New
GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 Winter Sale offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 5th Dec., 2025 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM Winter Sale offer UPTO 75% + 10% Off, Valid Till : 5th Dec., 2025 GS Foundation (P+M) - Delhi : 05th Jan., 2026 GS Foundation (P+M) - Prayagraj : 15th Dec., 11:00 AM

उत्तर-दक्षिण कार्बन बाज़ार सहयोग की शुरुआत : महत्त्व व चुनौतियां

(प्रारंभिक परीक्षा: राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, पर्यावरणीय पारिस्थितिकी, जैव-विविधता और जलवायु परिवर्तन संबंधी सामान्य मुद्दे )
(मुख्य परीक्षा, सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन)

संदर्भ

17 सितंबर, 2025 को यूरोपीय संघ (EU) और भारत ने अपने संयुक्त संचार में एक नया व्यापक रणनीतिक एजेंडा निर्धारित किया। इसे ‘नवीन रणनीतिक ईयू-भारत एजेंडा’ कहा गया जो दोनों देशों के बीच साझेदारी को मजबूत करने का ब्लूप्रिंट है।

मुख्य बिंदु

  • इसमें मुख्य रूप से पांच स्तंभों (एजेंडा) पर चर्चा की गई है जिनके आधार पर उनकी साझेदारी को बढ़ाया जाएगा।
  • ये पांच प्रमुख स्तंभ समृद्धि व स्थिरता, प्रौद्योगिकी व नवाचार, सुरक्षा व रक्षा, कनेक्टिविटी व वैश्विक मुद्दे तथा क्रॉस-पिलर एनेबलर्स (सहायता तंत्र) जैसे पांच क्षेत्रों पर केंद्रित है।
  • इस एजेंडा के स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण खंड में एक महत्वपूर्ण घोषणा है कि भारतीय कार्बन मार्केट (ICM) को ई.यू. के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) से जोड़ा जाएगा
  • इसका सरल अर्थ है कि भारत में चुकाया गया कार्बन मूल्य ई.यू. सीमा पर सी.बी.ए.एम. शुल्क से घटाया जाएगा जिससे भारतीय निर्यातक दोहरी सजा (भुगतान) से बचेंगे और पूर्व डीकार्बोनाइजेशन को प्रोत्साहन मिलेगा।
  • यह उत्तर-दक्षिण कार्बन बाजार सहयोग का एक ऐतिहासिक कदम है जो वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को व्यापार के साथ जोड़ता है। हालाँकि, व्यावहारिक बाधाएँ अभी भी बरकरार हैं।

भारतीय कार्बन बाजार की अपरिपक्वता: मुख्य चुनौतियां

  • आई.सी.एम. की वर्तमान स्थिति: भारत का कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (CCTS) को आई.सी.एम. कहा जाता है जो अभी विकासशील चरण में है। यह ई.यू. के उत्सर्जन ट्रेडिंग सिस्टम (ETS) की तुलना में कम विकसित है जहाँ दो दशकों की नीलामी संरचना, कैप सेटिंग प्रक्रिया और स्वतंत्र सत्यापन का अनुभव है।
  • क्रेडिट की प्रकृति में अंतर: वर्तमान में आई.सी.एम. सुधार में तीव्रता या प्रोजेक्ट-आधारित ऑफसेट पर आधारित है, न कि उत्सर्जन पर पूर्ण सीमा पर, जिस ओर आई.सी.एम. आगे बढ़ रहा है। सी.बी.ए.एम. वस्तुओं में सन्निहित टन-प्रति-टन एम्बेडेड कार्बन की सख्त गणना की मांग करता है।
  • संस्थागत कमजोरी: भारत में ई.यू. जैसे स्वतंत्र नियामक या उत्सर्जन रजिस्ट्री का अभाव है, जिससे बाजार की अखंडता पर सवाल उठते हैं और ई.यू. भारतीय क्रेडिट को ‘दोयम दर्जे’ का मान सकता है।
  • संरचनात्मक पुनर्गठन की आवश्यकता: आई.सी.एम. को ई.यू. ई.टी.एस. की तरह कानूनी बाध्यकारी कैप और दंड प्रणाली के साथ मजबूत करना होगा, जो नौकरशाही व संचालन में बड़ा बदलाव मांगता है।
  • परिणाम: इन सुधारों के बिना ई.यू. भारतीय कार्बन मूल्य को सी.बी.ए.एम. से घटाने में हिचकिचाएगा, जिससे एकीकरण रुक सकता है।

मूल्य अंतर व राजनीतिक जोखिम: व्यावहारिक बाधाएं

  • कार्बन मूल्य में भारी अंतर: ई.यू. ई.टी.एस. में मूल्य €60-80 प्रति टन है जबकि भारत में शुरुआती क्रेडिट €5-10 के दायरे में है और यह अंतर सी.बी.ए.एम. कटौती को अप्रभावी बनाता है।
  • दोहरी बोझ की आशंका: निर्यातक भारत में अनुपालन लागत के साथ-साथ ई.यू. का पूरा सी.बी.ए.एम. शुल्क चुकाने को मजबूर हो सकते हैं जिससे उद्योग लॉबी दबाव डालकर आई.सी.एम. के अनुपालन मानदंडों को कमजोर करने की कोशिश करेंगे।
  • समाधान के विकल्प: क्षेत्र-विशिष्ट कार्बन अनुबंध या सी.बी.ए.एम. के अनुरूप न्यूनतम मूल्य पर बातचीत संभव है किंतु ये राजनीतिक रूप से जटिल हैं और घरेलू उद्योगों के हितों से टकराव हो सकता है।
  • राजनीतिक निहितार्थ: यह जोखिम भारत में राजनीतिक बहस को जन्म देगा, जहाँ उद्योग ‘दोहरे भुगतान’ का विरोध करेंगे और आई.सी.एम. को कमजोर करने की मांग होगी।
  • संबंध: मूल्य अंतर को पाटने के लिए न केवल तकनीकी, बल्कि राजनीतिक समझौते की आवश्यकता है जो सहयोग को मजबूत कर सकता है या कमजोर कर सकता है।

सी.बी.ए.एम. की मौलिक प्रकृति: विवादास्पद आयाम

  • विकासशील देशों का विरोध: भारत सहित विकासशील राष्ट्र सी.बी.ए.एम. को डब्ल्यू.टी.ओ. और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर एकतरफा व संरक्षणवादी उपाय मानते हैं। इसके लिंकेज से भारत की पूर्व प्रतिरोध की वैधता पर सवाल उठेगा।
  • राजनीतिक विरोधाभास: लिंकेज स्वीकार करना सी.बी.ए.एम. को वैधता प्रदान करना होगा, जो घरेलू राजनीति में विवाद पैदा करेगा। यदि ई.यू. भारतीय मूल्य को ‘अपर्याप्त’ मानता है तो निर्यातक शिकायत करेंगे और भारत को कानूनी या राजनीतिक स्तर पर लड़ना पड़ेगा।
  • संप्रभुता का मुद्दा: कार्बन मूल्यांकन घरेलू नीति है किंतु सी.बी.ए.एम. ई.यू. को भारत के उपायों की ‘पर्याप्तता’ की जांच का अधिकार देता है जो भारत जैसे संप्रभुता-रक्षक देश के लिए यह रेडलाइन हो सकती है।
  • रणनीतिक जोखिम: लिंकेज डब्ल्यू.टी.ओ. कानूनों के साथ-साथ घरेलू राजनीतिक अर्थव्यवस्था और ई.यू.-भारत विश्वास पर निर्भर है। किसी भी तरीके से घरेलू स्तर पर पीछे हटने (जैसे- उद्योग दबाव से अनुपालन कम करना) से निर्यात अस्थिर हो सकता है।
  • संबंध: सी.बी.ए.एम. की विवादास्पद प्रकृति सहयोग को बाधित करती है किंतु यदि हल हो, तो यह वैश्विक मॉडल बन सकता है।

आशावादी समाधान: सहयोग के रास्ते

  • समग्र सहयोग की संभावना: आई.सी.एम.-सी.बी.ए.एम. लिंकेज वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के बीच सबसे महत्वपूर्ण समझौतों में से एक है। यदि सफल होता है तो यह भारतीय निर्यातकों की रक्षा करेगा, औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन तीव्र करेगा और उत्तर-दक्षिण सहयोग का मॉडल बनेगा।
  • भारत की भूमिका: बाजार डिजाइन को मजबूत करना, जैसे- पूर्ण कैप-एंड-ट्रेड प्रणाली अपनाना, ई.यू. के साथ पारदर्शिता बढ़ाएगा।
  • ईयू की भूमिका: स्पष्टता प्रदान करना, तकनीकी सहायता देना और छोटे व्यवसायों के लिए सरलीकृत नियम (जैसे- सी.बी.ए.एम. में छोटे निर्यातकों को राहत) सहज संक्रमण सुनिश्चित करेगा।
  • दीर्घकालिक लाभ: यह लिंकेज जलवायु लक्ष्यों को व्यापार के साथ जोड़ते हुए भारत को वैश्विक कार्बन फाइनेंस हब बना सकता है किंतु सुधारों के बिना यह कागजी ही रहेगा।
  • संबंध: आशावादी दृष्टिकोण से दोनों पक्षों का संयुक्त प्रयास बाधाओं को अवसरों में बदल सकता है जो वैश्विक स्थिरता को बढ़ावा देगा।

आगे की राह

ईयू-भारत एजेंडा कार्बन बाजार सहयोग की शुरुआत है जो पर्यावरणीय समग्रता, व्यापार निष्पक्षता और राजनीतिक विश्वास पर टिका है जिसमें बाधाएँ तो हैं किंतु समाधान संभव हैं। भारत को आई.सी.एम. को मजबूत करने, मूल्य समानता सुनिश्चित करने और डब्ल्यू.टी.ओ. स्तर पर संवाद बढ़ाने की जरूरत है जबकि ई.यू. को समर्थन प्रदान करना चाहिए।

« »
  • SUN
  • MON
  • TUE
  • WED
  • THU
  • FRI
  • SAT
Have any Query?

Our support team will be happy to assist you!

OR