(प्रारंभिक परीक्षा: समसामयिक घटनाक्रम) (मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2: संसद और राज्य विधायिका- संरचना, कार्य, कार्य-संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार तथा इनसे उत्पन्न होने वाले विषय) |
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में 17 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों को चार महीने के भीतर आनंद विवाह अधिनियम, 1909 के तहत विवाह पंजीकरण के नियम बनाने का निर्देश दिया है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि नियम बनने तक मौजूदा विवाह पंजीकरण कानूनों के अंतर्गत आनंद कारज (Anand Karaj) विवाहों का पंजीकरण स्वीकार किया जाना चाहिए।
आनंद विवाह अधिनियम के बारे में
आनंद विवाह अधिनियम, 1909 एक केंद्रीय कानून है जिसे सिख विवाहों को उनकी पारंपरिक रस्म ‘आनंद कारज’ के आधार पर कानूनी मान्यता देने के लिए बनाया गया था।
- आनंद कारज का अर्थ है- आनंदमय मिलन
- इस रस्म में दंपति गुरु ग्रंथ साहिब के चार फेरे लगाते हैं और लावन (Laavan) नामक चार पवित्र श्लोक पढ़े जाते हैं।
- यह अधिनियम केवल इस रस्म से संपन्न विवाहों को वैधता देता है।
प्रमुख प्रावधान
- 1909 का मूल अधिनियम केवल एक पृष्ठ का था। इसका उद्देश्य केवल आनंद कारज से हुए विवाहों को कानूनी मान्यता देना था।
- इसमें विवाह पंजीकरण, तलाक या अन्य वैवाहिक विवादों के समाधान का कोई प्रावधान नहीं था।
संशोधन
- वर्ष 2012 में आनंद विवाह (संशोधन) अधिनियम लाया गया।
- इसमें धारा 6 जोड़ी गई जिसके तहत राज्यों को नियम बनाकर आनंद कारज विवाहों के पंजीकरण की व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया।
- इसका उद्देश्य था कि सिख जोड़े अन्य किसी विवाह कानून (जैसे- हिंदू विवाह अधिनियम) के तहत अलग से पंजीकरण न कराना पड़े।
चिंताएँ
- इस अधिनियम में तलाक, भरण-पोषण या अन्य विवाद के समाधान के प्रावधान नहीं हैं।
- अधिकांश सिख युगल अब भी हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत ही तलाक या अन्य विवाद निपटाते हैं।
- सिख समुदाय का मानना है कि यह कानून उनकी विशिष्ट पहचान को पूरी तरह सुरक्षित नहीं करता है।
राज्यों की निष्क्रियता और सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप
- इस संशोधन के एक दशक बाद भी अधिकांश राज्यों ने नियम नहीं बनाए।
- इसके कारण सिख युगलों को विवाह प्रमाणपत्र प्राप्त करने में कठिनाई होती रही।
- वर्ष 2022 में इस पर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की गई।
- न्यायालय ने इसे मौलिक अधिकार से जुड़ा मामला मानते हुए सभी राज्यों को नियम बनाने का आदेश दिया और अंतरिम राहत दी कि मौजूदा कानूनों के तहत ही पंजीकरण किया जाए।
सर्वोच्च न्यायालय का हालिया आदेश
- सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 4 महीने में नियम बनाने का आदेश।
- किसी भी आवेदन को केवल इस आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि नियम अधिसूचित नहीं हुए हैं।
- राज्यों को ‘सकारात्मक कर्तव्य’ निभाते हुए पंजीकरण की व्यवस्था करने का निर्देश।
मुख्य बिंदु
- विवाह पंजीकरण को समान रूप से सुनिश्चित करना
- सिख युगलों को प्रमाणपत्र मिलने से उत्तराधिकार, संपत्ति, निवास, भरण-पोषण आदि में सुविधा
- धार्मिक पहचान का सम्मान करते हुए नागरिक समानता सुनिश्चित करने पर जोर
प्रभाव
- सिख युगलों को अब पूरे देश में अपने विवाह का पंजीकरण सरलता से मिलेगा।
- कानूनी विवादों में प्रमाण के रूप में विवाह प्रमाणपत्र उपलब्ध होगा।
- सिख समुदाय के अधिकारों की संवैधानिक रक्षा सुनिश्चित होगी।
आगे की राह
- केवल पंजीकरण नियम बनाना पर्याप्त नहीं है बल्कि इस अधिनियम को व्यापक बनाना आवश्यक है।
- तलाक, भरण-पोषण, उत्तराधिकार जैसे प्रावधान जोड़े जाने चाहिए।
- सिख समुदाय के प्रतिनिधियों, विधि विशेषज्ञों एवं सरकार को मिलकर एक संपूर्ण ‘सिख विवाह अधिनियम’ तैयार करना चाहिए।
- इससे सिख समुदाय को एक अलग वैवाहिक पहचान और न्यायिक समाधान का समग्र ढांचा मिलेगा।