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एसजे-100

‘हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL)’ और रूस की सार्वजनिक संयुक्त स्टॉक कंपनी ‘यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉर्पोरेशन (UAC)’ ने नागरिक यात्री विमान एसजे-100 (Sukhoi Superjet 100: SJ-100) के उत्पादन के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।

एसजे-100 के बारे में 

  • एसजे-100 एक दोहरे इंजन वाला व नैरो बॉडी वाला विमान है और अब तक 200 से अधिक विमानों का उत्पादन किया जा चुका है। इनका संचालन 16 से ज़्यादा वाणिज्यिक एयरलाइन ऑपरेटरों द्वारा किया जा रहा है जिनमें से नौ रूस से हैं।
  • एसजे-100 रूसी मूल का एक नई पीढ़ी का छोटी दूरी का जेट विमान है। पहले इसे सुखोई सुपरजेट 100 कहा जाता था और इसे मूल रूप से अब विलय हो चुकी रूसी विमान कंपनी सुखोई सिविल एयरक्राफ्ट द्वारा डिज़ाइन किया गया था।
  • एसजे-100 में 103 सीटें हैं और इसकी उड़ान सीमा 3,530 किलोमीटर है। यह -55 डिग्री सेल्सियस से लेकर +45 डिग्री सेल्सियस तक के चरम मौसम की स्थिति में कार्यक्षम है जिससे यह भारतीय मौसम की स्थिति के लिए एकदम उपयुक्त है।
  • विमान के केबिन को एयरलाइन की आवश्यकताओं के अनुरूप आसानी से पुनः डिजाइन किया जा सकता है।

समझौते के प्रमुख बिंदु

  • इस व्यवस्था के तहत एच.ए.एल. के पास घरेलू ग्राहकों के लिए वाणिज्यिक उपयोग हेतु एसजे-100 विमान बनाने का अधिकार होगा।
  • समझौता ज्ञापन पर 27 अक्तूबर, 2025 को मास्को एच.ए.एल. के प्रभात रंजन और यू.ए.सी. के ओलेग बोगोमोलोव ने हस्ताक्षर किए।
  • यह विमान भारत में पूरी तरह से निर्मित होगा। एच.ए.एल. एवं यू.ए.सी. के बीच यह सहयोग दोनों संगठनों के बीच आपसी विश्वास का परिणाम है। 

समझौते के लाभ

  • एच.ए.एल. के अनुसार एसजे-100 भारत में उड़ान योजना के तहत छोटी दूरी की कनेक्टिविटी के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव साबित होगा। 
  • यह पहला ऐसा उदाहरण भी होगा जिसमें भारत में एक पूर्ण यात्री विमान का उत्पादन किया जाएगा। इस तरह की पिछली परियोजना एच.ए.एल. द्वारा एवरो एचएस-748 (AVRO HS-748) का उत्पादन थी, जो 1961 में शुरू हुई और 1988 में समाप्त हुई थी।
  • ऐसा अनुमान है कि अगले 10 वर्षों में भारतीय विमानन क्षेत्र को क्षेत्रीय संपर्क के लिए इस श्रेणी के 200 से अधिक जेट विमानों और हिंद महासागर क्षेत्र में आस-पास के अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थलों की सेवा के लिए अतिरिक्त 350 विमानों की आवश्यकता होगी।
  • यह नागरिक उड्डयन क्षेत्र में 'आत्मनिर्भर भारत' के सपने को साकार करने की दिशा में एक कदम है। विनिर्माण से निजी क्षेत्र भी मजबूत होगा और विमानन उद्योग में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होंगे।
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