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राडार: आधुनिक युद्ध की आँखें

(प्रारंभिक परीक्षा: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास)

संदर्भ

आधुनिक युद्ध में आकाशीय सुरक्षा (Air Defence) बेहद महत्वपूर्ण हो गई है। मई में पाकिस्तान के साथ हुए तीन दिन के संघर्ष और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सैकड़ों दुश्मन ड्रोन भारतीय हवाई क्षेत्र में घुस आए। इस अनुभव से सीख लेते हुए भारतीय सेना अपनी राडार प्रणाली को तेजी से अपग्रेड कर रही है ताकि छोटे और कम ऊँचाई पर उड़ने वाले ड्रोन भी समय पर पकड़े जा सकें।

क्या है राडार (RADAR) 

  • पूरा नाम : रेडियो डिटेक्शन एंड रेंजिंग (Radio Detection and Ranging)
  • यह एक इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है जो रेडियो तरंगों का उपयोग करके किसी भी वस्तु की दिशा, दूरी एवं गति का पता लगाती है।
  • इसमें दो मुख्य हिस्से होते हैं:
    • ट्रांसमीटर : जो रेडियो सिग्नल भेजता है।
    • रिसीवर : जो टकराकर लौटे हुए सिग्नल को पकड़ता है।
  • इन सिग्नलों के विश्लेषण से वस्तु की स्थिति एवं गति का पता लगाया जाता है। राडार का विकास 1930-40 के दशक में हुआ था और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यह सैन्य उपयोग में अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया।

विज्ञान एवं कार्यप्रणाली

  • राडार की कार्यप्रणाली सरल है। इसमें ट्रांसमीटर रेडियो तरंग भेजता है। यह तरंग किसी वस्तु से टकराकर लौटती है।
  • लौटे सिग्नल से कंप्यूटर वस्तु की दिशा, दूरी एवं गति मापता है। लगातार माप करने से वस्तु की गति एवं प्रक्षेप पथ/मार्ग (Trajectory) पता चलता है।

राडार के प्रकार

  • सर्विलांस राडार (Surveillance Radars): लगातार आकाश पर निगरानी रखते हैं तथा किसी भी वस्तु के दिखने पर अलर्ट देते हैं।
  • फायर कंट्रोल राडार (Fire Control Radars): सीधे हथियार प्रणाली (गन या मिसाइल) से जुड़े रहते हैं और लक्ष्य को लॉक कर हमला करने में मदद करते हैं।

भारत में वर्तमान राडार सिस्टम

  • भारतीय वायुसेना के पास हाई एवं मीडियम पावर राडार (HPR, MPR) हैं, जो सैकड़ों किमी. दूर तक के खतरों को पकड़ सकते हैं।
  • सेना के पास मुख्यतः लो लेवल राडार हैं जो नीचे उड़ने वाले ड्रोन एवं हेलिकॉप्टर पकड़ने के काम आते हैं।
  • फायर कंट्रोल के लिए सेना फ्लायकैचर राडार और AD टैक्टिकल कंट्रोल राडार का उपयोग करती है।

अपग्रेड करने की आवश्यकता

  • पुराने राडार सीमित रेंज के थे और नई तकनीक के छोटे ड्रोन पकड़ने में सक्षम नहीं थे।
  • वैश्विक युद्धों में (जैसे- इज़राइल व हमास संघर्ष) छोटे ड्रोन एवं स्वार्म अटैक लगातार इस्तेमाल हो रहे हैं।
  • इसलिए सेना ऐसे राडार चाहती है जो निम्न आर.सी.एस. (Radar Cross Section) वाले ड्रोन को भी पहचान सके और दुश्मन-मित्र की पहचान कर सके।

नई राडार तकनीक

  • LLLWR (Enhanced):
    • 10 किमी. तक के छोटे ड्रोन पकड़ सकता है।
    • डाटा सीधे हथियार प्रणाली को भेज सकता है।
  • ADFCR-DD:
    • यह अत्याधुनिक फायर कंट्रोल राडार है।
    • ड्रोन की पहचान, वर्गीकरण एवं निशाना साधने में मदद करता है।

भारत की एयर डिफेंस संरचना

  • भारत के पास रुस का S-400 और स्वदेशी आकाश मिसाइल सिस्टम हैं।
  • आकाशतीर सिस्टम रियल-टाइम एयर पिक्चर बनाता है और सेना के सभी राडार, गन एवं सेंसर को एक साथ जोड़ता है।
  • IAF के पास Integrated Air Command and Control System (IACCS) है जो पूरे देश में एयर डिफेंस ऑपरेशन को कोऑर्डिनेट करता है।
  • मिशन सुदर्शन चक्र के तहत DRDO एकीकृत एयर डिफेंस वेपन सिस्टम (IADWS) का परीक्षण कर रहा है।

ऑपरेशन सिंदूर में उपयोग

  • ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान ने सैकड़ों छोटे ड्रोन का उपयोग किया ताकि निगरानी और हमला करने वाले ड्रोन को छिपाया जा सके।
  • पुराने राडार इन छोटे लो-आरसीएस (Low Radar Cross Section) ड्रोन को समय पर नहीं पकड़ सके।
  • इस घटना के बाद सेना ने नए लो लेवल लाइट वेट राडार (LLLWR-Enhanced) और एयर डिफेंस फायर कंट्रोल राडार-ड्रोन डिटेक्टर्स (ADFCR-DD) खरीदने का फैसला किया।
  • ये नई प्रणालियाँ छोटे से छोटे ड्रोन, यहाँ तक कि ड्रोन स्वार्म (Drone Swarm) को भी पहचानने में सक्षम हैं।

निष्कर्ष

राडार आधुनिक युद्ध की आँखें हैं। ये न केवल दुश्मन का पता लगाते हैं बल्कि हथियार प्रणाली को सटीक लक्ष्य देने में मदद करते हैं। ऑपरेशन सिंदूर के अनुभव ने भारत को सिखाया कि राडार अपग्रेड करना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अनिवार्य है। नई राडार तकनीक भारतीय सेना और वायुसेना को अधिक मजबूत बनाएगी तथा भविष्य में दुश्मन के किसी भी हवाई खतरे को समय पर रोकने में मदद करेगी।

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