(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्न पत्र-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन।) |
संदर्भ
भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय ने हाल ही में एक नया नीतिगत ढांचा तैयार किया है, जिसमें टाइगर रिजर्व से वन-आश्रित समुदायों के पुनर्वास की प्रक्रिया और उससे जुड़ी विधियों को स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है।
नए पुनर्वास नीतिगत ढांचे के बारे में
- जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा तैयार यह नीति दस्तावेज़ “Reconciling Conservation and Community Rights: A Policy Framework for Relocation and Co-existence in India’s Tiger Reserves” शीर्षक से अक्टूबर 2025 में जारी किया गया।
- इस नीति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पुनर्वास केवल अंतिम विकल्प (Last Resort) के रूप में अपनाया जाए और उससे पहले इन समुदायों के अधिकारों का पूर्ण रूप से निपटारा वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के तहत किया जाए।
मुख्य प्रावधान
- राष्ट्रीय ढांचा : पर्यावरण मंत्रालय और जनजातीय कार्य मंत्रालय मिलकर एक “National Framework for Community-Centred Conservation and Relocation” बनाएंगे, जिसके तहत पुनर्वास की प्रक्रियाओं, समयसीमाओं और जवाबदेही के मानक तय किए जाएंगे।
- डाटाबेस की स्थापना: “National Database on Conservation-Community Interface (NDCCI)” बनाया जाएगा, जो देशभर में हो रहे पुनर्वास, मुआवजा वितरण और पुनर्वास पश्चात स्थिति का रिकॉर्ड रखेगा।
- स्वतंत्र वार्षिक ऑडिट : पुनर्वास परियोजनाओं की वार्षिक समीक्षा स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा की जाएगी, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि FRA, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA), 1972 और मानवाधिकार मानकों का पालन हुआ है।
- सहमति प्रक्रिया : किसी भी क्षेत्र को टाइगर रिजर्व घोषित करने से पहले ग्राम सभा और प्रत्येक परिवार की लिखित, सत्यापित सहमति आवश्यक होगी।
- वन में निवास का विकल्प: जो समुदाय अपने पारंपरिक आवास में रहना चाहते हैं, उन्हें FRA के तहत रहने की अनुमति दी जाएगी।
- मौलिक सिद्धांत: मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि “राज्य का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह इन अधिकारों की रक्षा करे और इन्हें केवल आवश्यक पारिस्थितिक कारणों पर ही सीमित किया जा सकता है।”
नीति की आवश्यकता क्यों
- जून 2024 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने राज्यों को टाइगर रिजर्व से पुनर्वास को प्राथमिकता देने का निर्देश दिया था, जिससे कई ग्राम सभाओं में विरोध हुआ।
- विभिन्न राज्यों और ग्राम सभाओं ने केंद्र सरकार को यह शिकायत भेजी कि FRA का पालन नहीं किया जा रहा है और समुदायों पर जबरन पुनर्वास का दबाव बनाया जा रहा है।
- इस कारण जनजातीय कार्य मंत्रालय ने नया नीति ढांचा तैयार कर पर्यावरण मंत्रालय को सहयोग के लिए पत्र भेजा।
भारत में पुनर्वास की पृष्ठभूमि
- भारत में टाइगर रिजर्व से गांवों का पुनर्वास वर्ष 1973 में ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के आरंभ से ही किया जा रहा है।
- यह प्रक्रिया WPA, 1972 और FRA, 2006 दोनों के तहत संचालित होती है।
- WPA के तहत वन विभाग को बाघ संरक्षण के लिए क्षेत्र सुरक्षित करने का अधिकार है, वहीं FRA इन क्षेत्रों में निवासरत जनजातीय समुदायों के अधिकारों की रक्षा करता है।
- पुनर्वास के लिए वर्तमान में ₹15 लाख प्रति परिवार का मुआवजा पैकेज तय है।
- जो परिवार रहना चाहते हैं, उन्हें आवश्यक आधारभूत सुविधाएँ (पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क आदि) देना प्रशासन की जिम्मेदारी है।
संघर्ष और चुनौतियाँ
- कई जगहों पर समुदायों ने आरोप लगाया कि उन्हें “स्वैच्छिक पुनर्वास” के नाम पर जबरन हटाया गया।
- उदाहरण: कर्नाटक के नागरहोल टाइगर रिजर्व में जेनु कुरुबा जनजाति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की है कि उनके पूर्वजों की भूमि के अधिकार FRA के तहत मान्यता नहीं पा रहे हैं।
- संसद में अगस्त 2025 तक दिए गए आंकड़ों के अनुसार :
- जनवरी 2022 से अब तक 7 राज्यों (मध्य प्रदेश, कर्नाटक, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, राजस्थान) में
- 56 गांवों की 5,166 परिवारों का पुनर्वास किया गया।
- अभी भी 591 गांव और 64,801 परिवार टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्रों में निवासरत हैं।
नए नीतिगत ढाँचे का महत्व
- मौजूदा कानून पहले से ही “स्वैच्छिक” पुनर्वास की शर्त रखते हैं, लेकिन कई बार उनके क्रियान्वयन में गंभीर खामियाँ रही हैं।
- नया ढांचा मानवाधिकारों, पारिस्थितिक संतुलन और जनजातीय न्याय तीनों के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास है।
- यह नीति मंत्रालयों के बीच सहयोग और पारदर्शिता को बढ़ावा देती है तथा समुदाय-केंद्रित संरक्षण (Community-Centred Conservation) की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
आगे की राह
- जनजातीय कार्य मंत्रालय ने राज्यों के जनजातीय कल्याण और वन विभागों को इस नीति को जिला स्तर तक प्रसारित करने का निर्देश दिया है।
- इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी पुनर्वास प्रक्रिया केवल वैज्ञानिक, स्वैच्छिक, और अधिकार-सम्मत तरीके से ही हो।
निष्कर्ष
वनवासियों का पुनर्वास केवल संरक्षण का मुद्दा नहीं, बल्कि संवैधानिक और मानवाधिकार आधारित प्रश्न है। नया नीति ढांचा इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है, जो न केवल बाघ संरक्षण को मजबूत करेगा बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि वनवासी समुदायों के अधिकार, सम्मान और गरिमा से समझौता न हो।