वेक्टर नियंत्रण का प्रबंधन 
  • राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के चिकित्सा अधिकारियों के साथ मिलकर स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम का संचालन
  • क्षेत्रीय प्रकोपों ​​का सामना 
  • स्वास्थ्य शिक्षा सत्र का आयोजन 
  • अंतर-क्षेत्रीय बैठकों में भाग लेना 
  • सामुदायिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए ग्राम सभाओं में कार्यक्रमों का आयोजन 
  • आंगनवाड़ियों एवं उप-केंद्रों का दौरा करना
  •  मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा), सहायक नर्स दाइयों (ANM) और ग्राम स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन
  • समीक्षा बैठकें और ऑडिट आयोजित करना

पी.एच.सी. चिकित्सकों की प्रमुख समस्याएँ

  • अत्यधिक कार्यभार: रिक्तियों एवं असमान वितरण के कारण प्राय: एक डॉक्टर को हज़ारों मरीज़ों की देखभाल करनी पड़ती है।
    • एक ही क्षेत्र पर केंद्रित विशेषज्ञों के विपरीत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) के चिकित्सा को पूरे चिकित्सा क्षेत्र में (नवजात शिशु देखभाल से लेकर वृद्धावस्था, संक्रामक रोगों से लेकर मानसिक स्वास्थ्य और आघात एवं पुरानी बीमारियों तक) अद्यतन रहना होता है और उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे बिना किसी मदद के हर विशेषज्ञता की आपात स्थितियों का उपचार करें।
    • आज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 100 से ज़्यादा भौतिक रजिस्टर होते हैं जिसमें बाह्य रोगी रिकॉर्ड, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, गैर-संचारी रोग, दवा सूची व स्वच्छता आदि शामिल होते हैं।
    • इसके साथ ही डिजिटल प्रणालियाँ एकीकृत स्वास्थ्य सूचना प्लेटफ़ॉर्म (IHIP), जनसंख्या स्वास्थ्य रजिस्ट्री (PHR), आयुष्मान भारत पोर्टल, एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (IDSP), स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (HMIS) एवं टीकाकरण के लिए UWIN भी जोड़ी गई हैं। 
    • इनका उद्देश्य दस्तावेज़ीकरण को सुव्यवस्थित करना था किंतु ये पी.एच.सी. चिकित्सकों के कार्यभार में वृद्धि करती हैं। 
  • बुनियादी ढाँचे की कमी : कई पी.एच.सी. में पर्याप्त उपकरण, दवाइयाँ एवं सहायक कर्मचारियों का अभाव है।
    • चिकित्सकों को गुणवत्तापूर्ण देखभाल प्रदान करने, राष्ट्रीय कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने और विस्तृत दस्तावेज़ीकरण बनाए रखने का काम सौंपा जाता है जबकि उनके पास स्टॉफ, पारिश्रमिक व मान्यता बहुत कम है।
  • खराब कार्य परिस्थितियाँ: लंबे समय तक काम करना, निजी क्षेत्र की तुलना में कम वेतन और दूरदराज के इलाकों में अपर्याप्त आवास की समस्या का सामना करना पड़ता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य तनाव: तनाव, थकान एवं संस्थागत समर्थन की कमी मनोबल को प्रभावित करती है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: ग्रामीण/दूरस्थ केंद्रों में डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा के मामले देखे गए हैं।

आगे की राह

  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बुनियादी ढाँचे, वेतनमान एवं कार्य स्थितियों में सुधार की आवश्यकता 
  • डॉक्टरों के लिए सुरक्षा व मानसिक स्वास्थ्य सहायता सुनिश्चित करने पर बल देना 
  • कार्यभार कम करने के लिए टेलीमेडिसिन और डिजिटल स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत करना 
  • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा को मज़बूत बनाने के लिए केवल नई इमारतों व नामों की ज़रूरत नहीं है। दस्तावेज़ीकरण सार्थक होना चाहिए। 
  • अनावश्यक रजिस्टरों को हटाया जाना 
  • संभव सीमा तक मैन्युअल प्रविष्टि की जगह स्वचालन को अपनाना 
  • गैर-नैदानिक ​​कार्यों को दूसरों को सौंपना 
  • ग्रामीण डॉक्टरों के लिए प्रशिक्षण एवं प्रतिधारण नीतियों में निवेश करने पर बल देने की आवश्यकता 
  • कार्यान्वयन योग्य लक्ष्य अपनाना
    • उदहारण के लिए अमेरिकी राष्ट्रीय चिकित्सा पुस्तकालय और कोलंबिया विश्वविद्यालय के नेतृत्व में 25 बाय 5 अभियान का लक्ष्य 2025 तक चिकित्सकों के दस्तावेज़ीकरण समय को 75% तक कम करना है। 

निष्कर्ष

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के चिकित्सकों की देखभाल यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि वे भारत की ग्रामीण आबादी की प्रभावी ढंग से देखभाल करने के साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की नींव को मज़बूत कर सकें।

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