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सैन्य व्यय में वृद्धि: वैश्विक प्रभाव एवं भारत के लिए चुनौतियाँ

(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 व 3: भारत के हितों पर विकसित व विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; आंतरिक सुरक्षा)

संदर्भ

हाल के वर्षों में वैश्विक सैन्य व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है जो रूस-यूक्रेन युद्ध, इज़राइल-गाजा संघर्ष, भारत-पाकिस्तान तथा इज़राइल-ईरान युद्धों जैसे प्रमुख संघर्षों से प्रेरित है।

सैन्य व्यय में वृद्धि : SIPRI रिपोर्ट

  • वैश्विक सैन्य व्यय (2024) : $2,718 बिलियन, जो वर्ष 1988 के बाद सबसे तेज वार्षिक वृद्धि (9.4%) दर्शाता है।
  • शीर्ष सैन्य व्यय वाले देश
  1. अमेरिका : $997 बिलियन (वैश्विक व्यय का 37%)
  2. चीन : $314 बिलियन, 7% की वृद्धि
  3. रूस : $149 बिलियन, वर्ष 2023 से 38% की वृद्धि
  4. जर्मनी : $88.5 बिलियन, 28% की वृद्धि
  5. भारत : $86.1 बिलियन, 1.6% की वृद्धि
  • नाटो (NATO) का योगदान : 32 नाटो देशों ने कुल $1,506 बिलियन व्यय किया, जो वैश्विक सैन्य व्यय का 55% है।
    • नाटो ने जून 2025 शिखर सम्मेलन में अपने सदस्य देशों के लिए सैन्य व्यय को GDP का 5% करने का लक्ष्य रखा है जो पहले के 2% के लक्ष्य से अधिक है।
  • जी.डी.पी. के प्रतिशत के रूप में : सऊदी अरब: 7.3%, पोलैंड: 4.2%, अमेरिका: 3.4%, भारत: 2.3%

सैन्य व्यय वृद्धि के निहितार्थ

  • युद्ध एवं अस्थिरता : रूस-यूक्रेन, इज़राइल-गाजा, भारत-पाकिस्तान और इज़राइल-ईरान जैसे संघर्षों से सैन्य व्यय में वृद्धि हुई है। वर्ष 2023 में 108 देशों में सैन्यकरण में वृद्धि हुई और विश्व में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सर्वाधिक संघर्ष देखे गए।
  • मुद्रास्फीति : रक्षा क्षेत्र में मुद्रास्फीति सामान्य मुद्रास्फीति से अधिक है, जिससे सांकेतिक वृद्धि के बावजूद वास्तविक सैन्य क्षमता में सीमित लाभ होता है।
  • गरीब देशों पर प्रभाव : मध्यम एवं निम्न-आय वाले देशों में सैन्य व्यय स्वास्थ्य व शिक्षा जैसे सामाजिक क्षेत्रों को प्रभावित करता है। 
    • मासाको इकेगामी एवं ज़िजियान वांग के अध्ययन के अनुसार, सैन्य व्यय में वृद्धि से स्वास्थ्य व्यय पर ‘क्राउडिंग-आउट’ प्रभाव पड़ता है जिसका बोझ गरीब देशों पर अधिक पड़ता है।
    • उदाहरण: लेबनान (29% जी.डी.पी.) और यूक्रेन (34% जी.डी.पी.) जैसे देशों में उच्च सैन्य व्यय से सामाजिक कल्याण को नुकसान पहुंचा है।

नाटो सैन्य बजट से संयुक्त राष्ट्र बजट की तुलना

  • नाटो बजट (2024): कुल सैन्य व्यय: $1,506 बिलियन (वैश्विक व्यय का 55%)
  • संयुक्त राष्ट्र बजट: कुल बजट: $44 बिलियन किंतु वर्ष 2025 में केवल $6 बिलियन प्राप्त हुआ, जिसके कारण बजट को $29 बिलियन तक कम करने की योजना।
  • तुलना:
    • नाटो का सैन्य व्यय संयुक्त राष्ट्र के कुल बजट का 34 गुना से अधिक है।
    • अमेरिका द्वारा USAID को बंद करने से संयुक्त राष्ट्र का वित्तीय संकट बढ़ गया है और वर्ष 2030 तक 14 मिलियन अतिरिक्त मौतों का खतरा पैदा हो गया है।
  • प्रभाव: सैन्य व्यय को प्राथमिकता देने से संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (SDGs) प्रभावित हो रहे हैं, जैसे- गरीबी उन्मूलन और स्वास्थ्य सेवाएँ।

सैन्य व्यय में वृद्धि का जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव

  • उत्सर्जन में वृद्धि : कॉन्फ्लिक्ट एंड एनवायरनमेंट ऑब्जर्वेटरी के अनुसार, यदि नाटो का सैन्य व्यय 3.5% जी.डी.पी. तक पहुंचता है तो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में प्रतिवर्ष 200 मिलियन टन की वृद्धि होगी।
  • जलवायु संकट : वर्ष 2024 सबसे गर्म वर्ष रहा है और सैन्य व्यय से जलवायु शमन के लिए संसाधन कम हो रहे हैं।
  • उदाहरण : हथियारों में उपयोग होने वाले स्टील एवं एल्यूमीनियम का उत्पादन कार्बन-गहन है और सैन्य बल 5.5% वैश्विक उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं।
  • अवसर लागत: सैन्य व्यय में प्रत्येक डॉलर जलवायु कार्रवाई के लिए संसाधनों को कम करता है, जिससे जलवायु प्रेरित संघर्ष (जैसे- सूडान में संसाधन विवाद) बढ़ सकते हैं।

सैन्य व्यय में वृद्धि का भारत पर प्रभाव

  • वर्तमान व्यय: भारत वर्ष 2024 में $86.1 बिलियन के साथ पाँचवां सबसे बड़ा सैन्य व्यय करने वाला देश है (जी.डी.पी. का 2.3%)।
  • आपातकालीन व्यय: ऑपरेशन सिंदूर के बाद, हथियारों की पूर्ति के लिए 50,000 करोड़ अतिरिक्त स्वीकृत किए गए।
  • सामाजिक क्षेत्रों पर प्रभाव:
    • स्वास्थ्य व्यय: भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय जी.डी.पी. का 1.84% है, जो राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के 2.5% लक्ष्य से कम है।
    • उदाहरण: वर्ष 2023-24 में आयुष्मान भारत के लिए 7,200 करोड़ का आवंटन, जबकि सैन्य बजट 6.81 लाख करोड़ था।
  • आर्थिक प्रभाव: सैन्य व्यय में वृद्धि से भारत के रक्षा उद्योग को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है क्योंकि नाटो देश भारत के सस्ते व विश्वसनीय हथियारों की ओर आकर्षित हो सकते हैं।
  • जोखिम: बढ़ते सैन्यकरण से सामाजिक कल्याण एवं बुनियादी ढांचे के लिए संसाधन में कमी आ सकती हैं, जिससे मध्यम व निम्न-आय वर्ग प्रभावित होंगे।

चुनौतियाँ

  • सामाजिक कल्याण पर प्रभाव: सैन्य व्यय में वृद्धि से स्वास्थ्य, शिक्षा एवं गरीबी उन्मूलन जैसे क्षेत्रों में निवेश कम हो सकता है।
  • जलवायु लक्ष्यों पर खतरा : सैन्य व्यय से उत्सर्जन में वृद्धि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को कठिन बनाती है।
  • आर्थिक स्थिरता : कई नाटो देशों में उच्च सार्वजनिक ऋण सैन्य व्यय वृद्धि को वित्तीय रूप से अस्थिर बना सकता है।
  • अस्त्र दौड़ का जोखिम : 5% जी.डी.पी. लक्ष्य से रूस एवं अन्य देशों के साथ वैश्विक हथियार दौड़ बढ़ने से युद्ध का खतरा बढ़ सकता है।
  • पारदर्शिता एवं जवाबदेही : नाटो के सैन्य बजट में तेज वृद्धि से खरीद में अक्षमता, अधिक कीमत एवं निगरानी की कमी हो सकती है।

आगे की राह

  • संतुलित बजट प्राथमिकताएँ : भारत को सैन्य एवं सामाजिक व्यय के बीच संतुलन बनाना चाहिए, जैसे- स्वास्थ्य व शिक्षा में निवेश बढ़ाना।
  • कूटनीति पर जोर : युद्धों को रोकने के लिए कूटनीतिक समाधानों को प्राथमिकता देनी चाहिए। नाटो महासचिव मार्क रुट ने कहा है कि युद्ध रोकने के लिए अधिक व्यय करना होगा।
  • जलवायु-केंद्रित नीतियाँ: सैन्य गतिविधियों में हरित प्रौद्योगिकियों को अपनाना, जैसे- निम्न कार्बन-गहन हथियार का उत्पादन।
  • पारदर्शी बजट प्रक्रिया : नाटो एवं भारत में सैन्य व्यय की निगरानी के लिए मजबूत तंत्र विकसित करना, ताकि दुरुपयोग व अक्षमता में कमी आएँ।
  • संयुक्त राष्ट्र फंडिंग : संयुक्त राष्ट्र के बजट को बढ़ाने के लिए वैश्विक सहयोग, ताकि सतत विकास लक्ष्य (SDGs) प्राप्त किए जा सकें।
  • रक्षा निर्यात : भारत को अपने रक्षा उद्योग का लाभ उठाकर सस्ते एवं विश्वसनीय हथियारों का निर्यात करना चाहिए, जिससे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिले।

निष्कर्ष

सैन्य एवं सामाजिक निवेश के बीच संतुलन, कूटनीति व हरित प्रौद्योगिकियों को अपनाकर भारत और वैश्विक समुदाय शांति, स्थिरता तथा सतत विकास को बढ़ावा दे सकते हैं। यह सुनिश्चित करना होगा कि सैन्य व्यय शांति एवं मानव कल्याण के लिए हो, न कि युद्ध व अस्थिरता को बढ़ावा देने के लिए।

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