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भारत में तटीय अपरदन की स्थिति

(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 1 : महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनके स्थान-अति महत्त्वपूर्ण भौगोलिक विशेषताएँ)

संदर्भ

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार, देश की मुख्य भूमि की 6,907.18 किमी. लंबी तटरेखा में से लगभग 34% अपरदन के विभिन्न स्तरों पर प्रभावित है, जबकि 26% समुद्र तट अभिवृद्धि प्रकृति (Accreting Nature) के हैं और शेष 40% स्थिर अवस्था में है।

तटीय अपरदन (Shoreline Erosion)

  • तटीय क्षेत्रों में समुद्री लहरों के कारण तटीय भूमि का कटाव होता है और इन लहरों के साथ तटीय मृदा समुद्र में प्रवाहित हो जाती है। इसे ही ‘तटीय अपरदन’ कहते हैं।
  • इसमें चार मुख्य प्रक्रियाएँ- क्षरण, घर्षण, जलीय क्रिया तथा अपघर्षण शामिल है। मैंग्रोव वन, कोरल रीफ, लैगून झील आदि तटीय क्षेत्रों में समुद्री तरंगों के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने में सहायक होते हैं।

भारत में तटीय अपरदन की स्थितिstate

  • वर्ष 1990 से 2018 की अवधि में देश के पूर्वी तट पर स्थित पश्चिम बंगाल की 534.35 किमी. लंबी तटीय सीमा के लगभग 60.5% हिस्से को अपरदन का सामना करना पड़ा है।
  • इसके बाद केरल का स्थान आता है, जिसका लगभग 46.4% तटीय क्षेत्र अपरदन से प्रभावित है। इसी प्रकार, तमिलनाडु का लगभग 42.7% तटीय क्षेत्र अपरदन से प्रभावित है।
  • इसी क्रम में गुजरात की लगभग 27.6% तथा केंद्र शासित प्रदेश पुदुचेरी की लगभग  56.2% तटीय सीमा अपरदन से प्रभावित है।

मानचित्रण 

  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (National Centre for Coastal Research : NCCR) सुदूर संवेदी डाटा तथा ‘भौगौलिक सूचना तंत्र’ (GIS) मानचित्रण तकनीकों का उपयोग कर वर्ष 1990 से तटरेखा अपरदन की निगरानी कर रहा है।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन एक अन्य संगठन ‘भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र’ (INCOIS) ने समुद्र स्तर में वृद्धि, तटीय ढलान, तटरेखा परिवर्तन दर, तटीय उत्थान, तटीय भू-आकृति विज्ञान, ज्वारीय सीमा और महत्वपूर्ण लहरों की ऊंचाई से संबंधित डाटा का उपयोग कर भारत के संपूर्ण समुद्र तट के लिये तटीय भेद्यता सूचकांक (Coastal Vulnerability Index : CVI) का एक एटलस तैयार करता है। 

संबंधित नीति

  • 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने निचले तटीय क्षेत्रों के लोगों के पुनर्वास के लिये एक राष्ट्रीय आपदा जोखिम प्रबंधन कोष तथा राज्य आपदा जोखिम प्रबंधन कोष का निर्माण किया है, जिसमें वर्ष 2021-22 से 2022-26 तक की अवधि के लिये राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर एक शमन एवं एक प्रतिक्रिया कोष शामिल है।
  • 15वें वित्त आयोग ने राष्ट्रीय आपदा शमन कोष के तहत 'अपरदन को रोकने के उपाय' और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष के तहत 'अपरदन से प्रभावित विस्थापित लोगों के पुनर्वास' के लिये विशिष्ट सिफारिशें भी की हैं।
  • साथ ही, आयोग के सुझावों के अनुरूप राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) वर्तमान में शमन उपायों के लिये उपयुक्त मानदंड तैयार करने और लोगों के व्यापक विस्थापन से निपटने के लिये एक नीति विकसित करने की प्रक्रिया में है।

निष्कर्ष

भारत के तटीय क्षेत्र में एक बड़ी आबादी निवास करती है। ऐसे में एक उपयुक्त आपदा प्रबंधन नीति के माध्यम से तटीय अपरदन को कम किया जा सकता है तथा इस क्षेत्र में निवास करने वाली आबादी को सतत व सुरक्षित आजीविका के अवसर भी उपलब्ध कराया जा सकता है। केंद्र और राज्य सरकार दोनों ही तटीय और नदी अपरदन के कारण लोगों के व्यापक विस्थापन से निपटने के लिये एक नीति विकसित कर सकते हैं।

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