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विशेष गहन पुनरीक्षण

(प्रारंभिक परीक्षा: भारतीय राज्यतंत्र और शासन- संविधान, राजनीतिक प्रणाली)
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना, विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र व संस्थान)

संदर्भ 

  • भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने मतदाता सूचियों की शुद्धता एवं सटीकता सुनिश्चित करने के लिए 12 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में 51 करोड़ मतदाताओं को शामिल करते हुए मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) शुरू किया है। 
  • यह 2002-2005 के बाद से पहला राष्ट्रव्यापी एस.आई.आर. है जिसका उद्देश्य डुप्लिकेट, माइग्रेटेड या अयोग्य प्रविष्टियों (मतदाताओं) को समाप्त करना और मतदाता पात्रता को सत्यापित करना है।

पृष्ठभूमि और महत्व

एस.आई.आर. का उद्भव 

  • ई.सी.आई. के आदेश (जून 2025) में सभी पंजीकृत मतदाताओं के लिए नये गणना प्रपत्र (Enumeration Forms) भरना अनिवार्य कर दिया गया है जबकि अंतिम गहन पुनरीक्षण (2002-2005) के बाद जोड़े गए मतदाताओं को पात्रता और नागरिकता संबंधी दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे।
  • इसका पहला चरण बिहार में शुरू हुआ, जहाँ विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इसने भविष्य में राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन के लिए एक पायलट मॉडल के रूप में कार्य किया।

संवैधानिक और कानूनी आधार

  • ई.सी.आई. ने पात्रता की पुष्टि (नागरिकता रद्द करने के लिए नहीं) को उचित ठहराने के लिए संविधान के अनुच्छेद 326 का हवाला दिया है।
  • यह प्रक्रिया जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 द्वारा शासित है। यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करता है जो संविधान की मूलभूत विशेषताओं में से एक है।

एस.आई.आर. की आवश्यकता

  • राजनीतिक दलों ने मतदाता सूची में ‘अशुद्धता’ के बारे में बार-बार शिकायत की है- 
    • प्रवासन और एकाधिक पंजीकरण
    • मृत मतदाताओं को न हटाया जाना
    • गैर-नागरिकों को गलत तरीके से शामिल करना
  • वर्ष 1951 से अब तक एस.आई.आर. 8 बार आयोजित किया जा चुका है और अंतिम गहन पुनरीक्षण 2002-2005 के बीच किया गया था, जिसके बाद केवल संक्षिप्त पुनरीक्षण किए गए।

वार्तमान में एस.आई.आर. का कवरेज एवं कार्यान्वयन

  • शामिल राज्य और केंद्र शासित प्रदेश : एस.आई.आर. अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, केरल, लक्षद्वीप, मध्य प्रदेश, पुडुचेरी, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में आयोजित किया जाएगा।
  • प्रमुख तिथियां :
    • गणना अवधि : 4 नवंबर 2025 से शुरूआत
    • ड्राफ्ट रोल प्रकाशन : 9 दिसंबर, 2025
    • अंतिम रोल प्रकाशन : 7 फरवरी, 2026
  • बहिष्कृत राज्य : असम को चल रही एन.आर.सी. प्रक्रिया एवं नागरिकता अधिनियम के अलग प्रावधानों के कारण बाहर रखा गया है।

परिचालन विवरण

गणना प्रक्रिया

  • 5.33 लाख बूथ लेवल अधिकारी (BLOs) घर-घर जाकर सत्यापन करेंगे।
  • ड्राफ्ट रोल पर बने रहने के लिए सभी मतदाताओं को 4 दिसंबर तक गणना प्रपत्र जमा करना होगा।
  • वर्ष 2002-2005 के एस.आई.आर. रोल में जिनका नाम नहीं है, उनके लिए पात्रता प्रमाण आवश्यक है।

स्वीकृत दस्तावेज़

  • 13 प्रकार के दस्तावेज स्वीकृत हैं जिनमें आधार और बिहार के एस.आई.आर. रोल के अंश शामिल हैं।
  • आधार का उपयोग केवल पहचान सत्यापन के लिए किया जाएगा, न की नागरिकता प्रमाण के लिए।
  • 1 जुलाई, 1987 के बाद जन्मे मतदाताओं को माता-पिता की पात्रता का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा।

विशेष मामले और प्रशासनिक समन्वय

बिहार का अनुभव

  • बिहार का एस.आई.आर. 30 सितंबर, 2025 को समाप्त हो गया, जिसमें मतदाताओं की संख्या 6% घटकर 7.42 करोड़ रह गई।
  • निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी (ERO) के निर्णयों के विरुद्ध कोई अपील दायर नहीं की गई।
  • यह मॉडल एस.आई.आर. के दूसरे चरण का मार्गदर्शन करेगा।

राज्य-विशिष्ट विचार

  • दिल्ली एवं चंडीगढ़ जैसे शहरी क्षेत्रों में प्रवास के कारण पुरानी आबादी से जुड़ाव कम है।
  • मौसम की स्थिति और स्थानीय निकाय चुनावों ने भी राज्य के चयन व समयसीमा को प्रभावित किया है।

चुनौतियाँ और संबंधित विवाद

  • कानूनी चुनौती: सर्वोच्च न्यायालय उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है जिनमें सवाल उठाए गए हैं-
    • पंजीकृत मतदाताओं की नागरिकता सत्यापित करने का ई.सी.आई. का अधिकार
    • बिहार के एस.आई.आर. में अपनाई गई प्रक्रिया
  • राजनीतिक विरोध:
    • पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने इसे ‘पिछले दरवाजे से एन.आर.सी.’ करार दिया है।
    • हालाँकि, ई.सी.आई. का कहना है कि संवैधानिक निकाय अपनी-अपनी भूमिकाएँ स्वतंत्र रूप से निभाएंगे।
  • प्रशासनिक : कठोर समयसीमा और दस्तावेज़ सत्यापन से बी.एल.ओ. और ई.आर.ओ. पर बोझ पड़ सकता है।
  • सामाजिक : यदि नागरिकों के पास दस्तावेजी प्रमाण न हो तो मताधिकार से वंचित होने का जोखिम है।

आगे की राह 

  • पारदर्शिता और प्रौद्योगिकी : नागरिकों को पुरानी मतदाता सूची प्रविष्टियों का पता लगाने में सहायता के लिए मतदाता पोर्टल का उपयोग करना
  • चुनावी समग्रता : शुद्ध मतदाता सूचियों से फर्जी मतदान में कमी आ सकती है तथा जनता का विश्वास बढ़ सकता है।
  • जागरूकता अभियान : जन भागीदारी और समय पर दस्तावेजीकरण सुनिश्चित करना
  • डाटा सिंक्रनाइज़ेशन : दोहराव को रोकने के लिए डिजिटल डाटाबेस का एकीकरण
  • आवधिक एस.आई.आर. : विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए नियमित गहन संशोधनों को संस्थागत बनाना
  • हितधारक सहभागिता : कार्यान्वयन से पहले राजनीतिक दलों, नागरिक समाज और स्थानीय प्रशासन के साथ संस्थागत परामर्श करना 
    • कानूनी स्पष्टता:नुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत ई.सी.आई. की शक्तियों को परिभाषित करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय से मार्गदर्शन प्राप्त करना।
    • दस्तावेज़ तक पहुंच की सुविधा: पात्रता प्रमाण प्रस्तुत करने की प्रक्रिया को सरल और डिजिटल बनाना, विशेष रूप से ग्रामीण व प्रवासी-भारी क्षेत्रों में।
  • चरणबद्ध कार्यान्वयन : एक बार में पूरे देश में इसे लागू करने के बजाय राज्य-दर-राज्य धीरे-धीरे इसे लागू करने के लिए बिहार से प्राप्त सीख को अपनाना

निष्कर्ष

  • मतदाता सूचियों की एस.आई.आर., चुनावी प्रक्रिया में जनता का विश्वास बहाल करने के लिए एक प्रमुख प्रशासनिक सुधार है ।
  • पात्रता की पुष्टि और मतदाता सूचियों को अद्यतन करके चुनाव आयोग का उद्देश्य लोकतांत्रिक वैधता को मजबूत करना है। 
  • हालाँकि, राजनीतिक चिंताएँ और कानूनी जांच मतदाता शुद्धता सुनिश्चित करने और मतदाता अधिकारों की रक्षा के बीच नाजुक संतुलन को उजागर करती हैं।
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