सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यपालों द्वारा राज्य के धन विधेयकों को रोके रखने की प्रथा पर चिंता जताई है। हालाँकि, महाराष्ट्र सरकार ने तर्क दिया है कि हर विधेयक के लिए राज्यपाल की सहमति अनिवार्य नहीं है।
विधेयकों पर राज्यपाल की शक्तियाँ
- अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल किसी विधेयक को :
- अनुमति दे सकते हैं
- रोक सकते हैं
- लौटा सकते हैं (धन विधेयकों को छोड़कर)
- राष्ट्रपति के लिए आरक्षित कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 201 : यदि विधेयक राष्ट्रपति के लिए आरक्षित है तो राष्ट्रपति का निर्णय अंतिम होता है।
- धन विधेयक : संवैधानिक रूप से राज्यपाल धन विधेयक पर अनुमति नहीं रोक सकते हैं।
महाराष्ट्र सरकार का तर्क
- सभी विधेयकों के लिए अनुमति संवैधानिक औपचारिकता नहीं है।
- कानून बनाने में विधायिका की सर्वोच्चता का सम्मान किया जाना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय की टिपण्णी
- राज्यपालों द्वारा विधेयकों की अनुमति में देरी/रोकने से राज्यों में संवैधानिक गतिरोध उत्पन्न हो रहा है।
- यदि राज्यपाल निर्वाचित विधायिका को रोकने के लिए विवेकाधिकार का प्रयोग करते हैं तो लोकतांत्रिक सिद्धांत खतरे में पड़ जाएगा।
- दुरुपयोग को रोकने के लिए राज्यपाल की भूमिका की स्पष्ट व्याख्या आवश्यक है।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी का महत्त्व
- केंद्र-राज्य संबंधों और राज्यपाल की भूमिका पर चल रही बहस का एक हिस्सा है।
- तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना एवं पंजाब में भी इसी तरह के विवाद हैं।